विपक्षी पक्ष जिले मे वकील है और इसके चलते प्रार्थी उचित कानूनी सहायता प्राप्त करने में असमर्थ है: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामला गोरखपुर जिला अदालत में ट्रांसफर किया

Update: 2020-11-27 05:17 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक मामले को संत कबीर नगर जिला न्यायालय से गोरखपुर जिला न्यायालय में अन्तरित (Transfer) कर दिया क्योंकि अदालत ने यह पाया कि मामले में विपक्षी पक्ष (पक्ष नंबर 2) जिले में वकालत करता है, और इसके चलते प्रार्थी उचित कानूनी सहायता प्राप्त करने में असमर्थ है.

न्यायमूर्ति राजीव मिश्र की पीठ ने यह आदेश सुनते हुए इस बात पर गौर किया कि "न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए।"

एक स्थानांतरण आवेदन, आवेदक-देवी प्रसाद द्वारा दायर किया गया है [केस क्राइम नंबर 185/2020 में धारा 147, 148, 149, 302, 120B, 34 IPC, के तहत दर्ज मामला] जिसमे उन्होंने संत-कबीर नगर में अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश / एफटीसी.- I, संत कबीर नगर की अदालत के समक्ष लंबित मामले को इस तथ्य के कारण अन्तरित (Transfer) करने की मांग की कि आवेदक के साथ संत कबीर नगर में न्यायालय चलने से उसके साथ पक्षपात होगा।

यह कहा गया कि संत कबीर नगर में कोर्ट में मामला चलने से पक्षपात होगा क्योंकि विपक्षी पार्टी नंबर 2, सुरेंद्र कुमार द्विवेदी वहां पर एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं। इसके चलते आवेदक को उचित कानूनी सहायता नहीं मिल पा रही है।

अदालत का आदेश

अदालत ने देखा कि इस तथ्य से कोई इनकार नहीं है कि विपरीत पार्टी नंबर 2, जिला संत कबीर नगर में एक वकील है।

इसके बाद अदालत ने देखा कि,

"किसी अभियुक्त द्वारा उचित कानूनी सहायता का अधिकार अब एक स्थापित कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता प्राप्त है। चूंकि विपरीत पक्ष संख्या 2 जिला-संत कबीर नगर और बस्ती में एक वकील है, इसलिए आवेदक द्वारा यह आशंका व्यक्त की गई कि वह उचित कानूनी सहायता प्राप्त करने में असमर्थ है, जो अच्छी तरह से स्थापित है। आवेदक ने सबूतों को रिकॉर्ड के माध्यम से लाया है और यह दिखाया है उनकी ओर से प्रस्तुत होने वाले एक काउंसल ने बाद में मामले से खुद को वापस ले लिया।"

अदालत ने आगे कहा,

"न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि किया जाना चाहिए। इस कानूनी सिद्धांत के साथ-साथ तथ्य और कानून के प्रस्ताव के रूप में ऊपर उल्लेख किया गया है, वर्तमान ट्रान्सफर आवेदन सफल होता है।"

अंततः अदालत ने मामले को जिला न्यायालय, गोरखपुर में स्थानांतरित कर दिया।

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