SLP को संक्षिप्त सुनवाई से निपटा देने से इससे जुड़े मुद्दे का निपटारा नहीं हो जाता : सुप्रीम कोर्ट [निर्णय पढ़े]
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू एवं कश्मीर हाईकोर्ट के एक फ़ैसले को निरस्त करते हुए कहा है कि विशेष अनुमति याचिका को संक्षिप्त सुनवाई से निपटा देने से उससे जुड़े मामले का निपटारा नहीं हो जाता।
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने एक प्रतिवादी द्वारा हाईकोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ दायर अपील पर सुनवाई में कहा।
हाईकोर्ट ने तीन अपीलों पर अपने फ़ैसले में भ्रष्टाचार के आरोप में सरकारी कर्मचारियों को आवश्यक रूप से रिटायर करने के निचली अदालत के फ़ैसले को सही ठहराया था।
प्रतिवादियों के वक़ील प्रमोद कुमार शर्मा ने कहा कि खंडपीठ के फ़ैसलों और आदेशों के ख़िलाफ़ दायर लगभग इसी तरह की कई विशेष अनुमति याचिकाओं को ख़ारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कईआदेश दिए हैं।
"यह सही है कि उक्त विनियमन के अनुच्छेद 226(2) के तहत उस समिति द्वारा अपने अधिकारों का प्रयोग इसकी अनुमति के दायरे में नहीं आता और खंडपीठ ने कई मामलों में राज्य सरकार के निवेदनको ख़ारिज कर दिया और एकल जज वाली पीठ के आदेश को सही ठहराया और आवश्यक रूप से रिटायर करने के आदेश को निरस्त कर दिया। यह भी सही है कि इन मामलों में दायर विशेष अनुमतियाचिकाओं को संक्षिप्त सुनवाई द्वारा निपटा दिया गया था। हालाँकि, यह पूरी तरह स्थापित बात है कि विशेष अनुमति याचिका को संक्षिप्त सुनवाई से निपटा देना इस मामले का उसकी गुणवत्ता के आधार परनिपटारा नहीं है।"
इस बारे में पीठ ने Supreme Court Employees' Welfare Association vs. Union of India मामले में आए फ़ैसले पर भरोसा किया और कहा कि जब कोई कारण बताए किसी विशेष अनुमतियाचिका को बिनाशर्त ख़ारिज कर दिया जाता है, तो यह नहीं कहा जा सकता सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 141 के तहत क़ानून पर अपनी राय व्यक्त की है। Yogendra Narayan Chowdhury & Ors vs Union Of India, मामले में कहा गया कि किसी विशेष अनुमति याचिका को उसके कारणों का आकलन किए बिना शुरू में ही अगर ख़ारिज कर दिया जाता है तो ऐसा नहीं कहा जा सकता कि इसमामले पर उचित अदालती कार्रवाई हुई है।
पीठ ने हाईकोर्ट के फ़ैसले को ख़ारिज कर दिया और इस मामले को दुबारा खंडपीठ को पुनर्विचार के लिए वापस कर दिया और कहा कि खंडपीठ का इस मामले पर ग़ौर करने का मौलिक आधार ही ग़लतथा।