(अपहरण का मामला) : जांच के दौरान पुलिस पर अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का आरोप, दिल्ली हाईकोर्ट ने पुलिस कमीश्नर को मामला देखने को कहा

Update: 2020-06-30 17:00 GMT

सोनिया विहार पुलिस स्टेशन के कुछ पुलिस अधिकारियों पर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने जांच के दौरान अपने अधिकारों का कथित रूप से दुरुपयोग किया। इसी को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले को अपराध शाखा के पास स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है।

न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की डिवीजन बेंच ने दिल्ली पुलिस के आयुक्त को भी निर्देश दिया है कि वह याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों पर विचार करें और यदि अधिकारों के दुरुपयोग का कोई मामला बनता है, तो संबंधित जांच अधिकारी के खिलाफ उचित कार्रवाई करें।

यह आदेश एक पिता की तरफ से दायर हेबियस काॅर्पस (बंदी प्रत्यक्षीकरण ) याचिका पर सुनवाई के बाद दिया गया है। इस पिता ने अपनी बेटी को पेश करने की मांग की थी,जो 11 जून से लापता थी। याचिकाकर्ता ने बताया कि कई शिकायतें करने और डीसीपी के समक्ष ज्ञापन देने के बावजूद कोई मामला दर्ज नहीं किया गया, इसलिए मजबूरी में याचिकाकर्ता को अदालत आना पड़ा।

पुलिस की तरफ से दायर की गई स्थिति रिपोर्ट से ऐसा प्रतीत हुआ है याचिकाकर्ता की बेटी कोलकाता में मिली है,जिसका एक व्यक्ति ने अपहरण कर लिया था या फुसलाकर उसे अपने साथ ले गया था। इस व्यक्ति ने उसकी बेटी को जाने से मारने की धमकी दी थी, उसकी निजी तस्वीरें लीक कर दी थी और उसके साथ शारीरिक संबंध भी बनाए थे।

याचिकाकर्ता ने बताया कि उसे पुलिस की यात्रा और जयपुर और कोलकाता में ठहरने का सारा खर्च वहन करने के लिए कहा गया था। इतना ही याचिकाकर्ता को जयपुर में पुलिस कर्मियों के लिए एक पार्टी का आयोजन करने के लिए भी कहा गया था।

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि जब उसकी बेटी को मेडिकल जांच के लिए ले जाया गया, तो आईओ ने जोर देकर कहा कि उसकी आंतरिक जांच न की जाए क्योंकि उसने आरोपी के साथ संबंध स्थापित करने के बाद स्नान किया था। इस कारण उसकी बेटी की शारीरिक जांच नहीं की गई, जबकि याचिकाकर्ता की बेटी चाहती थी कि उसकी आंतरिक जांच की जाए।

अदालत ने कहा कि प्राथमिकी दर्ज करने में 8 दिनों की बेवजह देरी हुई थी और पुलिस याचिकाकर्ता द्वारा की गई शिकायतों पर पूरी तरह से विचार भी नहीं कर रही थी। ऐसे में यदि याचिकाकर्ता द्वारा दिए गए बयान सही हैं तो वे पुलिस बल के कामकाज पर लगाए गए आरोप गंभीर हैं।

अदालत ने यह भी कहा कि इस मामले में लगाए गए आरोप पुलिस द्वारा निभाई गई भूमिका के बारे में गंभीर सवाल उठाते हैं ,क्योंकि पुलिस से यह अपेक्षा नहीं की जाती है कि वह किसी भी मामले में इस तरह से काम करेगी।

इसलिए, अदालत ने कहा कि

'हम पुलिस आयुक्त को भी निर्देश देते हैं कि वह याचिकाकर्ता और उसके वकील को एक बार उनकी बात रखने का मौका दे ताकि वह सारी बातें आयुक्त के समक्ष रख सकें। साथ ही यह बता सकें कि किस तरह से पुलिस ने कथित तौर पर अपने अधिकार का दुरुपयोग किया है। वे जयपुर और कोलकाता में पुलिसकर्मियों के ठहरने व यात्रा आदि पर किए गए सारे खर्च संबंधी अपने दावों को प्रमाणित करने के लिए सभी दस्तावेजों/बिलों को भी आयुक्त के समक्ष पेश करें, जिसके बाद पुलिस आयुक्त सभी तथ्यों की जांच करें।

वहीं सोनिया विहार थाने के एसएचओ को बुलाकर उनसे भी उक्त दौरों के लिए पुलिस विभाग द्वारा किए गए सारे खर्च के सबूत पेश करने के लिए कहें। इन सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद अगर पुलिस द्वारा अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने का मामला बनता है तो जांच अधिकारी/एसएचओ व सभी संबंधित पुलिसकर्मियों के खिलाफ उचित कार्रवाई की जाए। यदि याचिकाकर्ता की शिकायत पूरी तरह से/आंशिक रूप से उचित पाई जाती है, तो पुलिस आयुक्त याचिकाकर्ता द्वारा खर्च की राशि (जो पुलिसकर्मियों को जयपुर और कोलकाता ले जाने के लिए और उक्त स्थानों पर उनके ठहरने पर खर्च की गई थी )उसे वापस करने  का आदेश भी पारित करें।'

कमिश्नर को यह भी निर्देश दिया गया है कि सुनवाई की अगली तारीख से पहले इस संबंध में एक्शन टेकन रिपोर्ट कोर्ट के समक्ष दाखिल कर दें। 

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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