बीच की सीट भरी होने पर भी यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य का पर्याप्त ध्यान रखा जा रहा है : बॉम्बे हाईकोर्ट ने एयर इंडिया के पायलट की याचिका खारिज की
बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा है कि कोरोना वायरस के संदर्भ में विमान में यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य की पर्याप्त देखभाल है, भले ही मध्य पंक्ति की सीटें खाली न रखी जा रही हों।
कोर्ट ने एयर इंडिया के एक पायलट की तरफ से दायर उस याचिका का निपटारा कर दिया ,जिसमें आरोप लगाया था कि नेशनल कैरियर ने नागरिक उड्डयन महानिदेशालय की तरफ से 23 मार्च को जारी सर्कुलर का उल्लंघन किया गया है और मध्य पंक्ति की सीटें खाली नहीं रखी गईं।
न्यायमूर्ति एसजे कथावाला और न्यायमूर्ति एसपी तवाडे की खंडपीठ ने एयर इंडिया के एक कमांडर 51 वर्षीय देवेश कनानी की तरफ से दायर रिट याचिका पर सुनवाई की। उन्होंने 'वंदे भारत' उड़ान (यानी गैर-अनुसूचित अंतरराष्ट्रीय उड़ान) के संबंध में 23 मार्च को जारी डीजीसीए के सर्कुलर के खंड 7 को लागू करने की मांग की थी।
एयर इंडिया 1 जून तक 58,867 भारतीयों को वापस लाई है, जो COVID 19 के प्रकोप के कारण विदेशों में फंसे हुए थे।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अभिलाष पनिकर, डीजीसीए और यूनियन ऑफ इंडिया के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, एयर इंडिया और उसकी सहायक एयर इंडिया एक्सप्रेस के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता डेरियस खंबाटा और डॉ अभिनव चंद्रचूड़ उपस्थित हुए। इंडिगो के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता जनक द्वारकादास, स्पाइस जेट के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता वेंकटेश धोंड पेश हुए।
24 मई को उक्त याचिका के जवाब में एयर इंडिया व इसकी सहायक कंपनी की ओर से पेश डॉ.चंद्रचूड़ ने न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया था कि 23 मार्च को जारी उक्त सर्कुलर 'वंदे भारत'की उड़ानों (यानी गैर-अनुसूचित अंतरराष्ट्रीय उड़ान) पर लागू नहीं होता है और यह केवल अनुसूचित घरेलू उड़ानों पर लागू होता है।
विदेश में फंसे यात्रियों को भारत वापस लाते हुए COVID 19 के प्रसार को रोकने के लिए आवश्यक सभी सावधानियां बरती जा रही हैं। उन्होंने कहा कि अगर दो सीट के बीच में एक सीट को खाली भी रख दिया जाए तो भी सोशल डिस्टेंसिंग के लिए भारत सरकार द्वारा निर्धारित मापदंड पूरे नहीं हो पाएंगे।
हालांकि 24 मई को ही शाम 5. 30 बजे डॉ चंद्रचूड़ ने पीठ को सूचित किया कि डीजीसीए ने 22 मई को एक नया सर्कुलर जारी किया है, जो 23 मार्च को जारी पुराने सर्कुलर की जगह ले रहा है। वहीं यह नया सर्कुलर केवल घरेलू उड़ानों पर लागू होता है न कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों पर।
लेकिन अदालत ने निष्कर्ष निकाला था कि नया सर्कुलर केवल घरेलू उड़ानों के लिए लागू होता है, न कि अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए, इसलिए, अदालत ने सभी एयरलाइन को निर्देश दिया था कि वंदे भारत मिशन के तहत भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए 23 मार्च को जारी सर्कुलर का अनुपालन किया जाए।
इसके बाद, प्रतिवादियों ने बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। शीर्ष अदालत ने एयरलाइन को दस दिनों के लिए छह जून तक मध्य पंक्ति की सीट भरने की अनुमति दे दी थी। साथ ही डीजीसीए को यह स्वतंत्रता दी थी कि वह व्यावसायिक लाभ की बजाय यात्रियों के सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा के हित को देखते हुए इस मामले की पेंडेंसी के दौरान आवश्यक मानदंडों को बदल सकता है।
उड़ानों में अपनाए जाने वाले कुछ सुरक्षा उपायों के बारे में सिफारिश करने के लिए डीजीसीए ने विशेषज्ञों की एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था। इस विशेषज्ञ समिति में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में तैनात ओएसडी राजेश भूषण ,नई दिल्ली स्थित एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया,नई दिल्ली स्थित आईसीएमआर के डीजी डॉ.बलराम भार्गव, और डॉ एन त्रेहान, सीएमडी, मेदांता मेडिसिटी को शामिल किया गया था।
उक्त समिति ने वर्तमान महामारी के दौरान एयरलाइंस से यात्रा करने वाले यात्रियों के स्वास्थ्य और सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कुछ सिफारिशें की थी। उक्त सिफारिशों के अनुसार यदि यात्रियों की संख्या को देखते हुए संभव हो तो मध्य पंक्ति की सीटों को खाली रखा जाए। अगर यात्रियों की संख्या ज्यादा है और उपलब्ध सीटों की संख्या को देखते हुए मध्य पंक्ति की सीट खाली रखना संभव नहीं है तो समिति ने सुझाव दिया था कि यात्री को मास्क और फेस शील्ड के अलावा अतिरिक्त 'रैप अराउंड गाउन'प्रदान किया जा सकता है।
डीजीसीए द्वारा उक्त सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया था और 31 मई के आदेश में सभी एयरलाइंस के लिए निर्देश जारी किए दिए गए थे।
5 जून को विशेषज्ञ समिति ने कोर्ट को सूचित किया गया था कि कोरोनावायरस वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति के स्पर्श मात्र से यह प्रेषित नहीं होता है और यह सिर्फ बूंदों के माध्यम से प्रेषित किया जा सकता है। इसके बाद बेंच ने अपना आदेश सुरक्षित रखते हुए एयरलाइंस को अंतरिम अनुमति दे दी थी कि वह मध्य सीटों को भर सकती हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्रस्तुत किया कि विमान में एक हाई एफिशन्सी पार्टिकुलेट एयर (एचईपीए) फिल्टर लगाए गए हैं जो हर तीन मिनट में हवा को साफ करता है और पुन प्रसारित करता है। इस तरह वह 'ऑपरेशन थिएटर' को क्वालिटी वाली हवा देता है। लेकिन याचिकाकर्ता ने उक्त सबमिशन का विरोध किया और कहा कि उक्त फिल्टर विमान के अंदर स्थापित है और विमान में सवार संक्रमित यात्रियों द्वारा ली जाने सांस पर इसका कोई असर नहीं होगा।
याचिकाकर्ता ने भारत सरकार के गृह मंत्रालय की तरफ से "नेशनल डायरेक्टिव फॉर COVID 19 मैनेजमेंट" के तहत जारी किए गए 30 मई के आदेश पर भरोसा जताया, जिसमें कहा गया था कि 6 फीट की सामाजिक दूरी बनाई रखी जाए। याचिकाकर्ता के अनुसार, विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट इस आदेश के विपरीत है।
एसजी तुषार मेहता ने कहा कि बोर्डिंग से पहले, सभी यात्रियों की COVID 19 के संभावित लक्षणों को चेक करने के लिए थर्मल स्क्रीनिंग की जाती है। डी-बोर्डिंग के दौरान भी यात्री की एक और थर्मल स्क्रीनिंग होती है। इसके बाद भी 'वंदे भारत मिशन' दिशानिर्देश के तहत लक्षण वाले या अन्यथा,सभी यात्रियों को 7 से 14 दिनों के संस्थागत क्वारंटाइन में रखा जाता है।
एयर इंडिया के वकील, श्री एडवोकेट खंबाटा ने कहा कि तत्काल मामले में विशेषज्ञों की उच्च स्तरीय कमेटी व एयर ट्रांसपोर्ट फेसिलिटेशन कमेटी ने इस मामले में विशेष रूप से विचार किया है और इस सुझाव को खारिज कर दिया है कि यात्रियों के बीच सीटें खाली रखी जानी चाहिए। ऐसी परिस्थितियों में, विशेषज्ञों के उक्त निर्णयों को स्वीकार किया जाना चाहिए।
सभी पक्षों की ओर से दी गई दलीलों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने "नेशनल डायरेक्टिव फॉर COVID 19 मैनेजमेंट" का उल्लेख किया और कहा कि-
''जहां तक हवाई यात्रा का सवाल है तो यह स्पष्ट है कि उसी से संबंधित एसओपी जारी किए गए थे और वही लागू होंगे। याचिकाकर्ता ने अपने दिमाग का प्रयोग किए बिना सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग के निर्देशों का हवाला दिया है। यहां इस बात का उल्लेख करना ठीक होगा कि सार्वजनिक स्थानों/कार्यस्थलों पर व्यक्ति अक्सर एक साथ झुंड में एकत्रित होते हैं और उस समय मास्क जैसे सुरक्षात्मक उपकरण भी प्रयोग नहीं कर रहे होते हैं या ऐसे उपकरण इस्तेमाल करते हैं जिनकी गुणवत्ता बहुत खराब होती है। इसलिए, यह छह फीट की दूरी उन व्यक्तियों के लिए अनिवार्य है, जो सार्वजनिक /कार्यस्थलों पर आते जाते हैं।''
इसके अलावा, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता के पास अपने इस तर्क के लिए कोई वैज्ञानिक कारण नहीं हैं कि एचईपीए फिल्टर निकटवर्ती यात्रियों को हवा की बूंदों से बचाने के लिए एक प्रभावी तरीका नहीं है।
पीठ ने कहा-
''याचिकाकर्ता इस बात पर ध्यान देने में विफल रहा है कि भले ही बीच की सीट खाली रखी गई हो, लेकिन खिड़की की सीट पर बैठे व्यक्ति को जब शौच के लिए जाना पड़ता है और उसके बाद वापस अपनी सीट पर आता है तो गलियारे की सीट पर बैठे लोगों(अपने कपड़ों के माध्यम से) को छूने की संभावना होती है। इसलिए, यदि उसके तर्क को स्वीकार कर लिया जाता है तो विमान की प्रत्येक पंक्ति में केवल एक यात्री को ही बैठाया जा सकता है। हम किसी भी वैज्ञानिक आधार के बिना, किसी भी व्यक्ति को जनता के मन में इस तरह के डर को पैदा करने की अनुमति नहीं दे सकते हैं। इसके बजाय अगर हमें वशेषज्ञों की सलाह उचित लगती है तो हम उसका पालन करेंगे।''
इस प्रकार, याचिकाकर्ता द्वारा उठाई गई सभी दलीलों पर विचार करने के बाद कोर्ट ने कहा कि-
'' हमें यह निर्धारित करने में याचिकाकर्ता की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली है कि यदि एयरलाइंस बीच की सीट को खाली रखने में विफल रहती हैं तो कैसे COVID 19 यात्रियों की सुरक्षा/ स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है। जबकि उपरोक्त याचिका में यह उनकी प्राथमिक दलील थी।''
अंत में, विशेषज्ञों की उच्च स्तरीय कमेटी की रिपोर्ट व एयर ट्रांसपोर्ट फेसिलिटेशन कमेटी के मिनट्स को देखने के बाद न्यायमूर्ति कथावाला ने कहा-
''हम प्रथम दृष्टया यह मानते हैं कि COVID 19 वायरस के मामले में विमान में यात्रा करने वाले यात्रियों की सुरक्षा और स्वास्थ्य का पर्याप्त रूप से ध्यान रखा जा रहा है, भले ही विमान की मध्य सीट को यात्रियों की संख्या व सीट क्षमता के आधार पर खाली न रखा जा रहा हो।
हालांकि प्रतिवादियों व देश के अन्य सभी फ्लाइट ऑपरेटरों को यात्रियों की हवाई यात्रा के दौरान 31 मई, 2020 को जारी आदेश के साथ-साथ लागू होने वाले एसओपी का सख्ती से पालन करना होगा।''
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