आईपीसी की धारा 354-महिलाओं को भी किसी महिला का शील भंग करने का दोषी ठहराया जा सकता है-मुंबई कोर्ट
मुंबई में एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता की धारा 354 को अपराधी के लिए लिंग तटस्थ माना है और एक अन्य महिला की शील भंग करने के लिए तीन बच्चों की मां को दोषी ठहराते हुए एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट मनोज वसंतराव चव्हाण ने कहा, ''इसलिए आईपीसी की धारा 354, सभी व्यक्तियों पर समानता का संचालन करती है, चाहे वह पुरुष हो या महिला और यह नहीं कहा जा सकता है कि इस धारा के तहत महिला को किसी भी सजा से छूट दी गई है।''
कोर्ट ने रेखांकित किया कि आईपीसी की धारा 354 ''यौन अपराध नहीं'' है लेकिन 'आपराधिक बल और हमला' के अध्याय के अंतर्गत आती है और इसके आवश्यक अवयवों में एक महिला की शील भंग करने के इरादे या ज्ञान के साथ आपराधिक बल का उपयोग करना शामिल है।
इस प्रकार आरोपी रोवेना भोसले को लंबे समय से चले आ रहे विवाद के कारण 19 सितंबर, 2020 को कई अन्य लोगों के सामने अपनी पड़ोसी के साथ मारपीट करने और इमारत के रास्ते में उसके कपड़ों को फाड़ने के लिए आईपीसी की धारा 323 और 354 के तहत दोषी ठहराया गया था।
अभियोजन पक्ष ने उनके दो पड़ोसियों सहित छह गवाहों को पेश किया,जिन्होंने पूरी घटना को देखा था। उनमें से एक ने अदालत को बताया कि पीड़िता को जूते से पीटा गया था और उसके कपड़ों को फाड़ दिया गया था,जिससे वह पूरी तरह से नग्न हो गई थी। एपीपी ने तर्क दिया कि आरोपी के खिलाफ सभी आरोप साबित हो गए हैं, हालांकि आरोपी के वकील ने तर्क दिया कि दोनों महिलाएं पड़ोसी हैं, और उसका शील भंग करने का कोई इरादा नहीं था। यह धारा एक महिला पर लागू नहीं होती है।
अभियोजन पक्ष का कहना था कि आरोपी अपनी मां और पीड़िता की नजदीकियों से जलती थी। पीड़िता दो बच्चों की मां है।
शुरूआत में कोर्ट ने पड़ोसियों की गवाही को विश्वसनीय पाया। आईपीसी की धारा 354 के बारे में जज ने कहा कि ''एक महिला भी किसी अन्य महिला पर उतने ही प्रभावी ढंग से हमला कर सकती है या आपराधिक बल का प्रयोग कर सकती है जितना कि कोई पुरुष कर सकता है।'' इसके अलावा, एक महिला सिर्फ एक महिला होने के कारण दूसरी महिला की शील भंग करने में ''अक्षम'' नहीं है।
कोर्ट ने आईपीसी की धारा 8 के आधार पर आईपीसी की धारा 354 में इस्तेमाल किए गए सर्वनाम ''he'' का अर्थ पुरुष या महिला के रूप में माना। ''इस प्रकार यह स्पष्ट है कि आईपीसी की धारा 354 के तहत, एक पुरुष के साथ-साथ एक महिला को भी इस आशय या ज्ञान के साथ किसी महिला पर हमला करने या आपराधिक बल का उपयोग करने के अपराध के लिए दोषी ठहराया जा सकता कि इससे महिला की शील भंग हो जाएगी और उसे इस अपराध के लिए सजा दी जा सकती है।''
रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों का जिक्र करते हुए जज ने आगे कहा कि ''शिकायतकर्ता की पिटाई करके और उसकी नाइटी को फाड़कर, आरोपी ने शिकायतकर्ता के निजता के अधिकार का उल्लंघन किया है।'' अदालत ने माना कि किसी महिला के खिलाफ इस्तेमाल किया गया बल उस समय आपराधिक हो जाता है जब इसे बिना सहमति के या उसकी इच्छा के विरुद्ध उपयोग किया जाता है।
जज ने पर्याप्त पुष्टि के अभाव में आरोपी के साथ मौखिक दुर्व्यवहार करने के आरोपों को खारिज कर दिया। कोर्ट ने अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के तहत आरोपी को लाभ देने से भी इनकार कर दिया। ''आरोपी को महिला होने के नाते शिकायतकर्ता के प्रति सुरक्षात्मक और संवेदनशील होना चाहिए था।''
हालांकि, अदालत ने कहा कि आरोपी तीन बच्चों की मां है और सबसे छोटी बच्ची महज 1.5 साल की है, इसलिए उसे धारा के तहत निर्धारित न्यूनतम सजा दी गई है।
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