COVID-19 रिपोर्ट नेगेटिव आने के बाद ही आरोपी को जेल भेजा जाए, राजस्थान हाईकोर्ट ने 128 कैदी कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद दिया आदेश
राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए रविवार को आयोजित की गई एक विशेष सुनवाई में कहा है कि किसी आरोपी व्यक्ति को तभी हिरासत में भेजा जाना चाहिए, जब उसकी COVID-19 की रिपोर्ट नेगेटिव आ जाए।
कोर्ट ने यह निर्देश 16 मई की समाचार रिपोर्टों के आधार पर स्वतः संज्ञान लेते हुए दिया है। इन रिपोर्ट में बताया गया था कि जयपुर की जिला जेल में लगभग 55 कैदी कोरोना पाॅजिटिव पाए गए हैं, जिनमें अंडर ट्रायल और दोषी करार दिए जा चुके,दोनों तरह के कैदी शामिल हैं।
न्यायालय ने यह भी कहा कि नवीनतम समाचार रिपोर्टों के अनुसार, जयपुर जिला जेल में पॉजिटिव कोरोना मामलों की संख्या पिछले 48 घंटों के भीतर 128 कैदी (423 कैदियों में से) हो गई है।
मुख्य न्यायाधीश इंद्रजीत महंती और न्यायमूर्ति अशोक कुमार गौड़ की पीठ ने इस संबंध में निम्नलिखित निर्देश दिए हैं-
(1) हम राज्य सरकार को निर्देश देते हैं कि वह जेलों के COVID-19एसओपी में यह भी शामिल करें कि हर आरोपी की कोरोना वायरस की जांच स्थानीय चिकित्सा अधिकारियों से करवानी आवश्यक होगी। अगर इस जांच में आरोपी नेगेटिव पाया जाता है तो उसके बाद ही उसे पुलिस हिरासत/जेल हिरासत में भेजने की अनुमति दी जाए।
(2) हमें सूचित किया गया है कि आरोपी के जेल परिसर या पुलिस कस्टडी में जाने से पहले उसका टेस्ट किए जाने के बाद,उसे एक अलगाव वार्ड में 21 दिन के लिए रखा जाता है,जो जेल के निवासियों के लिए बने सामान्य वार्ड से अलग होता है। ऐसे मामलों में जेल अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे कैदियों को अलगाव वार्ड से निकलाकर सामान्य वार्ड में भेजने से पहले उनको एक बार फिर स्थानीय चिकित्सा अधिकारियों के सामने पेश किया जाए। ताकि यह पता चल सकें कि उस कैदी में कोरोना वायरस के कोई लक्षण विकसित तो नहीं हुए हैं। वहीं आरटी-पीसीआर परीक्षण भी करवाया जाए ताकि ऐसे कैदियों का भी पता चल सकें जो ऐसिम्प्टमैटिक या अलक्षणी हैं। चिकित्सा अधिकारियों से इस तरह की क्लियरेंस मिल जाने के बाद जेल प्राधिकरण ऐसे कैदी या अंडर-ट्रायल को जनरल वार्ड में स्थानांतरित कर सकते हैं।
(3) जेल प्रशासन के जो अधिकारी या कर्मचारी अलग रह रहे ऐसे कैदियों के सीधे संपर्क में हैं, उन्हें भी यह सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है कि इस तरह का वायरस उनको संक्रमित न कर दे या उनके परिवार में न पहुंच जाए। जेल अधिकारी यह सुनिश्चित करें कि जेल कर्मचारियों और उनके परिवार के सदस्यों का नियमित तौर पर रेंडम या आकस्मिक आधार पर परीक्षण किया जाए या कम से कम 15 दिन में एक बार।
(4) प्रत्येक जिले के चिकित्सा अधिकारी जेलों के आइसोलेशन वार्डों का निरीक्षण करेंगे और जेल अधिकारियों को सुझाव देंगे कि इन व्यक्तियों को आइसोलेशन वार्डों में रखने के लिए आवश्यक सफाई और स्वच्छता बनाए रखने के लिए क्या-क्या आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए।
(5) जेल के डॉक्टर अलगाव वार्ड में रखे गए कैदियों की प्रतिदिन सामान्य जांच करने के लिए उपलब्ध होने चाहिए। जेल के डॉक्टर यह सुनिश्चित करें कि वह हर रोज ऐसे अलगाव वार्डों में जाए और इन वार्डों में रखे गए कैदियों का चेकअप करें। इस बारे में रिकाॅर्ड भी तैयार किया जाए।
न्यायालय ने समिति के गठन का भी निर्देश दिया है। जिसमें (ए) डीएलएसए या टीएलएसए का सचिव (बी) सीएमएचओ या उसका प्रतिनिधि (सी) स्थानीय बार एसोसिएशन का सचिव या अध्यक्ष शामिल होंगे। यह टीम अपने-अपने जिलों की केंद्रीय जेल/ जिला जेल/ उप जेल के अंदर दौरा करेंगी और विभिन्न जेलों की स्थिति की जांच व सत्यापन करेंगी। जिसमें विशेष रूप से यह देखा जाएगा कि केंद्र सरकार व राजस्थान सरकार द्वारा तय किए गए पैरामीटर और आरएसएलएसए के प्रकाशनों में जेल परिसर के भीतर सार्वजनिक स्वास्थ्य के बारे में दिए गए सुझावों का पालन हो रहा है या नहीं?
पीठ ने अपने आदेश में यह भी उल्लेख किया कि राजस्थान राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (आरएसएलएसए) ने राजस्थान की जेलों पर एक रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें जेलों के भीतर सार्वजनिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के उद्देश्य से स्वच्छता और हाइजीन के संबंध में कुछ विशिष्ट सुझाव दिए हैं।
एडवोकेट जनरल एम एस सिंघवी ने पीठ को बताया कि राजस्थान की विभिन्न जेलों में 20000 कैदी बंद हैं। जबकि इन जेलों की क्षमता 22000 कैदी है।
कोर्ट ने मामले की सुनवाई 27 मई तक स्थगित करते हुए कहा कि-
''हम आशा और विश्वास करते हैं कि यहां जारी गए निर्देशों को राज्य सरकार उनके सही अर्थ और आत्मा के साथ लागू करेगी। ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वर्तमान महामारी के दौरान जेलों में बंद कैदियों का स्वास्थ्य सुरक्षित रह सकें।''
एडवोकेट जनरल ने पीठ को यह भी बताया कि जिला जेल जयपुर में 423 कैदी और बाकी स्टाफ के लोग रहते हैं। सभी का COVID-19 का परीक्षण किया गया है। जिसमें से 119 की रिपोर्ट पाॅजिटिव आई है, जबकि 9 की रिपोर्ट पहले पाॅजिटिव आई थी। एक जेल अधीक्षक भी पाॅजिटिव पाया गया है।
COVID-19 महामारी के मद्देनजर जेलों में भीड़भाड़ कम करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 23 मार्च को सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को निर्देश दिया था कि वह एक उच्च स्तरीय समिति का गठन करें। जो कैदियों के उन वर्ग का निर्धारण करें जिनको चार से छह सप्ताह के लिए पैरोल पर रिहा किया जा सकता हो।
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