दुष्कर्म पीड़िता अगर सुनवाई के दौरान मुकर गई है तो वह मुआवज़े की हकदार नहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला

Update: 2019-10-01 07:01 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक दुष्कर्म पीड़िता की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसने पीड़ित मुआवजा योजना के तहत मुआवजा दिलाए जाने की मांग की थी, क्योंकि वह मुकदमे के दौरान अपने बयान से मुकर गई थी और अदालत ने आरोपी को बरी कर दिया था।

न्यायमूर्ति आलोक अराधे ने कर्नाटक राज्य कानूनी सहायता सेवा प्राधिकरण से 7 लाख रुपये मुआवजा दिलाए जाने की मांग वाली इस याचिका को खारिज करते हुए कहा-

''कर्नाटक पीड़ित मुआवजा योजना 2007 के प्रासंगिक खंडों को देखने से, यह स्पष्ट है कि पीड़िता को जांच और मुकदमे के दौरान अभियोजन के साथ सहयोग करना होगा और उसके द्वारा दायर की गई शिकायत झूठी या फर्जी नहीं होनी चाहिए। इस मामले में, मुकदमे की सुनवाई के दौरान, याचिकाकर्ता के साथ-साथ उसके पिता को भी प्रतिकूल गवाह घोषित किया गया था। दूसरे शब्दों में, उन्होंने योजना के खंड 6 (3) का उल्लंघन किया है और इसलिए, मुआवजे की मांग के हकदार नहीं हैं।''

याचिकाकर्ता की दलील

याचिका के अनुसार 3 मार्च 2014 को पीड़िता के साथ कथित रूप से दुष्कर्म किया गया था। याचिकाकर्ता द्वारा की गई शिकायत पर, प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई थी और जाँच पूरी होने के बाद पुलिस ने आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया था। 22 मई 2015 को याचिकाकर्ता के पिता ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के समक्ष पीड़ित मुआवजा योजना के तहत मुआवजे के लिए एक प्रतिनिधित्व दिया था। प्राधिकरण ने 24 मार्च, 2018 को मुआवजे का आदेश पारित किया, जिसके तहत याचिकाकर्ता को मुआवजे के रूप में 3 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था।

मुआवजे के आदेश को रद्द करने वाले कानूनी सेवा प्राधिकरण के संचार/पत्र को चुनौती देते हुए याचिकाकर्ता ने, यह तर्क दिया था कि ''याचिकाकर्ता मुआवजा दिए जाने की हकदार है, भले ही अभियुक्त को बरी कर दिया गया हो और याचिकाकर्ता को मुकरा हुआ गवाह घोषित किया गया हो।''

प्राधिकरण की दलील

जबकि प्राधिकरण ने योजना के पैरा 6 (3) पर भरोसा किया है, और दलील दी है कि यह पीड़ित का दायित्व बनता है कि वह मामले की जांच और परीक्षण के दौरान पुलिस और अभियोजन के साथ सहयोग करे और चूंकि, याचिकाकर्ता को बयान से मुकरा हुआ घोषित किया गया था, इसलिए , राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण ने मुआवजा देने वाले आदेश को वापस लेकर ठीक किया है।

अदालत ने दलील को सही माना

अदालत ने प्राधिकरण की दलीलों से सहमति जताई और याचिका खारिज कर दी। जहां तक प्राधिकरण द्वारा मुआवजा न देने के संबंध में आदेश देने से पहले, याचिकाकर्ता को उसका पक्ष रखने का मौका न देने का मामला था, उसके बारे में अदालत ने कहा

''हालांकि,मामले के अजीबोगरीब तथ्य की स्थिति में, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत लागू नहीं होते हैं। यह कानून में अच्छी तरह से तय है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत एक ऐसे मामले पर लागू नहीं होते हैं जहाँ स्वीकार किए गए तथ्यों पर केवल एक निष्कर्ष संभव है।'' 


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