POCSO एक्ट के तहत बलात्कार और छेड़छाड़ के मामलों को पीड़ित और अभियुक्त के बीच समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता : इलाहाबाद हाईकोर्ट

Update: 2023-03-22 04:44 GMT

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा कि नाबालिगों से बलात्कार और छेड़छाड़ जैसे जघन्य अपराध जो प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन अगेंस्ट सेक्सुअल ऑफेंस (POCSO) एक्ट के तहत दंडनीय है, उसमें पीड़िता और आरोपी के बीच समझौते के आधार पर अभियोजन रद्द नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तरह के अपराध से जुड़े मामले में न्यायालय का प्रयास आरोपों की सच्चाई का निर्धारण करना है और इसका उद्देश्य आरोपी को इस आधार पर न प्रताड़ित करना है और न ही उसे छोड़ना है कि शिकायतकर्ता के साथ उसके संबंध खराब हो गए।

जस्टिस जे जे मुनीर की पीठ ने आरोपी के खिलाफ एक बलात्कार के मामले को रद्द करने से इनकार करते हुए कहा,

" ...(ऐसे मामलों में) पीड़ितों को समझौता करने की स्वतंत्रता नहीं है जैसे कि यह एक समझौता करने योग्य अपराध या एक सिविल मामला हो।"

आरोपी का कहना है कि उसने और नाबालिग पीड़िता ने एक-दूसरे से शादी कर ली है।

मामले में आरोपी के खिलाफ शिकायतकर्ता-विपरीत पक्षकार नंबर 1 की ओर से एफआईआर दर्ज कराई गई थी। पीड़िता ने 2020 में आरोप लगाया कि वह एक विधवा है और आवेदक से उसकी दोस्ती हो गई, जिसने उससे शादी करने का झूठा वादा किया और अगस्त 2020 में उसके साथ दुष्कर्म किया। यह भी आरोप लगाया गया कि उसकी बेटी के साथ भी आरोपी ने छेड़छाड़ की।

उक्त एफआईआर के आधार पर आरोपी पर आईपीसी की धारा 376 (1), 323, 357-ka, धारा 504, 506 और पोक्सो अधिनियम की धारा 7/8के तहत मामला दर्ज किया गया।

शिकायतकर्ता/पीड़ित ने सीआरपीसी की धारा 164 के अपने बयान में मजिस्ट्रेट के समक्ष अपने मामले का समर्थन किया। बलात्कार और छेड़छाड़ के आरोपों का भी शिकायतकर्ता की बेटी ने समर्थन किया, जो नाबालिग है।

हालांकि अगस्त 2021 में, शिकायतकर्ता और आरोपी ने हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की और इसलिए उसने विशेष न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन दिया कि वह अभियोजन को आगे नहीं बढ़ाना चाहती है और इसलिए इस समझौते के आधार पर मामले का निस्तारण किया जाना चाहिए।

उसके आवेदन के बल पर अभियुक्त ने यह कहते हुए कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए एचसी का रुख किया कि अभियोजन चलाने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा, जो न्यायालय की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा।

हालांकि, अदालत ने कहा कि इस मामले में कथित अपराध प्रकृति में गंभीर हैं, जिसमें नाबालिग से बलात्कार और छेड़छाड़ शामिल है, और ये अपराध ऐसे हैं जिन्हें समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा,

" बलात्कार का अपराध या 2012 के अधिनियम की धारा 7/8 के तहत एक अपराध समाज के खिलाफ एक अपराध है, जिसकी सच्चाई मुकदमे में जो भी सबूत दिए गए हैं। उसके आधार पर सक्षम न्यायालय के समक्ष यदि आरोप सिद्ध नहीं होता है तो अभियुक्त को बरी किया जा सकता है, या सिद्ध होने पर उसे दोषी ठहराया जा सकता है ... किसी भी स्थिति में वर्तमान जैसे मामले में यह न्यायालय शिकायतकर्ता के कहने पर अभियोजन पर रोक नहीं लगा सकता है और पार्टियों के बीच समझौते के आधार पर अभियोजन कार्यवाही को रद्द नहीं कर सकता।"

इसी के साथ याचिका खारिज कर दी गई।

संबंधित खबरों में बॉम्बे हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 19 वर्षीय छात्र के खिलाफ आईपीसी और POCSO के तहत शिकायतकर्ता की मां की सहमति से एक नाबालिग किशोरी के अपहरण और यौन उत्पीड़न के लिए दर्ज एक एफआईआर को रद्द कर दिया ।

बॉम्बे हाईकोर्ट ने शिकायतकर्ता - मां की सहमति से नाबालिग किशोरी के अपहरण और यौन उत्पीड़न के लिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत 19 वर्षीय छात्र के खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द कर दी।

जस्टिस नितिन साम्ब्रे और जस्टिस एसजी डिगे ने पाया कि युगल के बीच "दोस्ती थी और जो कुछ भी हुआ दोस्ती" में हुआ। लड़की के माता-पिता को सूचित किए बिना एक साथ रहते थे और इसी गलतफहमी के कारण एफआईआर दर्ज कराई गई।


केस टाइटल - ओम प्रकाश बनाम यूपी राज्य और अन्य [आवेदन U/S 482 No. - 8514 of 2023]

केस साइटेशन: 2023 लाइवलॉ (एबी) 104

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