पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले की जांच कर रही एएसआई को जमानत देने से इनकार किया, शिकायतकर्ता से रिश्वत लेते हुए कैमरे में कैद हुई फुटेज

Update: 2023-09-20 08:23 GMT

पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक सहायक पुलिस उप-निरीक्षक की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी है जो बलात्कार के एक मामले की जांच कर रही है और एक वीडियो में वह शिकायतकर्ता से रिश्वत लेते हुए दिखाई दी है।

जस्टिस अनूप चितकारा ने कहा,

" याचिकाकर्ता आईपीसी की धारा 376 और 328 से जुड़े एक बहुत ही जघन्य अपराध में जांचकर्ता थी। वह कथित तौर पर शिकायतकर्ता के हाथों से पैसे ले रही थी, जिसका बयान पुलिस ने सत्य नहीं पाया और आरोपी को दोषमुक्त कर दिया और इसके बजाय उसके खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी। याचिकाकर्ता का आचरण इतना विनाशकारी है कि यह न केवल जांच एजेंसी में बल्कि आम लोगों और समाज के विश्वास को भी हिला सकता है कि कैसे कुछ अनैतिक लोग दंडात्मक प्रावधानों का दुरुपयोग करते हैं।''

अदालत ने कहा कि यदि वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित नहीं हुआ होता तो एएसआई और शिकायतकर्ता के बीच इस "गुप्त सौदे" के बारे में किसी को पता नहीं चलता।

ये टिप्पणियां एएसआई प्रवीण कौर की अग्रिम जमानत याचिका पर आईं, जिस पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) सहपठित धारा 7 के तहत मामला दर्ज किया गया था।

अभियोजन पक्ष के अनुसार कौर एक सीसीटीवी फुटेज में अपनी आधिकारिक यूनिफॉर्म पहने हुए और शिकायतकर्ता से रिश्वत लेते हुए स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है, जिसने बलात्कार का मामला दर्ज कराया था। आईपीसी की धारा 376, धारा 328 आईपीसी के तहत दर्ज एफआईआर में कथित तौर पर कौर ने साइट प्लान तैयार करने के बहाने पैसे लिए।

उच्च स्तरीय जांच में पता चला कि कौर को 25,000 रुपये का भुगतान किया गया। बलात्कार मामले की शिकायतकर्ता से पहले तो 10,000 रुपये मांगे गए और उसके बाद उसने फिर से रुपये की मांग की।

अदालत ने यह भी कहा कि शिकायतकर्ता का "झूठे मामले दर्ज करने सहित आरोप लगाने का बहुत चौंकाने वाला अतीत है।" इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता, जो एक पुलिस अधिकारी है, उसे शिकायतकर्ता का शोषण शुरू करने और पैसे लेने, निर्दोष लोगों को झूठा फंसाकर न्याय के उद्देश्य में बाधा डालने का अधिकार नहीं मिलेगा।

कोर्ट ने यह जोड़ते हुए कि हालांकि वह सीसीटीवी फुटेज जिसमें कौर रिश्वत ले रही है, डीवीआर में उपलब्ध नहीं है, कहा " यह याचिकाकर्ता का मामला नहीं है कि उसे रिश्वत लेते दिखाने के लिए उसका चेहरा किसी अन्य महिला के चेहरे पर लगाया गया। "

पीठ ने आरोपों पर विचार करते हुए कहा कि यदि मामले में आरोपियों को जांच के बाद बरी कर दिया गया तो यह प्रदर्शित होगा कि याचिकाकर्ता की तरह अनैतिक और भ्रष्ट अधिकारी न केवल निर्दोष लोगों के साथ अन्याय करते हैं, बल्कि उनके पेशे की अखंडता को भी नुकसान पहुंचाते हैं।

कोर्ट ने जमानत खारिज करते हुए कहा, ' याचिकाकर्ता एक महिला है, लेकिन उसके खिलाफ लगाए गए आरोपों की गंभीर प्रकृति को देखते हुए यह कारक भी उसे जमानत देने के लिए पर्याप्त नहीं है।'

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