पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने 25 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी, भ्रूण में थीं असामान्यताएं

Update: 2020-05-22 12:15 GMT

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने बुधवार को रोपड़, पंजाब की एक 32 वर्षीय महिला की याचिका पर, उसे लगभग 25 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दे दी। यह अनुमति, एक पीजीआईएमईआर मेडिकल बोर्ड की सिफारिश के बाद दी गयी।

जस्टिस एच. एस. मदान की पीठ ने 32 वर्षीय महिला की गर्भावस्था को समाप्त करने की उसकी याचिका को अनुमति देते हुए कहा कि "पीजीआईएमईआर के मेडिकल बोर्ड द्वारा भेजी गई रिपोर्ट के मद्देनजर, यह उचित होगा कि वर्तमान रिट याचिका को अनुमति दी जाए।"

उल्लेखनीय है कि जैसा 'गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971' [Medical Termination of Pregnancy- MTP Act, 1971] के तहत निर्धारित किया गया है, यदि गर्भावस्था 20 सप्ताह के समय से अधिक है तो उसे समाप्त करने के लिए कोर्ट की अनुमति आवश्यक होती है।

यह अनुमति आमतौर पर उन मामलों में दी जाती है, जहां गर्भवती महिला के जीवन की रक्षा के लिए गर्भपात आवश्यक हो जाता है, हालाँकि विभिन्न अदालतों के हालिया फैसलों में ऐसा देखा गया है कि जहाँ भ्रूण में कुछ गंभीर अनियमितता पाई गयीं, वहां भी 20 सप्ताह से परे गर्भपात को अनुमति दी गयी है।

पिछले महीने (28-अप्रैल-2020), कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक 32 वर्षीय महिला को अपनी 25 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दी थी, क्योंकि यह पाया गया था कि भ्रूण में कई असामान्यताएं मौजूद थीं।

महिला ने खटखटाया था हाईकोर्ट का दरवाजा

दरअसल इस मामले में, 32 वर्षीय महिला ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से शुक्रवार (15-मई-2020) को यह कहते हुए संपर्क किया गया था (भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिका दायर करते हुए) कि मेडिकल साक्ष्य ऐसा सुझाव देते हैं कि भ्रूण में न्यूरोडेवलपमेंटल असामान्यता की अधिक संभावना है और गर्भावस्था जारी रहने से बच्चे को गंभीर चोट/नुकसान पहुंचेगा और यह भ्रूण के जीवन के लिए असुरक्षित और खतरनाक परिस्थिति है।

अदालत ने यह पाया था कि यह एक फिट मामला है, जहां याचिकाकर्ता-महिला को मेडिकल सुपरिटेंडेंट, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के सामने पेश होने का निर्देश दिया जाना चाहिए, जिससे उसका मेडिकल बोर्ड द्वारा 18-मई-2020 को परिक्षण किया जा सके, और जिससे उसकी गर्भावस्था की समाप्ति के बारे में एक सचेत निर्णय लिया जा सके।

बोर्ड की रिपोर्ट

अदालत द्वारा पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ को यह निर्देश दिए गए थे कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट को सुनवाई की अगली तारीख को [बुधवार (20-मई-2020)] सील्ड कवर में अदालत में पेश किया जाए।

बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट को अदालत में पेश करते हुए यह बताया कि भ्रूण के मस्तिष्क में जन्मजात विकृति है, और महिला भी अपनी गर्भावस्था के कारण मानसिक तनाव में है, जिससे भ्रूण प्रभावित होता है।

तमाम परिस्थितियों को रेखांकित करते हुए, अंत में मेडिकल बोर्ड द्वारा गर्भावस्था की समाप्ति की सिफारिश करते हुए यह टिपण्णी की गयी कि,

"स्थायी मेडिकल बोर्ड की सिफारिश है कि गंभीर जन्मजात विसंगति के कारण इस चरण में यह रोगी/महिला गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति की प्रक्रिया से गुजर सकती है। इस प्रयोजन के लिए, याचिकाकर्ता-महिला को गर्भपात की प्रक्रिया के लिए पेट के ऑपरेशन (हिस्टेरोटॉमी) से गुजरना होगा।"

मेडिकल बोर्ड द्वारा हाईकोर्ट के संज्ञान में यह बात भी लायी गयी कि डॉक्टर, हिस्टेरोटॉमी द्वारा गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति से पहले, भ्रूण में अल्ट्रासाउंड मार्गदर्शन के तहत इंट्रा-कार्डियक पोटेशियम क्लोराइड इंजेक्शन की प्रक्रिया को अपना सकते हैं, ताकि भ्रूण को जीवित पैदा होने से रोका जा सके।

अदालत का आदेश

रिट याचिका को स्वीकार करते हुए अदालत द्वारा पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ को यह निर्देश दिया गया कि उनके द्वारा, महिला की गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति (Medical Termination of Preganancy) को अंजाम दिया जाए।

अदालत ने यह भी कहा कि इस उद्देश्य के लिए, आवश्यक सभी उपाय/सावधानी बरती जाए, जिससे याचिकाकर्ता के जीवन पर न्यूनतम जोखिम हो। इसके अलावा, इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि याचिकाकर्ता-महिला की गर्भावस्था उन्नत चरण (Advanced stage) में है, अदालत ने कहा कि गर्भ का चिकित्सीय समापन जल्द से जल्द किया जाना चाहिए।

अदालत ने अपने आदेश में याचिकाकर्ता की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह भी देखा कि,

"चूंकि यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता गरीब व्यक्ति हैं, इसलिए पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़ के संबंधित अधिकारी आवश्यक सीमा तक अस्पताल और चिकित्सा शुल्क माफ करने पर विचार कर सकते हैं।"

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहाँ क्लिक करें



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