'मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव': कर्नाटक हाईकोर्ट ने नाबालिग बलात्कार पीड़िता को 22 हफ्ते 3 दिन की गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने हाल ही में एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता को अपनी 22 हफ्ते 3 दिन की गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी।
कोर्ट ने देखा कि इसे जारी रखने से डिप्रेशन हो सकती है। इससे उसके मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है।
न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज की एकल पीठ ने कहा,
"मेरा मानना है कि यह याचिकाकर्ता-पीड़िता के हित में होगा कि गर्भ को समाप्त कर दिया जाए।"
इसके बाद कोर्ट ने जिला सिविल अस्पताल (बेलगावी) को निर्देश दिया कि वह इस तरह की प्रक्रिया के लिए सभी आवश्यक सुरक्षा को अपनाकर याचिकाकर्ता की गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करें।
इसके अलावा, यह निर्देश दिया गया कि भ्रूण के डीएनए सैंपल को डीएनए रिपोर्ट प्रदान करने के लिए तुरंत फोरेंसिक साइंस लेबोरेटरी, बेंगलुरु भेजा जाएगा ताकि आवश्यकता पड़ने पर आरोपी के डीएनए के साथ तुलना की जा सके।
आदेश दिया,
"भ्रूण को इस तरह से संरक्षित किया जाएगा कि भविष्य में टेस्ट के लिए डीएनए सैंपल प्राप्त करने में सक्षम हो। भ्रूण को परीक्षण की समाप्ति तक संरक्षित किया जाएगा।"
क्या है पूरा मामला?
नाबालिग पीड़िता ने अपने पिता के माध्यम से अदालत का दरवाजा खटखटाया और प्रतिवादी नंबर 2 को तुरंत उसकी गर्भ को चिकित्सकीय रूप से समाप्त करने के निर्देश देने की मांग की थी।
याचिकाकर्ता आईपीसी की धारा 363, 366-ए, 376(2)(एन) और 506 के साथ पठित यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 की धारा 4 और 6 के तहत अपराध की शिकार थी। उक्त अपराध के कारण पीड़िता गर्भवती हुई और 22 सप्ताह की गर्भ थी।
कोर्ट का फैसला
याचिका दायर करने पर अदालत ने मामले को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा 3 (2) (ए) के तहत गठित मेडिकल बोर्ड को भेज दिया।
बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अगर प्रक्रिया नहीं की जाती है, यह याचिकाकर्ता के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है और यदि गर्भावस्था जारी रहती है, तो इससे मां को शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से गंभीर/गंभीर चोट लग सकती है, क्योंकि यह एक उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था है।
इसके अलावा इसमें कहा गया है कि अगर याचिकाकर्ता को अपनी गर्भ जारी रखनी है तो वह डिप्रेशन हो सकती है, जिससे अवसाद उसके मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।
बोर्ड ने यह भी राय दी कि याचिकाकर्ता को गर्भ को समाप्त करने की आवश्यकता है, जोखिम के बावजूद जो उक्त रिपोर्ट में कहा गया है।
खंड 3 (2) (बी) पर भरोसा करते हुए पीठ ने कहा,
"मौजूदा मामले में गर्भ 22 सप्ताह 3 दिन का है, जो अधिनियम की धारा 3 (2) (बी) के तहत 24 सप्ताह की निर्धारित अवधि के भीतर है। मेडिकल बोर्ड का मत है कि जोखिम के बावजूद गर्भ को समाप्त किया जा सकता है। इसे देखते हुए, मेरी राय है कि यह याचिकाकर्ता-पीड़िता के हित में होगा कि गर्भ को समाप्त कर दिया जाए।"
केस की शीर्षक: कुमारी एम. वी. कर्नाटक राज्य
केस नंबर: रिट याचिका संख्या 100875/2022
प्रशस्ति पत्र: 2022 लाइवलॉ (कर) 68
आदेश की तिथि: 05 मार्च, 2022
उपस्थिति: याचिकाकर्ता के लिए एडवोकेट शरद वी. मगदुम; प्रतिवादी के लिए एडवोकेट शिवप्रभु हिरेमठ