तमिलनाडु के एडवोकेट जनरल विजय नारायण ने न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी करने के आरोप में साप्ताहिक पात्रिका 'तुग़लक' के संपादक स्वामीनाथन गुरुमूर्ति के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने की सहमति देने के लिए दायर दो आवेदनों पर नोटिस जारी किए हैं।
गुरुमूर्ति को 16 फरवरी, 2021 को एडवोकेट जनरल के समक्ष या तो व्यक्तिगत रूप से या वकील के माध्यम से पेश होने के लिए कहा गया है।
पृष्ठभूमि
एडवोकेटओं पी पुगलन्थी और एस दोराईसामी की ओर से दायर आवेदनों में आरोप लगाया गया है कि गुरुस्वामी की टिप्पणियों ने न्यायालयों को अपमानित किया है और न्यायपालिका में जनता का विश्वास कम किया है।
14 जनवरी को पत्रिका के वार्षिक कार्यक्रम के दरमियान, गुरुमूर्ति ने कथित तौर पर कहा था कि "अधिकांश जज बेईमान और अयोग्य हैं और राजनेताओं के पैरों में गिरकर हाईकोर्ट के जज बने हैं।"
एडवोकेट पी पुगालेन्थी ने कहा कि गुरुमूर्ति के भाषण को सुनने भर से यह समझा आता है कि उनका इरादा जनता के मन में न्यायपालिका के सम्मान को कम करना था।
उन्होंने कहा, "प्रतिवादी ने अपने भाषण में स्पष्ट रूप से कहा है कि बहुत से जजों ने नेताओं के चरणों में काम करके नियुक्ति पाई है और इसलिए उनकी भ्रष्ट राजनेताओं के प्रति सहानुभूति रहेगी। इस प्रकार, प्रतिवादी पूरी दुनिया में यह घोषणा करने में कोई कमी नहीं रखी है कि नेताओं के हाथों नियुक्त जजों से न्याय नहीं होगा। प्रतिवादी के शब्दों से लोगों का न्यायपालिका में विश्वास कम होगा और अंततः कानून का शासन खत्म होगा।"
मामले में एसके सरकार बनाम विनय चंद्र मिश्रा, एआईआर 1981 एससी 723 में भरोसा रखा गया, जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि न्यायालय अपने विवेकाधिकार से अवमानना में दी गई सूचना के आधार पर, एजी की सहमति के बिना, मामले का स्वत: संज्ञान ले सकता है।
इस बीच, एडवोकेट एस दोराईसामी ने महाधिवक्ता विजय नारायण को पत्र लिखकर अवमानना का मुकदमा चलाने के लिए कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट्स एक्ट, 1971 की धारा 15 (बी) के तहत सहमति मांगी थी।
पत्र में, दोराईसामी ने कहा था कि गुरुमूर्ति के झूठे, अपमानजनक और बेईमानी से भरे भाषण ने न्याय के प्रशासन में जनता के विश्वास को कम किया है और उच्च न्यायालय का अपमान और अनादर किया है, जो आपराधिक अवमानना है।
उन्होंने पत्र में आगे कहा है, "अवमाननाकर्ता के अनुसार, उच्च न्यायालय के अधिकांश जज अयोग्य हैं और उन्हें अवैध तरीके से नियुक्त किया जाता है। यह जजों के खिलाफ गलत और घटिया बयान है। मद्रास उच्च न्यायालय के लगभग सभी जजों को उनकी योग्यता के आधार पर नियुक्त किया गया है। मद्रास उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने उनके नामों को चुना था और इसे सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के पास भेज दिया, और फिर उनके नाम कानून मंत्रालय को भेज दिए गए। कानून मंत्रालय ने इंटेलिजेंस ब्यूरो का नाम आगे बढ़ा दिया। फिर इंटेलिजेंस ब्यूरो ने सभी नामों की ईमानदारी और योग्यता की गहन जांच की और यदि रिपोर्ट में यह पाया जाता है कि उम्मीदवार अयोग्य है तो उसका नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस कर दिया जाता।"
उन्होंने कहा, "कॉलेजियम प्रणाली के आने के बाद,सरकार के परामर्श की संवैधानिक आवश्यकता के अनुसार कार्य किया गया है और परामर्श औपचारिक है। इस प्रकार किसी राजनेता के पास उच्च न्यायालय की नियुक्ति में हस्तक्षेप करने का कोई मौका नहीं है। और केवल ईमानदार जजों और मेधावी व्यक्तियों को उच्च न्यायालय के जज के रूप में चुना जाता है।"
उल्लेखनीय है कि गुरुमूर्ति अपनी टिप्पणियों पर पहले भी खेद व्यक्त कर चुके हैं और स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी टिप्पणी पूरी तरह से अनापेक्षित थी, और एक उत्तेजक सवाल के जवाब के रूप में थी।
यह पहला मौका नहीं है जब गुरुमूर्ति विवादित टिप्पणी की है। दो साल पहले, उन्हें जस्टिस एस मुरलीधर के खिलाफ ट्वीट के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के सामने अवमानना कार्यवाही का सामना करना पड़ा। हालांकि, डिवीजन बेंच के समक्ष बिना शर्त माफी मांगने के बाद उन्हें छोड़ दिया गया।