समझौता आवेदन, सहमति से तलाक़ की अर्ज़ी और श्योरिटी स्वीकार करने के लिए पक्षकारों को कोर्ट में सशरीर मौजूद रहने की ज़रूरत नहीं : कर्नाटक हाईकोर्ट
कर्नाटक हाईकोर्ट ने कहा है कि पक्षकारों की हस्ताक्षर युक्त सुलह की अर्ज़ी को उनके वकील अदालत में अगर पेश करते हैं तो उसके आधार पर फ़ैसला करना अदालत के लिए क़ानून सम्मत है, भले ही पक्षकर सशरीर अदालत में मौजूद न हों।
इसके अलावा यह भी कहा गया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13B और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 28 के तहत मामलों की सुनवाई वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हो सकती है।
मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और जस्टिस विश्वजीत शेट्टी की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।
इस मामले में एमिकस क्यूरी उदय होल्ला ने बाइरम पेस्तोनज़ी गरिवाला बनाम यूनियम बैंक ऑफ़ इंडिया एवं अन्य, पुष्पा देवी भगत (मृत) वाया एलआर साधना राय बनाम राजिंदर सिंह एवं अन्य और डेप्युटी जनरल मैनेजर बनाम कमप्पा मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों का हवाला दिया।
पीठ ने कहा कि इन मामलों में आए फ़ैसले इस बात की पुष्टि करते हैं कि दोनों पक्षों के वकीलों को सुलह की याचिका पर हस्ताक्षर करने का अधिकार है।
अदालत ने वकीलों की ओर से किसी भी तरह की धोखाधड़ी की आशंका के सवाल पर कहा,
"पक्षकारों द्वारा वकीलों पर किसी तरह के आरोपों से बचने के लिए वकीलों को यह सलाह दी जा रही है कि वे सुलह की याचिका के समर्थन में वे पक्षकारों से हलफ़नामा ले लें जिसमें वे इस बात का खुलासा करें कि वे सुलह की अर्ज़ी में जो बातें कही गई हैं, उन्हें समझते हैं और उन्होंने इस पर अपनी मर्ज़ी से हस्ताक्षर किया है।"
अदालत ने कहा कि वह हर मामले में पक्षकारों को अदालत में उपस्थित होने पर जोर नहीं डाल सकती।
जहां तक आपसी सहमति से तलाक़ के मामले में फ़ैसले की बात है, संतिनी बनाम विजया वेंकटेश मामले का हवाला देते हुए अदलत ने कहा कि अगर दोनों पक्ष वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से मामले की सुनवाई कि लिए हामी भर देते हैं तो फ़ैमिली कोर्ट वीडियो कंफ्रेंसिंग के माध्यम से इसकी सुनवाई कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि जहां तक साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग की बात है, फ़ैमिली कोर्ट इस बारे में वीडियो कंफ्रेंसिंग के लिए जो दिशानिर्देश इस कोर्ट ने तय किए हैं, उस पर चल सकता है। यहां तक कि गवाही देनेवाले पक्ष की पहचान भी वह इन नियमों के माध्यम से कर सकता है।
आरोपी को ज़मानत पर छोड़ने के समय श्योरिटी स्वीकार किए जाने के बारे में नियम
अदालत ने कहा-
#आरोपी के वकील ज़मानत बॉन्ड श्योरिटी के हलफ़नामे के साथ पेश कर सकता है। उसे इसके साथ मूल दस्तावेज़ों की सच्ची प्रतिलिपि, पैन, आधार आदि जैसे पहचान पत्र, पते का सबूत, उसके क़ब्ज़े की प्रॉपर्टी के दस्तावेज़ भी पेश किए जा सकते हैं। ये सारे दस्तावेज स्वप्रमाणित होंगे और आरोपी के लिए इसकी पहचान वक़ील करेगा।
#वक़ील श्योरिटी के हस्ताक्षर के नीचे हस्ताक्षर कर इसकी पहचान करेगा और कर्नाटक बार काउंसिल में उसके खुद के पंजीकरण नम्बर का उल्लेख होगा।
#हलफ़नामे पर श्योरिटी का हाल का फ़ोटो लगेगा और उस पर वक़ील का हस्ताक्षर होगा कि वह श्योरिटी को पहचानता है।
#अदालत चाहे तो किसी भी मामले में वक़ील से मूल दस्तावेज़ों को दिखाने को कह सकती है।
#श्योरिटी के हलफ़नामे में शपथपत्र शामिल होगा जिसमें उसके क़ब्ज़े की प्रॉपर्टी का मूल्य आदि का विवरण होगा। उसे आवश्यक रूप से यह दस्तावेज़ी घोषणा करनी होगी कि उसने जो दस्तावेज पेश किए हैं वे सही हैं। हलफ़नामे में यह बताना होगा कि जो हलफनामा दे रहा है उसने श्योरिटी बॉन्ड पर हस्ताक्षर किया है।
#इन औपचारिकताओं के बाद संबंधित क्षेत्राधिकार वाली अदालत इनकी जांच कर सकती है कि श्योरिटी सही और पर्याप्त है कि नहीं ।
#सीआरपीसी की धारा 441 और उपधारा 4 के तहत श्योरिटी की अदालत में मौजूदगी आवश्यक नहीं है, लेकिन अगर अदालत को श्योरिटी की पहचान या दस्तावेज़ों की वास्तविकता के बारे में कोई संदेह है तो अदालत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से श्योरिटी को उपस्थित होने के लिए कह सकता है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के नियमों के तहत श्योरिटी की पहचान साबित की जा सकती है।
#इस जांच के संतोषप्रद पाए जाने और श्योरिटी स्वीकार किए जाने के बाद ही उस व्यक्ति को छोड़ा जा सकता है।
पीठ ने अंत में कहा कि COVID-19 महामारी के कारण अदालत में वकीलों के अलावा पक्षकारों और अन्य मुक़दमादारों के अदालत में प्रवेश पर रोक है और इसलिए श्योरिटी को स्वीकार करने के बारे में उपरोक्त नियमों का पालन किया जा सकता है।
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