पटना हाईकोर्ट ने पत्नी के मेंटेनेंस के खिलाफ पति की याचिका खारिज की,कहा साथ रहने से इनकार करना बेवजह नहीं
पटना हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट, कटिहार के अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ एक पति द्वारा दायर एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उसे अपनी पत्नी और नाबालिग बेटे को 4000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण का भुगतान करने का निर्देश दिया गया था। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि पत्नी को भरण-पोषण देना आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 (4) के तहत वर्जित है क्योंकि उसने बिना किसी उचित कारण के उसके साथ रहने से इनकार कर दिया था।
जस्टिस डॉ. अंशुमन ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा, ‘‘रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर ट्रायल कोर्ट द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों को देखने पर, मुझे यह पता चला है कि सीआरपीसी की धारा 125(4) के घटक याचिकाकर्ता के लिए उपलब्ध नहीं है क्योंकि पति के साथ नहीं रहना अकारण नहीं है।’’
अदालत ने निचली अदालत के समक्ष पत्नी की स्पष्ट प्रस्तुति पर ध्यान दिया कि ‘‘यदि उसका पति उसे उचित सम्मान के साथ रखेगा और वह अपना व्यवहार बदलेगा तभी वह उसके साथ निवास करेगी अन्यथा नहीं।’’ यह भी सामने आया है कि पति पत्नी के परिवार के संबंध में शिकायत करता था जो उसे स्वीकार्य नहीं था।
पति-याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने उसे प्रताड़ित और अपमानित किया था और उसने उसके खिलाफ वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक आवेदन दायर किया था। फैमिली कोर्ट ने उसके आवेदन को स्वीकार कर लिया था और उसके पक्ष में फैसला सुनाया था। हालांकि, पत्नी इस मामले में उपस्थित नहीं हुई और याचिकाकर्ता ने निष्पादन का मामला दायर किया, लेकिन उसने उसमें भी भाग नहीं लिया।
पति ने आगे बताया कि उसकी पत्नी ने उसके और उसके परिवार के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और दहेज निषेध अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत शिकायत दर्ज कराई थी। उसने दावा किया कि वह अपने बेटे के लिए भरण-पोषण का भुगतान करने को तैयार है, लेकिन अपनी पत्नी को नहीं, क्योंकि उसने बिना किसी वैध कारण के उसके साथ रहने से इनकार कर दिया था।
हालांकि, पत्नी ने कहा कि पति ने दहेज की मांग की थी और मांग पूरी नहीं होने के कारण उसे रखने से इनकार कर दिया था। उसने आरोप लगाया कि पति के व्यवहार और उसके परिवार के खिलाफ उसकी शिकायतों के कारण उसे अपने मायके में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा।
केस टाइटल- एएम उर्फ एके बनाम पीडी
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