पटना हाईकोर्ट ने बिहार में जनजाति शोध संस्थान की स्थापना के मामले में मुख्य सचिव को दो सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया
पटना हाईकोर्ट (Patna high Court) ने बिहार में जनजाति शोध संस्थान खोलने के मामले में राज्य के मुख्य सचिव को दो सप्ताह के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया है।
चीफ जस्टिस संजय करोल (Chief Justice Sanjay Karol) और जस्टिस एस. कुमार (Justice S.Kumar) की खंडपीठ बिहार आदिवासी अधिकार फोरम (Bihar Adiwasi Adhikar Forum) की तरफ से दायर जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें जनजातियों के कल्याण के लिए जनजाति शोध संस्थान स्थापित करने की मांग की गई थी।
कोर्ट ने मुख्य सचिव को अपना निर्णय हलफनामे पर दायर करने का निर्देश भी दिया।
आज की सुनवाई में राज्य की ओर से पेश एडवोकेट प्रशांत प्रताप अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग के सचिव के निर्देश के तहत कोर्ट को बताया कि राज्य ने कोई जनजातीय अनुसंधान संस्थान स्थापित नहीं है। संस्थान को स्थापित करने का पूरा खर्च केंद्र सरकार को उठाना है और संस्थान के सारे स्टाफ का खर्च राज्य सरकार वहन करेगी।
याचिकाकर्ता के वकील विकास पंकज ने कोर्ट को बताया कि केंद्र सरकार के जनजाति कल्याण मंत्रालय से जारी दिशा निर्देश के अनुसार जनजाति के कल्याण एवं उनके संरक्षण हेतु एक शोध संस्थान (टीईआरआई ) बनाने का भी प्रावधान है।
कोर्ट ने देखा कि संस्थान की स्थापना और संचालन के लिए, शायद, राज्य सरकार को कोई पैसा खर्च नहीं करना है। संस्थान द्वारा की जाने वाली योजनाओं के लिए वित्त पोषण के लिए 100% अनुदान सहायता केंद्र सरकार (जनजातीय मामलों के मंत्रालय) को करना है।
आगे कहा कि हम यह भी देखते हैं कि एक शीर्ष निकाय पहले से ही केंद्र सरकार द्वारा गठित है। मुद्दों की पहचान करें; बिहार राज्य के भीतर अनुसूचित जनजाति के लोगों द्वारा जारी समस्याओं का समाधान खोजें। जनजातीय के सामाजिक-आर्थिक विकास के क्षेत्र में चुनौतियां, निस्संदेह, संवैधानिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण और नितांत अनिवार्य हैं, जैसा कि भारत के संविधान के भाग -4 और भाग 16 के तहत परिकल्पित है।
यदि राज्य सरकार द्वारा शुरू की गई कोई परियोजना पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित की जानी है, तो हम यह समझने में विफल रहते हैं कि क्यों चार साल से अधिक समय से सरकार इस मामले पर सोई है।
कोर्ट ने इंगित किया गया कि भारत सरकार के कम से कम 19 राज्यों ने पहले ही इस तरह की स्थापना की है।
बेंच ने इस मामले में कहा कि हम मुख्य सचिव, बिहार सरकार (प्रतिवादी संख्या 4) को निर्देश देते हैं कि 14 दिसंबर, 2017 के संचार के आधार पर सकारात्मक निर्णय लें।
कोर्ट ने देखा है कि एक व्यक्ति ने पहले ही मुख्य सचिव, बिहार सरकार से दिनांक 24 मई, 2021 के संचार के माध्यम से उचित कार्रवाई करने का अनुरोध किया था।
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने आदेश दिया था,
"एक छोटा मुद्दा जो विचार के लिए उठता है कि क्या आदिवासी अनुसंधान संस्थान बिहार राज्य के भीतर स्थापित है या नहीं? इसके साथ ही जिस स्थान पर इसे रखा गया है। इस तरह की कवायद भारत सरकार, जनजातीय मामलों के मंत्रालय के दिनांक 14 दिसंबर, 2017 के संचार के संदर्भ में की जानी चाहिए।"
अब मामले की अगली सुनवाई 26 अप्रैल 2022 को होगी।
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट विकास कुमार पंकज और एडवोकेट प्रत्युश कुमार पेश हुए। केंद्र सरकार की ओर एसजी के.एन.सिंह, सीजीसी तुहीन शंकर, एएसजी आर्दश कुमाप भारद्वाज पेश हुए और राज्य की ओर से एडवोकेट प्रशांत प्रताप पेश हुए।
केस का शीर्षक: बिहार आदिवासी अधिकार फोरम बनाम भारत संघ