मृतका के गोत्रज को नहीं भेजा नोटिस, याचिकाकर्ता उनसे 'विल' का अस्तित्व छिपाने की कोशिश कर रहा है: झारखंड हाईकोर्ट ने प्रोबेट आवेदन खारिज किया
झारखंड हाईकोर्ट ने एक ऐसे मामले में हैरानी व्यक्त की, जिसमें उस मृतका के गोत्रज (एग्नेट्स) को नोटिस नहीं जारी किया गया था, जिसकी कथित वसीयत को आवेदक द्वारा निष्पादित करने की मांग की गई थी। इसने कहा कि इलाके में कोई सामान्य नोटिस जारी नहीं किया गया था और इसे केवल सरकार को भेजा गया था।
इस प्रकार प्रोबेट (मृत लेख प्रमाण) आवेदन को खारिज करने के खिलाफ अपील पर विचार करने से इनकार करते हुए न्यायमूर्ति आनंद सेन ने कहा,
"यह एक ऐसी स्थिति है, जो न्यायालय की अंतरात्मा को झकझोरती है। यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि मृतका के जीवित गोत्रज को पक्षकार क्यों नहीं बनाया गया और न ही इलाके में सामान्य नोटिस जारी किए गए। अपीलकर्ता की ओर से पेश वकील ने भी कोई उचित स्पष्टीकरण नहीं दिया। इससे पता चलता है कि दावेदार वसीयत के अस्तित्व को मृतका के गोत्रज (एग्नेट्स) से छिपाने की कोशिश कर रहा है।"
याचिकाकर्ता ने भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 276 के तहत वसीयत के प्रोबेट की मंजूरी के लिए प्रार्थना करते हुए एक याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि मृतका मुतारी का कोई कानूनी उत्तराधिकारी नहीं था, वह उससे उसकी देखभाल करने का अनुरोध करती है और उसके बदले में उसके पक्ष में एक वसीयत निष्पादित की जाती है। महिला की मौत के बाद वसीयत अपंजीकृत ही रहा, क्योंकि कोई निष्पादक नहीं था। इसके बाद याचिकाकर्ता ने प्रोबेट की मंजूरी के लिए याचिका दायर की थी।
ट्रायल कोर्ट ने माना कि वसीयत को ठीक से निष्पादित नहीं किया गया था और उक्त दस्तावेज भरोसेमंद नहीं है एवं संदिग्ध है।
अपील में, हाईकोर्ट ने 'शिवकुमार और अन्य बनाम शरणबसप्पा एवं अन्य' के मामले का उल्लेख किया और यह माना कि यदि कोई संदिग्ध परिस्थितियां हैं, तो कोर्ट की संतुष्टि के लिए उन परिस्थितियों की व्याख्या का दायित्व प्रस्तावक पर है। स्पष्टीकरण से पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद ही यह देखा गया कि कोर्ट को वसीयत की प्रोबेट की अनुमति देनी चाहिए।
इसने टिप्पणी की,
"यहां तक कि वसीयत के निष्पादन के संबंध में धोखाधड़ी, जबरदस्ती या अनुचित प्रभाव की किसी भी दलील के अभाव में, अगर ऐसी परिस्थितियां हैं, जो वसीयत की वास्तविकता के बारे में संदेह पैदा करती हैं, तो कोर्ट को संतुष्ट करने की जिम्मेदारी प्रतिपादक पर है।''
इस प्रकार यह माना गया कि वसीयत के निष्पादन में, उक्त वसीयत के आसपास की सभी परिस्थितियां संदेह से परे होनी चाहिए, और हर संदेह की प्रतिपादक द्वारा ठीक से व्याख्या करनी चाहिए। इसने पूर्व के कई उदाहरणों का उल्लेख करते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि यदि वसीयत की वास्तविकता को लेकर मजबूत संदेह है और यदि ऐसी कोई परिस्थिति है कि उक्त वसीयत के निष्पादन में कुछ संदेह के आधार मौजूद हैं, तो कोर्ट प्रोबेट की मंजूरी देने से इनकार कर सकता है।
कोर्ट ने मौजूदा मामले में कानून के प्रस्ताव और सबूतों को ध्यान में रखते हुए कहा कि गवाहों के बयान के बीच एक विसंगति नजर आती है। एक और बात जो कोर्ट ने नोट की, वह यह है कि आवेदक ने अपने एक्जामिनेशन-इन-चीफ में (जो उसके द्वारा शपथ लिया गया एक टाइप किया हुआ और विधिवत हलफनामा दस्तावेज है) कहा है कि वह मृतका मुतारी का मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत कर रहा है, लेकिन जब पूरा रिकॉर्ड रखा गया तो उसमें मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं था।
कोर्ट ने कहा कि जिला जज ने इन सभी विसंगतियों को देखते हुए आवेदन को सही ही खारिज किया था। गवाह भरोसेमंद नहीं हैं, और वसीयत के निष्पादन के बारे में संदेह है।
केस शीर्षक: राम कुमार सिंह बनाम झारखंड सरकार
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