मास मीडिया का राष्ट्रीयकरण करने के लिए कोई निर्देश नहीं दिया जा सकता : कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2020-03-13 03:15 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने उस याचिका पर विचार करने से इंकार कर दिया है, जिसमें देश की रक्षा, सुरक्षा और अखंडता के हित में बड़े पैमाने पर मास मीडिया का राष्ट्रीयकरण करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश अभय ओका और न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर की खंडपीठ ने एक गायत्री रविशंकर की तरफ से दायर याचिका का निपटारा करते हुए कहा, ''यदि सभी सरकार राष्ट्रीयकरण के मुद्दे पर विचार करना चाहती हैं, तो यह एक कानून या विधान के माध्यम से करना होगा।''

याचिका में सभी निजी मीडिया संगठनों को एक पक्षकार बना दिया था। इसमें मांग की गई थी कि देश की रक्षा, सुरक्षा और अखंडता के हित में बड़े पैमाने पर मीडिया का राष्ट्रीयकरण करने के लिए प्रतिवादी सरकार को निर्देश देने के लिए परमादेश जारी किया जाए।

पीठ ने कहा,

''पहले दो अनुरोध के सार में, जहां एक विशेष तरीके से कानून बनाने के लिए परमादेश जारी करने वाली प्रार्थना की गई है, इस तरह की रिट भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका में जारी नहीं की जा सकती है।''

पीठ ने यह भी कहा कि

''इस संबंध में प्रार्थना कि, क्या भारत सरकार को मास मीडिया में विदेशी निवेश की अनुमति देनी चाहिए? यह एक नीतिगत मामला है और इसलिए, एक रिट कोर्ट इस तरह की नीति में हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। यदि याचिकाकर्ता इस तरह की नीति से सहमत नहीं है, तो वह कभी भी संबंधित सरकार को उचित प्रतिनिधित्व सौंप सकता है या दे सकता है।''

याचिकाकर्ताओं के वकील ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता की शिकायतें वास्तविक हैं और वास्तव में, भारतीय प्रेस परिषद ने भी इसका समर्थन किया है। उन्होंने जनसंचार माध्यमों में प्रसाारित आपत्तिजनक सामग्री दिखाने के लिए याचिका दायर करने के बाद पेश की गई तस्वीरों और अन्य सामग्री का भी हवाला दिया।

पीठ ने कहा कि

''जैसा कि साथी या सहयोगी याचिका, डब्ल्यू.पी 13677/2012 में बताया गया है, समाचार प्रसारण मानक प्राधिकरण का गठन किया गया है। इसके अलावा, मीडिया और विशेष रूप से टेलीविजन मीडिया के खिलाफ शिकायतों पर विचार करने के लिए राज्य स्तर पर और साथ ही जिला स्तर पर भारत सरकार के निर्देशों के अनुसार निगरानी समितियों का गठन किया गया है। इसके अलावा, अगर कोई अपराध में शामिल है या उसने अपराध किया है,तो याचिकाकर्ता हमेशा आपराधिक कानून को गति दे सकता है या उसका सहारा ले सकता है।''

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