रेलवे के प्रदूषण संभावित कारणों वाले स्टेशन पर्यावरण कानून से परे नहीं : एनजीटी

Update: 2019-12-17 01:45 GMT

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रिंसिपल बेंच ने कहा है कि प्रमुख रेलवे स्टेशनों को जल अधिनियम और वायु अधिनियम के तहत स्थापना/ विस्तार के लिए सहमति और संचालित करने के लिए अनुमति प्राप्त कर लेनी चाहिए। अगर तीन महीने के भीतर यह अनुमति प्राप्त नहीं की गई तो राज्य, बोर्ड जल और वायु अधिनियम के प्रावधानों के तहत कानून के अनुसार आवश्यक कार्रवाई करेगा।

चेयरपर्सन जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की अगुवाई वाली पीठ एक सलोनी सिंह द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें रेलवे स्टेशनों पर होने वाले प्रदूषण पर प्रकाश ड़ाला गया था। इस संबंध में रेलवे द्वारा सूचित किया गया कि पांच मार्च 2016 को एमओईएफ एंड सीसी द्वारा जारी विज्ञप्ति के मद्देनजर स्टेशनों को जल (प्रदूषण की रोकथाम व नियंत्रण) अधिनियम 1974, वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1984 और खतरनाक सामग्री अधिनियम, 2016 के तहत सहमति प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है।

इसके अलावा, रेलवे स्टेशनों में यात्रियों के इंटरचेंज और प्लेटफॉर्म पर आवाजाही और ठहरने के लिए बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध करना भी शामिल है, इसलिए सीपीसीबी द्वारा जिन नियामक पर्यावरण नियम को ध्यान में रखा गया है, वह रेलवे स्टेशनों के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। कोई उत्पादन/ विनिर्माण उद्योग गतिविधि रेलवे स्टेशनों पर नहीं होती है और इसलिए जल अधिनियम, वायु अधिनियम और खतरनाक नियम लागू नहीं होते हैं।

पीठ ने कहा,

''हम उक्त अधिसूचना को समझने में असमर्थ हैं। एक तरफ इसका मतलब यह है कि रेलवे स्टेशन या रेलवे प्रशासन की गतिविधियां, वायु अधिनियम, जल अधिनियम या पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 (ईपी अधिनियम) को आकर्षित नहीं करती हैं।

वहीं तथ्य यह है कि एमओईएफ एंड सीसी ने कुछ श्रेणियों की सूची में रेलवे गतिविधियों को शामिल किया है, जिसमें उद्योगों की 'लाल श्रेणी' भी शामिल है, जो यह संकेत दे रही है कि एमओईएफ एंड सीसी रेलवे प्रशासन को ईपी अधिनियम के दायरे में मानते हैं क्योंकि उक्त श्रेणीबद्धता स्वयं उक्त अधिनियम के संदर्भ के साथ है।''

न्यायाधिकरण ने उत्तर प्रदेश के फैजाबाद स्थित रेलवे गोदाम और उसके आसपास की प्रदूषणकारी गतिविधियों के संबंध में उनके द्वारा पारित एक आदेश का भी हवाला दिया। इस आदेश में 16 वीं लोकसभा की लोक लेखा समिति या पब्लिक एकाउंट कमेटी की टिप्पणियों का हवाला दिया गया था,जिनमें कहा गया था कि जल अधिनियम और वायु अधिनियम के तहत सहमति या अनुमति लेने का तंत्र, रेलवे प्रशासन पर भी लागू होता है।

ट्रिब्यूनल ने कहा,

''इस प्रकार, यह स्पष्ट है कि जहां भी ठोस और तरल अपशिष्ट और गैसीय उत्सर्जन की महत्वपूर्ण उत्पति है, जल अधिनियम और वायु अधिनियम आकर्षित होते हैं ताकि नियामक कार्यों का प्रयोग किया जा सके।

यह मानने का हर कारण है कि प्रमुख रेलवे स्टेशन (जैसे कि रेलवे प्रशासन द्वारा वर्गीकृत) ठोस अपशिष्ट उत्पन्न कर रहे हैं और तरल अपशिष्ट जल का निर्वहन करने के साथ-साथ गैसीय उत्सर्जन कर रहे हैं जब तक कि इसके विपरीत नहीं दिखाया जाता है या कुछ पाया जाता है। इस तरह के परीक्षण को लागू करते हुए, यह माना जाना चाहिए कि ऐसे स्टेशन जल अधिनियम और वायु अधिनियम के नियामक शासन द्वारा शासित हैं, जब तक कि इसके विपरीत नहीं दिखाया जाता है। ऐसे प्रमुख रेलवे स्टेशनों को, नियामक के शासन से कोई ब्लैंगकिट या व्यापक बहिष्करण या छूट नहीं मिल सकती है।''

ट्रिब्यूनल ने रेलवे के इस दलील को भी खारिज कर दिया कि प्रतिबंधित अर्थ को वायु अधिनियम की धारा 21 के तहत 'औद्योगिक' शब्द के लिए दिया जाना चाहिए।

इसमें कहा गया है 'यह अस्थिर है'। अधिनियम का उद्देश्य वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना है और यदि रेलवे स्टेशन पर गतिविधियों द्वारा वायु प्रदूषक को वायुमंडल में उत्सर्जित किया जाता है तो इसे वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लिए उपचारात्मक उपायों की परिभाषा से बाहर नहीं रखा जा सकता है। बेशक, अगर इस तरह के उत्सर्जन के लिए कोई गुंजाइश नहीं है, तो भी इन स्टेशन पर गतिविधियों की संभावना के आधार पर ऐसे रेलवे स्टेशन को बाहर नहीं रखा जा सकता है। प्रमुख स्टेशनों को प्रथम दृष्टया बाहर नहीं किया जा सकता है।

ट्रिब्यूनल ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों में ठोस अपशिष्ट, प्लास्टिक कचरा, जैव-चिकित्सा अपशिष्ट, खतरनाक अपशिष्ट, सीएंडडी अपशिष्ट, ई-कचरा नियम शामिल हैं,जिनको लागू होने तक,सभी प्रमुख रेलवे स्टेशनों द्वारा अनुपालन किया जाना चाहिए है।

''ईपी अधिनियम छाता या अंब्रेला कानून है जो पर्यावरण संरक्षण के विषय पर नियमों को लागू करने और दिशा-निर्देश जारी करने के लिए केंद्र सरकार को सक्षम बनाता है। कचरे के हर जनक या उत्पन्न करने वाले पर बनाए गए नियम लागू होते हैं और 16 दिसम्बर 2019 को एनजीटी ने कहा कि रेलवे के प्रमुख स्टेशनों में प्रदूषण की संभावना है, जो उस स्थान पर पर्यावरणीय कानून से परे नहीं हैं, जहां कचरा या अपशिष्ट उत्पन्न होता है। निस्संदेह, रेलवे परिसर ऐसे स्थान हैं, रेलवे प्रशासन ऐसी जगहों पर काबिज है, जहां कचरा पैदा होता है। "

इन कार्य योजना के क्रियान्वयन और जल अधिनियम, वायु अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और इनके तहत बनाए गए नियमों के प्रावधानों के अनुपालन के संदर्भ में प्रमुख रेलवे स्टेशनों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करने का निर्देश सीपीसीबी और संबंधित एसपीसीबी/पीसीसी टीम को दिया है। साथ ही कहा है कि यह काम 31 मार्च, 2020 से पहले कर लिया जाए और 15 अप्रैल, 2020 तक कार्रवाई की रिपोर्ट दायर कर दी जाए। साथ ही कहा है कि राज्य पीसीबी/पीसीसी 31 मार्च, 2020 से पहले ऐसे रेलवे स्टेशनों द्वारा जल अधिनियम 1974 की धारा 25 और वायु अधिनियम की धारा 21 के अनुपालन के संबंध में सीपीसीबी के माध्यम से रिपोर्ट दायर करें। 



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