नई दुल्हन का अपने कमरे में रहना, घरेलू काम में पहल न करना और शारीरिक संबंध बनाने में अरूचि किसी भी तरह से क्रूरता नहीं : दिल्ली हाईकोर्ट

Update: 2020-07-02 03:45 GMT

दिल्ली हाईकोर्ट ने पिछले दिनों ही कहा है कि ''प्रतिवादी-पत्नी का अपने कमरे में रहना या गृहस्थी के काम में पहल न करने का आचरण, कल्पना के किसी भी प्रकार से क्रूर व्यवहार नहीं कहा जा सकता और खासतौर पर अपीलार्थी पति के प्रति।''

जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस आशा मेनन की खंडपीठ इस मामले में अपीलार्थी-पति की एक अपील पर सुनवाई कर रही थी। अपीलार्थी ने फैमिली कोर्ट, द्वारका के 30 अगस्त 2019 के आदेश से दुखी होकर उसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की थी। फैमिली कोर्ट ने अपीलार्थी की उस मांग को ठुकरा दिया था, जिसमें उसने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की 13 (1) ( i) और (ia) के तहत प्रतिवादी नंबर एक से अपनी शादी खत्म करने की मांग की थी।

अपीलार्थी/पति के साथ शुरू में शारीरिक संबंध बनाने में अरूचि दिखाने की दलील को उठाते हुए पीठ ने कहा कि अपीलार्थी ने खुद स्वीकार किया है कि उनकी शादी संपूर्ण हो गई थी। वही इस एक अवसर को छोड़कर प्रतिवादी नंबर एक/ पत्नी की तरफ से कभी भी अपीलार्थी के साथ शारीरिक संबंध बनाने से मना नहीं किया गया था।

कोर्ट ने कहा कि,

''इसलिए इस आधार पर अपीलकर्ता/पति 'क्रूरता' का दावा नहीं कर सकता या 'क्रूरता' का दावा करने के लिए उसके पास यह आधार उपलब्ध नहीं है।''

न्यायालय ने कहा कि

"इस बात में कोई संदेह नहीं है कि क्रूरता एक ठोस वस्तु के रूप में मापने योग्य नहीं है'' लेकिन यह भी सच है कि क्या एक विशेष आचरण क्रूरता है या केवल शादी की सामान्य सी नोक-झोक है, इसको निर्धारित करने का मानक सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के विषय के अधीन है।"

अपीलार्थी/पति की तरफ से दायर हलफनामे को देखने के बाद पीठ ने कहा कि यह तय करना मुश्किल है कि प्रतिवादी नंबर 1 /पत्नी के कौन से आचरण ने उसे क्रूर रूप से प्रभावित किया। यह कहा गया है कि उसने प्रतिवादी नंबर 1/पत्नी पर कई आरोप लगाए हैं-

(1) विवाह के तुरंत बाद 'अशिष्ट' व 'क्रूर' व्यवहार करने का आरोप

(2) छोटी सी बात पर परिवार के प्रत्येक सदस्य के साथ झगड़ा करना

(3) विवाह के तुरंत बाद उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने से इनकार करना

(4) खुद को कमरे में बंद रखना और मुंह दिखाई के समारोह में बुलाने के लिए उससे कई बार अनुरोध करना

(5) 01दिसम्बर 2012 को शादी की रिसेप्शन के समय नर्वस और दुखी दिखना

(6) खुद को अपने कमरे में बंद रखना और घर के किसी भी काम को करने या खाना बनाने में में अरूचि दिखाना।

कोर्ट ने कहा कि

''प्रतिवादी नंबर 1/ पत्नी पर यह सभी 'क्रूर कार्य' करने के आरोप लगाए गए थे। हमारे विचार में प्रतिवादी नंबर एक द्वारा किए गए इन कृत्यों में से कोई भी कृत्य 'क्रूर' आचरण नहीं कहा जा सकता है।''

पीठ ने यह भी कहा कि एक नई दुल्हन अपने वैवाहिक घर के नए परिवेश में हिचकिचाती है। इसलिए पति के परिवार को चाहिए कि वह ऐसा वातावरण बनाए कि नई दुल्हन उसे अपना ही घर समझे। वहींं दुल्हन को परिवार के सदस्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए।"

अपीलकर्ता /पति द्वारा लगाया गया सबसे गंभीर आरोप यह है कि प्रतिवादी नंबर 1/ पत्नी व्यभिचारी जीवन जी रही थी। पीठ ने कहा कि इसके प्रमाण के लिए अपीलार्थी ने कुछ दस्तावेज पेश किए थे, जिनसे पता चलता है कि प्रतिवादी-पत्नी और उसके बहनोई के भाई (जो इस मामले में एक प्रतिवादी भी है) ने 23 दिसम्बर 2011 को एसडीएम हापुड़ के समक्ष एक आवेदन दायर किया था, जिसमें उन्होंने शादी करने का इरादा व्यक्त किया था। हालाँकि यह भी माना गया है कि यह शादी नहीं हो सकी थी क्योंकि दो प्रतिवादियों के भाइयों ने उस शादी पर आपत्ति जाहिर की थी। वहीं अपीलार्थी/पति और प्रतिवादी नंबर 1/पत्नी के बीच विवाह लगभग एक साल बाद 29 नवम्बर 2012 को हुआ था।

पीठ ने कहा कि-

''हालांकि अपीलकर्ता /पति ने दावा किया कि उसे प्रतिवादियों के पिछले अफेयर के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया था। जिरह के दौरान एक प्रश्न के जवाब में प्रतिवादी नंबर एक/ पत्नी ने स्पष्ट रूप से कहा था कि उसने शादी से पहले ही अपीलकर्ता/ पति को सब कुछ बता दिया था। उसने इस सुझाव का भी खंडन किया था कि इस विवाह से पहले वह प्रतिवादी नंबर 2 के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहती थी। जबकि अपने इस आरोप को प्रमाणित करने के लिए अपीलकर्ता /पति ने कोई गवाह पेश नहीं किया था। यह आरोप पहली बार प्रतिवादी नंबर 1/पत्नी से जिरह के दौरान ही पूछा गया था।''

इसके अलावा पीठ का यह भी मानना था कि अपीलकर्ता/ पति और प्रतिवादी नंबर 1/पत्नी के बीच विवाह होने के बाद ही व्यभिचार किया जा सकता था। इसलिए शादी से पहले प्रतिवादियों के एक साथ रहने के आधार पर व्यभिचार करने का आरोप पूरी तरह से व्यर्थ है।

पीठ ने माना कि

''यह स्पष्ट है कि फैमिली कोर्ट सही निष्कर्ष पर पहुंची थी। जिसमें माना गया था कि प्रतिवादी नंबर 1/पत्नी पर अपीलार्थी /पति द्वारा लगाए गए व्यभिचार के आरोप बिना किसी सबूत के लगाए गए थे। चाहे वह आरोप प्रतिवादियों का व्यभिचार में रहने से सबंधित हो या फिर शादी से पहले या शादी के बाद अवैध संबंध बनाने से संबंधित। वहीं प्रतिवादी नंबर एक/पत्नी द्वारा अपीलकर्ता/पति के साथ क्रूरता का व्यवहार करने का आरोप भी साबित नहीं हुआ।''

न्यायालय ने इस बात की भी सराहना की है कि अपीलकर्ता/पति ने अपने हलफनामे में निश्चित रूप से कोई विशेष तारीख दिए बिना खुद ही यह दावा किया था कि उसने प्रतिवादी नंबर 1/ पत्नी के साथ सारे मतभेद भुलाकर ''मेल-मिलाप'' किया था और ''उज्ज्वल भविष्य'' और ''अपने वैवाहिक जीवन को बचाने'' की उम्मीद की थी।

अपील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि-

''दूसरे शब्दों में कहा जाए तो जो भी ''दुराचार या बुरा आचरण'' अपीलकर्ता/पति ने देखा था या उसने आरोप लगाए हैं,उनको उसने खुद ही माफ कर दिया था। ऐसे में उनके आधार पर कोई ऐसी गुंजाइश नहीं रह गई थी कि अपीलकर्ता/पति अदालत के समक्ष एक आवेदन दायर करके क्रूरता या व्यभिचार के आधार पर दोनों पक्षों के बीच की शादी को खत्म करने की मांग करें।''

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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