मप्र हाईकोर्ट ने अभियुक्तों से मिलीभगत करके मुकदमे में देरी करने की रणनीति अपनाने के स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर के आचरण की जांच का निर्देश दिया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, ग्वालियर बेंच ने हाल ही में राज्य के अधिकारियों को एक गवाह के बयान दर्ज करने में ट्रायल कोर्ट का सहयोग नहीं करने पर विशेष लोक अभियोजक (Special Public Prosecutor) के आचरण की जांच करने का निर्देश दिया।
अदालत ने अधिकारियों को यह भी जांच करने का निर्देश दिया कि क्या उनका पद पर बने रहना न्याय के हित में होगा या नहीं।
जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने याचिकाकर्ता द्वारा सीआरपीसी के धारा 439 पेश की गई जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा-
स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर के इस आचरण की सराहना नहीं की जा सकती, इसलिए, प्रमुख सचिव, विधि एवं विधायी विभाग, मध्य प्रदेश राज्य, भोपाल एवं जिलाधिकारी भिंड को विशेष लोक अभियोजक श्रीमती हेमलता आर्य के आचरण की जांच करने का निर्देश दिया जाता है, जिन्होंने अभियोजन पक्ष के गवाह सूबेदार खान के एक्जामिनेशन इन चीफ ( मुख्य परीक्षण) की रिकॉर्डिंग के लिए ट्रायल कोर्ट का सहयोग नहीं किया।
अधिकारियों को इस पर भी पुनर्विचार करने का निर्देश दिया जाता है कि क्या श्रीमती हेमलता आर्य की विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्ति जारी रखना न्याय के हित में होगा या नहीं? हालांकि, यह निर्देश दिया जाता है कि वर्तमान मामले को विशेष लोक अभियोजक से तुरंत हटाया जाए।
याचिकाकर्ता सुनवाई में देरी के आधार पर जमानत की मांग कर रहा था। हालांकि, निचली अदालत के आदेश पत्रों की जांच करने पर अदालत ने पाया कि आवेदक कार्यवाही को लंबा करने के लिए देरी की रणनीति अपना रहा था और विशेष लोक अभियोजक की इसमें मिलीभगत थी।
आदेश-पत्रों से यह स्पष्ट है कि बचाव पक्ष के वकील भी देरी करने की रणनीति अपना रहे हैं और दुर्भाग्य से ऐसा प्रतीत होता है कि विशेष लोक अभियोजक ने भी बचाव पक्ष के वकील से हाथ मिलाया है।
3/3/2022 को जब दो गवाह, अर्थात् अनिल शर्मा और सूबेदार खान उपस्थित थे और अनिल शर्मा के क्रॉस एक्जामिनेशन (प्रति परीक्षण) को केवल बचाव पक्ष के वकील के अनुरोध पर टाला दिया गया तो स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्यूटर के सामने एक अन्य गवाह सूबेदार खान का मुख्य परीक्षण दर्ज करने में क्या अड़चन थी, इस न्यायालय की समझ से परे है।
आदेश दिनांक 3/3/2022 से यह स्पष्ट है कि निचली अदालत ने कम से कम दो मौकों पर विशेष लोक अभियोजक से सूबेदार खान के बयान दर्ज करने का अनुरोध किया, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
जमानत आवेदन के संबंध में न्यायालय ने माना कि इसे खारिज किया जा सकता है क्योंकि देरी के लिए आवेदक को स्वयं ज़िम्मेदार है।
आदेश-पत्रों से यह स्पष्ट है कि आवेदक के वकील भी गवाहों से जिरह करने से बचने के लिए हर तरह की देरी करने के हथकंडे अपना रहे हैं। इन परिस्थितियों में जमानत के लिए कोई मामला नहीं बनता है।
उपरोक्त टिप्पणियों के साथ जमानत आवेदन खारिज कर दिया गया।
केस शीर्षक: बृजमोहन शर्मा बनाम। मध्य प्रदेश राज्य
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