रुपए वसूलने के लिए सिर्फ एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत करना आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी के मामले को समाप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं : सुप्रीम कोर्ट

Update: 2019-10-22 06:23 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि रुपए वापस लेने के लिए सिर्फ मामला दायर करना और एनआई अधिनियम की धारा 138 के तहत शिकायत करना आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी और विश्वासघात के आपराधिक मामले को खारिज करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

वर्तमान मामले में हाईकोर्ट ने धोखाधड़ी के एक केस में आरोपी के खिलाफ कार्रवाई को मुख्यतः इस आधार पर खारिज कर दिया था कि पक्षों के बीच जो करार हुआ था उसको देखते हुए इस करार का नवीनीकरण हुआ था। आरोपी की याचिका को स्वीकार करने का एक और कारण यह था कि शिकायतकर्ता ने 9 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि की बरामदगी के लिए पहले ही एक वाद दायर कर रखा था और फिर एनआई अधिनियम, 1881 की धारा 138 के तहत अपराध के खिलाफ भी वाद दायर किया है।

डॉक्टर लक्ष्मण बनाम कर्नाटक राज्य के मामले में अपील को स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति आर बानुमती और आर सुभाष रेड्डी की पीठ ने कहा कि करार का नवीनीकरण किया गया है या नहीं और इसका क्या प्रभाव है, इस बात पर सुनवाई के बाद गौर किये जाने की जरूरत है न क सीआरपीसी की धारा 482 के तहत आवेदन पर गौर करने के दौरान इस पर विचार किया जाना चाहिए।

पीठ ने कहा,

"चूंकि यह करार जमीन खरीदने के लिए है और इस वजह से जैसा कि हाईकोर्ट ने कहा है कि यह दीवानी प्रकृति का है और यह इसको खारिज करने का आधार नहीं है। यद्यपि करार दीवानी प्रकृति का है पर अगर इसमें धोखाधड़ी और ठगी का तत्व भी है, तो इस करार का एक पक्ष दूसरे पक्ष को सजा दिलाने के लिए मुकदमा दायर कर सकता है। इसी तरह, सिर्फ धारा 138 के तहत वाद दायर करना इस कार्रवाई को निरस्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है।


सीआरपीसी की धारा 482 के अधीन अपील पर गौर करते हुए हमारा मानना है कि यह कहकर कि 8 दिसंबर 2012 को फिर करार हुआ, इसे नवीनीकृत करार मानकर हाईकोर्ट ने गलती की है, लेकिन करार का नवीनीकरण है या नहीं, इसको करार में शामिल करने का प्रभाव क्या होगा इसके बारे में चर्चा मामले की सुनवाई के समाप्त हो जाने के बाद हो सकता है न क इस आवेदन पर गौर करने के दौरान।"

अदालत ने कहा, "इस मामले में आरोपी की ओर से आपराधिक मनःस्थिति (mens rea)का मामला है कि नहीं उस पर शिकायत की परिस्थिति और उसके कंटेंट के अनुरूप गौर करने की जरूरत है। " 

अदालत के फैसले की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें



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