सुप्रीम कोर्ट ने कहा, सिर्फ मध्यस्थता के स्थान के निरुपण से मध्यस्थता की जगह का निर्धारण नहीं हो सकता

Update: 2020-03-12 04:45 GMT

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सिर्फ मध्यस्था के स्थान के निरुपण से यह निर्धारण नहीं हो सकता कि मध्यस्थता किस जगह होगी।

सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति आर बानुमती, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि "जगह" का निर्धारण समझौते की अन्य बातों और पक्षकारों के व्यवहार पर भी निर्भर करता है। अदालत मध्यस्थ की नियुक्ति के बारे में एक याचिका की सुनवाई कर रही थी।

पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच जो समझौता हुआ उसमें हांगकांग को मध्यस्थता का स्थान बताया गया है पर इससे ही यह नहीं कहा जा सकता कि पक्षों ने हांगकांग को मध्यस्थता का स्थान चुना है।

मध्यस्थता की जगह किसी भी मध्यस्थता प्रक्रिया का बहुत ही अहम हिस्सा होता है। मध्यस्थता की जगह से यह निर्धारित होता है कि फ़ैसला लेने के दौरान इस पर कौन से क़ानून लागू होंगे और फ़ैसले की समीक्षा की प्रक्रिया क्या होगी। मामला सिर्फ़ इस बात को लेकर नहीं होता कि कोई संस्थान किस स्थान पर है या इसकी सुनवाई कहां होगी। इसका सबसे ज़्यादा मतलब इस बात से है कि किसी अदालत के पास मध्यस्थता की प्रक्रिया की निगरानी का अधिकार होगा।

यह तय किया जा चुका है कि "मध्यस्थता की जगह" और वह "जगह जहां मध्यस्थता होगी" को आपस में बदला नहीं जा सकता। यह भी स्थापित हो चुका है कि "मध्यस्थता का स्थान" से पक्षकारों की इस इच्छा का प्रदर्शन नहीं होता कि उन्होंने इस जगह को मध्यस्थता की "जगह" माना है। इसका निर्धारण समझौते की अन्य बातों और पक्षकारों के व्यवहार पर निर्भर करेगा।

अन्य क्लाज़ का ज़िक्र करते हुए पीठ ने कहा कि मध्यस्थता के समझौते पर ग़ौर करने से यह स्पष्ट है कि हांकांग का "मध्यस्था का स्थान" बताना मध्यस्था की प्रक्रिया की "जगह" का सामान्य संदर्भ नहीं है; बल्कि हांगकांग का संदर्भ हांकांग में मध्यस्थता का अंतिम समाधान के बारे में है।

पीठ ने यह ग़ौर करते हुए कि धारा 11 'अंतरराष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता' जो भारत के बाहर है, पर लागू नहीं होता, कहा कि अधिनियम की धारा 11(6) के तहत दायर याचिका पर विचार नहीं हो सकता क्योंकि मध्यस्था की जगह हांगकांग है।

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