किसी उत्पीड़न के बिना अधिक संपत्ति की मांग, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध के पंजीकरण के दायरे में नहीं, पढ़िए बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला
बॉम्बे हाईकोर्ट ने यह माना है कि किसी भी उत्पीड़न के बिना, अत्यधिक धन या संपत्ति की मांग, आईपीसी की धारा 498 ए के तहत अपराध के पंजीकरण के लिए पर्याप्त कारण नहीं है।
न्यायमूर्ति रंजीत मोरे और न्यायमूर्ति एन. जे. जमादार की खंडपीठ एक कृष्ण लोहिया के रिश्तेदारों द्वारा दायर आपराधिक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिनकी पत्नी प्रियंका ने उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी।
केस की पृष्ठभूमि
प्राथमिकी में, शिकायतकर्ता ने यह आरोप लगाया है कि हर उत्सव के अवसर पर, कृष्ण के परिवार के सदस्यों ने उसके माता-पिता से कपड़े, गहने और पैसे मांगे और उन मांगों को पूरा किया गया। उसने यह भी आरोप लगाया कि उसके पति के रिश्तेदार जब भी घर आते, तब उसे 'मोटी और काली' एवं 'बांझ' कहकर उसका अपमान करते थे।
याचिकाकर्ताओं के अनुसार, शिकायतकर्ता प्रियंका ने उन्हें एक "गलत इरादे" के साथ झूठे मामले में फंसाने की कोशिश की है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा, "हम अलग-अलग रह रहे हैं और हमने प्रियंका के साथ कभी भी घर साझा नहीं किया है। हम कभी-कभार शिकायतकर्ता के वैवाहिक घर जाते हैं। शिकायतकर्ता को परेशान करने का कोई कारण या अवसर हमारे पास नहीं था।"
प्रस्तुतियां और निर्णय
याचिकाकर्ताओं के लिए अधिवक्ता सुभाष झा उपस्थित हुए और उन्होंने कहा कि भले ही प्राथमिकी में आरोपों को एक सच्चाई के रूप में लिया गया हो, लेकिन याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसा कोई अपराध बनाने लायक मामला नहीं है, जिससे उनके खिलाफ अभियोजन शुरू किया जा सके। जबकि, शिकायतकर्ता के वकील सत्यव्रत जोशी ने कहा कि प्राथमिकी में विशिष्ट आरोप लगाए गए हैं जो याचिकाकर्ताओं को फंसाते हैं।
दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद कोर्ट ने माना-
"धारा 498 ए के दायरे में आने के लिए यह जरूरी है कि विवाहित महिला के साथ क्रूरता की गयी हो, जो महिला को आत्महत्या करने को प्रेरित करे या उसके जीवन, अंग या स्वास्थ्य को गंभीर चोट पहुंचाई गयी हो या खतरा कारित किया गया हो, या संपत्ति की गैरकानूनी मांग को पूरा करने के लिए उसके या उससे संबंधित किसी भी व्यक्ति के साथ जबरदस्ती की गई हो। किसी भी उत्पीड़न के बिना, केवल अत्यधिक धन या संपत्ति की मांग, धारा 498 ए के दायरे में नहीं आएगी। मांग और उस मांग के चलते किये गए उत्पीड़न के बीच एक संबंध होना चाहिए।"
इसके बाद, पीठ ने याचिकाकर्ताओं के खिलाफ विभिन्न आरोपों की जांच की-
"उपरोक्त कानूनी स्थिति के आधार पर, अगर ऊपर लगाए गए आरोपों का वजन किया जाता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वर्ष 2010 में जुहू में स्थानांतरित होने के बाद शिकायतकर्ता का पहला आरोप, सामान्य प्रकृति का है।
कृष्ण के परिवार के सभी सदस्यों द्वारा उत्सव के प्रत्येक अवसर पर धन, कपड़े और आभूषणों की मांग करने का दूसरा आरोप भी सामान्य प्रकृति का है और यह किसी भी विशिष्ट उदाहरण के बिना लगाया गया है।
शिकायतकर्ता का तीसरा आरोप, कि सभी परिवार के सदस्यों ने उसे "बांझ" कहकर अपमानित किया, यह स्वभाव से सर्वग्राही है। इस बिंदु पर, यह तथ्य कि याचिकाकर्ता, शिकायतकर्ता और कृष्ण से अलग निवास करते हैं, महत्वपूर्ण महत्व का है। उक्त कारक, प्रथम दृष्टया, व्यक्ति, समय और स्थान के विशिष्ट संदर्भ की अनुपस्थिति में सामान्य आरोपों की विश्वसनीयता को मिटा देता है।"
कोर्ट ने पति के करीबी लोगों के खिलाफ आरोपों के बारे में प्रीति गुप्ता बनाम झारखंड राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई कुछ टिप्पणियों का उल्लेख किया।
"हम इस विचार के हैं कि याचिकाकर्ताओं पर आईपीसी की धारा 498A के तहत दंडनीय अपराधों का आरोप, याचिकाकर्ताओं को परेशान करने और अपमानित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है, सिर्फ इसलिए कि वे कृष्ण के संबंधी हैं। इन परिस्थितियों में, अभियोजन की कार्यवाही जारी रखना, कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग होगा। याचिकाकर्ताओं को ट्रायल से गुजरने के लिए मजबूर करने से उनके साथ गंभीर अन्याय होगा।"