धोखाधड़ी की आशंका मात्र से यूनिवर्सिटी के ख़िलाफ़ जांच नहीं की जा सकती : पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट
हाल ही में अपने एक आदेश में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एलएलएम की एक छात्रा की याचिका को ख़ारिज कर दिया। यह छात्रा न्यायिक अधिकारी भी है जिसने यूनिवर्सिटी परीक्षा में आकलन में धोखाधड़ी का आरोप लागाया था।
याचिकाकर्ता दीपिका जो दिल्ली में मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट सह सिविल जज हैं, महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक से कॉरेस्पॉंडेन्स के माध्यम से एलएलएम कर रही हैं। बीमा क़ानून परीक्षा में दो बार असफल रहने के बाद उन्होंने हाईकोर्ट के रिट अधिकार का प्रयोग किया और आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय में एक "रैकेट" चल रहा है और छात्रों को जानबूझकर फ़ेल किया जा रहा है ताकि विश्वविद्यालय दोबारा आकलन के आग्रह पर पैसे कमा सके।
उन्होंने कहा कि वह एक प्रतिभाशाली छात्रा है और इसी विषय में उसे एलएलबी की परीक्षा में 72% नम्बर आए थे। एलएलएम परीक्षा में पूछे गए प्रश्न काफ़ी आसान थे और वह इसमें फ़ेल नहीं हो सकती।
"विश्वविद्यालय में रैकेट चल रहा है। छात्रों को फ़ेल किया जा रहा है ताकि विश्वविद्यालय दुबारा मूल्यांकन के आग्रह पर पैसे कमा सके।" उसने आरोप लगाया।
इस मामले में किसी तरह से हस्तक्षेप करने से इंकार करते हुए अदालत ने कहा कि सिर्फ़ इस वजह से कि ग्रेजुएशन में वह एक प्रतिभाशाली छात्रा रही है इसका मतलब यह नहीं है कि वह एलएलएम की परीक्षा में फ़ेल नहीं हो सकती। अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि सिर्फ़ धोखाधड़ी की "आशंका" की वजह ही पर्याप्त नहीं है, न्यायिक हस्तक्षेप के लिए इस बात के समर्थन में पर्याप्त मटीरीयल होना चाहिए।
न्यायमूर्ति सुधीर मित्तल ने कहा,
"यह तथ्य कि याचिकाकर्ता एलएलबी में एक प्रतिभाशाली छात्र रही है, का मतलब यह नहीं है कि उसका प्रदर्शन नीचे नहीं जा सकता। यह सही है कि इस समय वह न्यायिक अधिकारी के रूप में काम कर रही है और हो सकता है कि वह अपने अध्ययन में इस समय पर्याप्त समय नहीं दे पा रही होगी।
रिट अदालत इस बात की जांच नहीं कर सकती कि पेपर साधारण था या कठिन न ही वह परीक्षकों के बारे में बिना किसी साक्ष्य के कुछ कह सकती है। गड़बड़ हुई है इसके सबूत में कुछ भी अदालत के समक्ष पेश नहीं किया गया है। शिकायत आशंका पर आधारित है और इस तरह इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।"
अदालत ने विश्वविद्यालय के ख़िलाफ़ उचित साक्ष्य के आधार पर कार्रवाई का मौक़ा दिया है।
"अगर याचिकाकर्ता के पास इस बात के सबूत हैं कि विश्वविद्यालय में रैकेट चल रहा है, उसे इसे किसी भी अन्य उचित तरीक़े से सामने लाने की स्वतंत्रता है। वर्तमान रिट याचिका में, ऐसा कोई सबूत पेश नहीं किया गया है जिससे यह निर्धारित किया जा सके कि छात्रों को पैसे कमाने के लिए फ़ेल किया जा रहा है," अदालत ने कहा।