वाद के शीर्षक में पक्षकार की जाति का उल्लेख करना समानता के सिद्धांत के खिलाफ: वकील ने राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सीजेआई को लिखा पत्र

Update: 2020-04-26 03:45 GMT

भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को एक पत्र लिखकर कोर्ट फाइलिंग के दौरान वाद शीर्षक/ शपथपत्रों/ मेमो (ज्ञापन) में पक्षकार की जाति का उल्लेख करने की 'प्रतिगामी प्रक्रिया' को लेकर चिंता दर्ज करायी गयी है।

वकील अमित पई द्वारा लिखे गये पत्र में कहा गया है कि वाद शीर्षक (कॉज टाइटल) में पक्षकार की जाति का उल्लेख करना समानता के खास सिद्धांत के खिलाफ है। इस निराशाजनक प्रक्रिया को निरस्त करने का सीजेआई से अनुरोध करते हुए उन्होंने कहा, "हमारी विधिक प्रणाली एवं संविधान में जाति का कोई स्थान नहीं है।"

पत्र में लिखा गया है, 

" मेरा निवेदन है कि वादियों की जाति/धर्म के उल्लेख का कानून के शासन से जुड़े न्यायिक प्रशासन में कोई स्थान नहीं है। संभवत: जाति/धर्म उल्लेख करने की यह प्रथा हमारे पूर्वग्रह में गहरे समा चुकी अभिव्यक्ति है जो 'हम, भारत के लोगों' को खुद का संविधान हासिल होने के 70 साल बाद भी जारी है। हमारे विचार से यह पूरी तरह अनावश्यक है।"

यह मुद्दा राजस्थान हाईकोर्ट के समक्ष दायर एक जमानत अर्जी की पृष्ठभूमि में उजागर किया गया है, जिसके शीर्षक में आवेदक की जाति का उल्लेख किया गया था।

संबंधित मामले ने उस वक्त मीडिया का बहुत अधिक ध्यान आकृष्ट किया था जब इस मामले का एक वकील वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुनवाई के दौरान उचित पोशाक पहनकर बेंच के समक्ष पेश नहीं हुआ था।

इस पत्र के जरिये वकील अमित पई ने सीजेआई से अनुरोध किया है कि "जाति/धर्म का इस तरह का उल्लेख निश्चित तौर पर समाप्त किया जाना चाहिए क्योंकि ये गलत और प्रतिगामी संदेश देते हैं।" 



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