आरोपी की मेडिकल जांच नहीं होने से ऐसे चश्मदीद गवाहों पर संदेह नहीं किया जा सकता, जिनका समर्थन मेडिकल साक्ष्य से होता है : इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि घटना के बाद आरोपी का मेडिकल परीक्षण न करने के एक मात्र आधार पर मेडिकल साक्ष्य द्वारा समर्थित चश्मदीद गवाहों के साक्ष्य पर संदेह नहीं किया जा सकता।
जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस सरोज यादव की खंडपीठ ने बलात्कार के आरोपी की दोषसिद्धि बरकरार रखी, जिसे निचली अदालत ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। बेंच ने साथ ही पीड़ित को मुआवजे के रूप में 25,000 / - रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
संक्षेप में मामला
एक श्रवण कुमार मौर्य को आईपीसी की धारा 376 के तहत दंडनीय अपराध का दोषी ठहराया गया और एक वर्षीय लड़की से बलात्कार के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। दोषी ने सजा और दोषसिद्धि को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
लिखित रिपोर्ट में बताया गया कि 19 मार्च 2006 को दोपहर करीब 12:30 बजे शिकायतकर्ता की बेटी (लगभग एक वर्ष की आयु) अपने घर के सामने प्लेटफॉर्म पर खेल रही थी। आरोपी ने उसे टॉफी देने के बहाने उठा लिया और पीड़िता को अपने फूस के घर में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया।
आरोपी की ओर से पेश एमिसक क्यूरी ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि बच्चे के परिवार के सदस्यों का आचरण अप्राकृतिक और अविश्वसनीय रहा क्योंकि वे घायल लड़की को अस्पताल नहीं ले गए, जिसकी हालत गंभीर थी, इसके बजाय वे पहले पुलिस स्टेशन गए।
आगे यह तर्क दिया गया कि दोषी की मेडिकल जांच नहीं की गई जबकि ऐसा करना सीआरपीसी की धारा 53 और 54 के तहत अनिवार्य है और यह अभियोजन के खिलाफ जाता है।
न्यायालय की टिप्पणियां
कोर्ट ने कहा कि मामला अभियोजन पक्ष के गवाह पीडब्लू 2 और पीडब्लू 3 के साक्ष्य पर टिका है जो घटना के चश्मदीद गवाह हैं और आरोपी के खिलाफ लगाए गए आरोप एक उचित संदेह से परे साबित हुए हैं कोर्ट ने यह भी रेखांकित किया कि मेडिकल साक्ष्य (medical evidence) चश्मदीद गवाहों द्वारा घटना के संबंध में दी गई गवाही/विवरण की पुष्टि करते हैं।
बचाव पक्ष के इस तर्क के संबंध में कि जिस स्थान पर कथित रूप से बलात्कार किया गया था, उस स्थान पर खून की एक बूंद भी नहीं पाई गई, न्यायालय ने कहा कि जिस स्थान पर कथित घटना हुई थी, उस स्थान पर खून नहीं मिलने से ही यह पूरी तरह स्थापित नहीं हो जाएगा कि घटना असत्य है। जबकि घटना के बारे में भरोसेमंद च्श्म्दीद गवाह हैं, साथ ही मेडिकल साक्ष्य, मौजूद हैं।
इस तर्क के बारे में कि पीड़ित को अस्पताल नहीं ले जाया गया, अदालत ने टिप्पणी की कि आम तौर पर ऐसे मामलों में जहां अपराध के परिणामस्वरूप चोट लगी है, व्यक्ति पहले पुलिस को सूचित करने या एफआईआर दर्ज करने जाता है।
अदालत ने कहा,
" इसलिए पीड़ित के परिवार के सदस्यों के आचरण को अप्राकृतिक नहीं कहा जा सकता, खासकर जब वे गांव के देहाती और अनपढ़ व्यक्ति हैं।"
इसके अलावा, घटना के ठीक बाद आरोपी की मेडिकल जांच न करने के संबंध में न्यायालय ने कहा,
" घटना के बाद आरोपी का केवल मेडिकल जांच न करने से चश्मदीद गवाहों के साक्ष्य पर संदेह के बादल पैदा नहीं हो सकते। विशेष रूप से जब आरोपी को घटना के दो दिनों के बाद गिरफ्तार किया गया। इसके अलावा सीआरपीसी की धारा 53, 53 ए और सीआरपीसी से संबंधित प्रावधानों की धारा 54 को 18 में संशोधन कर 23.03.2006 को प्रभावी बना दिया गया, जबकि यह घटना 19.03.2006 को हुई थी। "
अदालत ने माना कि घटना को चश्मदीद गवाहों पीडब्लू1 और पीडब्लू-2 द्वारा साबित किया गया और दोषी/अपीलकर्ता के खिलाफ सभी उचित संदेह से परे मेडिकल साक्ष्य से भी दोषी का अपराध सिद्ध हुआ। इस प्रकार ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को दोषी ठहराने और सजा देने में कोई त्रुटि नहीं की। आरोपी को आजीवन कारावास, साथ ही पीड़ित लड़की को मुआवजे के रूप में 25,000/- रुपये देने का निर्देश दिया।
इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी।
केस टाइटल - श्रवण कुमार मौर्य बनाम यूपी राज्य [आपराधिक अपील नंबर - 2422/2008]
साइटेशन : 2022 लाइव लॉ (एबी) 312
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