मणिपुर हाईकोर्ट ने दो महिलाओं, अजन्मे बच्चे की हत्या के आरोपी को जमानत दी, कहा विचाराधीन कैदियों को लंबे समय तक हिरासत में रखना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन

Update: 2023-02-20 03:15 GMT

Manipur High Court 

मणिपुर हाईकोर्ट ने वर्ष 2017 में दो महिलाओं और एक अजन्मे बच्चे की हत्या करने के आरोपी एक व्यक्ति को जमानत दे दी है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस एम वी मुरलीधरन ने अपने आदेश में कहा कि,

‘‘जमानत आवेदन से निपटने के दौरान एक न्यायाधीश द्वारा एक मानवीय रवैया अपनाने की आवश्यकता होती है। भले ही अपराध एक गंभीर अपराध है, अदालत द्वारा मानवीय उपचार की आवश्यकता है, एक अभियुक्त सहित सभी के लिए मानवीय उपचार कानून की आवश्यकता है।’’

अदालत ने यह भी कहा कि आपराधिक न्यायशास्त्र का महत्वपूर्ण पहलू यह है कि जमानत देना सामान्य नियम है और किसी व्यक्ति को जेल या सुधार गृह में रखना एक अपवाद है।

दाताराम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य व अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों पर भरोसा करते हुए कोर्ट ने कहा कि,

‘‘दुर्भाग्य से, ऐसा लगता है कि कुछ बुनियादी सिद्धांतों में से कुछ को नजरअंदाज कर दिया गया है, जिसके परिणामस्वरूप अधिक से अधिक लोगों को लंबी अवधि के लिए कैद किया जा रहा है। यह हमारे आपराधिक न्यायशास्त्र या हमारे समाज के लिए अच्छा नहीं है।’’

इंफाल पुलिस ने सोरम तोम्बा सिंह की शिकायत पर वर्ष 2017 में भारतीय दंड संहिता की धारा 302/449/120-बी के तहत एफआईआर दर्ज की थी, जिसकी पत्नी और गर्भवती बेटी को उनके घर के अंदर मार दिया गया था। जांच के दौरान आरोपी खोंगबनताबम हिटलर सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। कथित हत्या के समय शिकायतकर्ता की बेटी आठ महीने की गर्भवती थी।

आरोपी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने अदालत को बताया कि पुलिस के संदेह का मुख्य कारण यह है कि आरोपी का पीड़िता की शादी से पहले पीड़िता के साथ ‘‘अफेयर’’ था और उसकी मां इस रिश्ते के खिलाफ थी और इसलिए वह ‘‘अपनी प्रेमिका और उसकी मां’’ को खत्म करने के लिए एक अवसर की तलाश कर रहा था।

यह तर्क दिया गया कि आरोपी को इस मामले में गलत तरीके से फंसाया गया है क्योंकि उसे पुलिस ने संदेह के नाम पर इंफाल पुलिस स्टेशन में बुलाया था और फिर उसे 2.6.2017 को गिरफ्तार किया था। वकील ने आगे कहा कि ट्रायल कोर्ट ने याचिकाकर्ता के खिलाफ 28.3.2018 को आरोप तय किए थे और अभी भी अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही पूरी नहीं हो पाई है।

उन्होंने कहा कि,‘‘हालांकि अब तक 10-11 अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही हुई है, फिर भी अभियोजन पक्ष को 12-13 और गवाहों के बयान दर्ज करवाने हैं, जिसमें लंबा समय लगेगा और अभियोजन पक्ष मामले के त्वरित निपटान के लिए ट्रायल कोर्ट के साथ सहयोग नहीं कर रहा है।’’

अदालत को बताया गया कि निकट भविष्य में मुकदमे के समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है और आरोपी 5 साल से अधिक समय से न्यायिक हिरासत में है। याचिकाकर्ता को अनिश्चित काल के लिए जेल में बंद करना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रदान किए गए उसके मौलिक अधिकारों से वंचित करने के समान है।

अभियोजन पक्ष के वकील ने प्रस्तुत किया कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश (एफटीटसी) महिलाओं के खिलाफ अपराध, मणिपुर अपने दिनांक 28.3.2018 के आदेश में इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ हत्या करने और अजन्मे की मौत का कारण बनने का प्रथम दृष्टया सबूत या संदेह है।

एक्टिंग चीफ जस्टिस मुरलीधरन ने कहा कि मुकदमा 2018 में शुरू हो गया था और यह अभियोजन पक्ष का मामला नहीं है कि अभियुक्त ने मुकदमे में देरी की है। पीठ ने कहा, ‘‘दूसरी ओर, रिकॉर्ड से पता चलता है कि गवाहों को लाने में अभियोजन पक्ष की विफलता के कारण सुनवाई समय-समय पर स्थगित की गई है।’’

अदालत ने यह भी कहा कि अपराध के गुण-दोष पर विचार नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह मामला दो महिलाओं और गर्भ में पल रहे बच्चे की हत्या से जुड़ा है।

यह देखते हुए कि जमानत देना या अस्वीकार करना पूरी तरह से जमानत आवेदन पर विचार करने वाले न्यायाधीश का विवेक है और इसे प्रत्येक विशेष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों द्वारा काफी हद तक विनियमित किया जाता है, अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता ने मुख्य रूप से इस आधार पर जमानत मांगी है कि ट्रायल में देरी हो रही है, जो साल 2018 में शुरू हो गई थी।

कोर्ट ने कहा, ‘‘महामारी मार्च, 2020 के दौरान शुरू हुई और वर्ष 2018 और मार्च 2020 के बीच भी सुनवाई को समाप्त करने के लिए कोई पर्याप्त प्रगति नहीं हुई थी।’’

अदालत ने कहा कि जिस तरह से मामले में मुकदमे का संचालन किया जा रहा है, उससे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि निकट भविष्य में इसके समाप्त होने की संभावना नहीं है और कोर्ट इस तर्क से सहमत है कि मुकदमे के पूरा होने तक याचिकाकर्ता को अनिश्चित काल तक हिरासत में रखने से उसके लिए बड़ी कठिनाई होगी और यह उसकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर भी प्रहार करता है।

कोर्ट ने कहा,‘‘जब विचाराधीन कैदियों को अनिश्चित काल के लिए जेल में रखा जाता है, तो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होता है। इसलिए, याचिकाकर्ता को लंबे समय तक सलाखों के पीछे नहीं रखा जा सकता है।’’ कोर्ट ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि एक प्रक्रिया जो बिना मुकदमे के बड़ी संख्या में लोगों को लंबे समय तक सलाखों के पीछे रखती है, उसे ‘‘उचित, न्यायपूर्ण, निष्पक्ष’’ नहीं माना जा सकता है, ताकि यह अनुच्छेद 21 के प्रावधानों के अनुरूप हो पाए।

यह देखते हुए कि हालांकि याचिकाकर्ता के खिलाफ लगाया गया आरोप बहुत गंभीर प्रकृति का है, अदालत ने कहा कि मामले की सुनवाई अभी तक किसी न किसी कारण से पूरी नहीं हुई है।

कोर्ट ने जमानत अर्जी की अनुमति देते हुए कहा कि,

‘‘न्याय के हित में और याचिकाकर्ता द्वारा दी गई इस अंडरटेकिंग के मद्देनजर कि वह अभियोजन पक्ष के अंतिम गवाह की गवाही के लिए निर्धारित तिथि के साथ-साथ सीआरपीसी की धारा 313 के तहत उसकी गवाही के चरण में और कोर्ट के अंतिम आदेश तक ट्रायल कोर्ट के समक्ष व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेगा, इस न्यायालय का विचार है कि याचिकाकर्ता को मामले के दिए गए तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए कुछ शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा किया जा सकता है।’’

केस टाइटल- खोंगबनताबम हिटलर सिंह बनाम प्रभारी अधिकारी, इंफाल पुलिस स्टेशन

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