विशेष विवाह अधिनियम के तहत भावी विवाह के नोटिस का प्रकाशन अनिवार्य करना निजता के अधिकार उल्‍लंघनः इलाहाबाद उच्च न्यायालय

Update: 2021-01-13 10:43 GMT

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में ,माना है कि विशेष विवाह अधिनियम की धारा 6 के तहत भावी विवाह ‌का नोटिस प्रकाशित करने और धारा 7 के तहत उस पर आपत्तियां आमंत्रित कराने/ स्वीकार करने की आवश्यकता अनिवार्य नहीं है।

ज‌स्ट‌िस विवेक चौधरी ने कहा कि इस प्रकार के प्रकाशन को अनिवार्य बनाना स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों पर हमला करेगा, जिनके तहत संबंधित व्यक्ति द्वारा, राज्य और गैर-राज्य कारकों के हस्तक्षेप के बिना, विवाह के लिए चयन की स्वतंत्रता भी शामिल है।

कोर्ट ने कहा, 1954 के अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस देते समय, भावी विवाह के पक्षों के लिए यह वैकल्पिक होगा कि वे विवाह अधिकारी को लिखित रूप में अनुरोध करें कि वह धारा 6 के तहत नोटिस प्रकाशित करे या प्रकाशित न करें और आपत्तियों की प्रक्रिया का पालन करें, जैसा कि 1954 के अधिनियम के तहत निर्धारित है।

अदालत ने कहा कि, यदि वे लिखित रूप से नोटिस के प्रकाशन के लिए ऐसा कोई अनुरोध नहीं करते हैं, तो अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस देते हुए, विवाह अधिकारी ऐसी कोई सूचना प्रकाशित नहीं करेगा या भावी विवाह पर आपत्तियों को दर्ज नहीं करेगा और विवाह को कराने के लिए आगे बढ़ेगा।

अदालत ने कहा, "हालांकि, यह विवाह अधिकारी के लिए खुला रहेगा, कि 1954 के अधिनियम के तहत वह किसी भी विवाह को कराते हुए, पक्षों की पहचान, उम्र और वैध सहमति को सत्यापित करे या अन्यथा उक्त अधिनियम के तहत ‌विवाह करने की उनकी क्षमता को सत्यापित करे। यदि उसे संदेह है तो यह उसके लिए खुला होगा कि वह मामले के तथ्यों के अनुसार उपयुक्त विवरण/प्रमाण मांगे।",

पृष्ठभूमि

अदालत एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर विचार कर रही थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि एक वयस्क लड़की को प्रेमी से शादी करने की इच्छा के कारण हिरासत में लिया जा रहा है, जो अलग धर्म से संबंधित है। दंपति ने अदालत के समक्ष प्रस्तुत किया कि वे विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह कर सकते हैं, लेकिन उक्त अधिनियम के तहत 30 दिन पहले विवाह का नोटिस प्रकाशित करने और जनता से बड़े पैमाने पर आपत्तियां आमंत्रित करने की आवश्यकता है।

उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह का कोई भी नोटिस उनकी निजता पर आक्रमण होगा और निश्चित रूप से विवाह के संबंध में उनकी पसंद में अनावश्यक सामाजिक दबाव/हस्तक्षेप का कारण होगा।

उनकी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, अदालत ने इस मुद्दे पर विचार करने के लिए आगे बढ़ा कि 'क्या सामाजिक परिस्थितियां और कानून, जो कि 1872 के अधिनियम और उसके बाद से 1954 के अधिनियम के पारित होने के बाद काफी आगे बढ़ गए हैं, किसी भी तरह से अध‌िनियम की धारा 5,6,7 की व्याख्या को प्रभावित करेंगे और क्या परिवर्तन के साथ उक्त धाराएं प्रकृति में अनिवार्य नहीं होंगी?'

फैसले में, जस्टिस चौधरी ने भारत के विधि आयोग की रिपोर्ट और विशेष विवाह अधिनियम के अधिनियमित होने तक कानून के विकास का उल्लेख किया। पुट्टुस्वामी मामले (निजता का निर्णय) सहित विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए, उन्होंने कहा कि मौजूदा जरूरतों और अपेक्षाओं के साथ रह रही वर्तमान पीढ़ी को, लगभग 150 वर्षों पुरानी पीढ़ी द्वारा अपनाए गए रीति-रिवाजों और परंपराओं का पालन करने के लिए मजबूर करना क्रूर और अनैतिक होगा।

पीठ ने फैसले में निम्नलिखित अवलोकन किए:

विशेष विवाह अधिनियम के तहत प्रक्रिया को और अधिक सुरक्षात्मक या अवरोधक बनाने से कोई स्पष्ट उचित उद्देश्य प्राप्त नहीं होता है

धारा 6 और 7 की व्याख्या, धारा 46 के साथ पढ़ें, भावी विवाह के नोटिस के प्रकाशन और उस पर आपत्तियां आमंत्रित कराने की प्रक्रिया से संबंधित है और इसलिए यह ऐसा होना चाहिए जो मौलिक अधिकारों को बनाए रखे और उसका उल्लंघन ना करे। यदि, बहुत सरल पठन के अनुसार, उपरोक्त को अन‌िवार्य किया जाता है, आज घोषित कानून के अनुसार, तो यह स्वतंत्रता और निजता के मौलिक अधिकारों पर हमला करेगा, जिनके तहत संबंधित व्यक्ति द्वारा, राज्य और गैर-राज्य कारकों के हस्तक्षेप के बिना, विवाह के लिए चयन की स्वतंत्रता भी शामिल है।

इसके अलावा, इस तथ्य पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि भारत में विवाह या तो व्यक्तिगत कानूनों के तहत या 1954 के अधिनियम के तहत किए जा सकते हैं। वास्तव में, आज भी बहुसंख्यक विवाह व्यक्तिगत कानूनों के तहत किए जाते हैं।

व्यक्तिगत कानूनों के तहत ये विवाह पक्षों के धर्म के पुजारी द्वारा किए जाते हैं। किसी भी व्यक्तिगत कानून के तहत इस प्रकार के विवाह के लिए किसी भी नोटिस के प्रकाशन या आपत्तियों आमंत्रित करने की की आवश्यकता नहीं है।

यदि विवाह के इच्छुक व्यक्ति अपने धर्म के रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह के ल‌िए पुजारी के पास जाते हैं तो उनका मौखिक रूप से यह कहना कि वे विवाह करने में सक्षम हैं, व्यक्तिगत कानूनों के तहत विवाह के लिए पर्याप्त माना जाता है।

यदि कोई पक्ष उक्त व्यक्तिगत कानून की किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है, उदाहरण के लिए, यदि कोई पक्ष अपनी वैवाहिक स्थिति को छुपाता है और दूसरा विवाह करता है; तो ऐसा विवाह किसी भी कानून के तहत वर्जित है (यदि एक पक्ष नाबालिग है और उम्र छुपाई गई है या विवाह प्रतिबंधित संबंध आदि के आदेश के तहत विवाह ‌किया गया है।);

किसी भी पार्टी की सहमति छल या दबाव से प्राप्त की जाती है; या इस प्रकार की अन्य परिस्थितियां पैदा होती हैं, तो बाद में मुद्दों का निर्णय न्यायालय द्वारा किया जाता है। लेकिन, विवाह बिना किसी हस्तक्षेप के होता है, भले ही बाद में इसे शून्य घोषित कर दिया जाए।

हालांकि, 1954 के अधिनियम की धारा 6 और 7 के तहत, विवाह के लिए इच्छुक व्यक्तियों को एक नोटिस देना आवश्यक है और विवाह अधिकारी को 30 दिनों की अवधि के लिए नोटिस प्रकाशित करने और इस संबंध में आपत्तियां आमंत्रित करने के लिए बाध्य किया जाता है। कोई भी व्यक्ति इस आधार पर विवाह पर आपत्ति कर सकता है कि यह 1954 के अधिनियम की धारा 4 की किसी भी शर्त का उल्लंघन करता है। 1954 के अधिनियम की धारा 4 के तहत कोई भी शर्त ऐसी नहीं है, जिसका उल्लंघन किसी भी व्यक्ति के अधिकारों को प्रभावित करे। यहां तक ​​कि अगर विवाह के कारण धारा 4 की शर्तों में से किसी का उल्लंघन भी होता है, तो कानूनी नतीजों को भुगतना होगा और अदालतें इस पर निर्णय ले सकती हैं, जिसमें ऐसी शादी को शून्य घोषित करना शामिल है, जैसा कि व्यक्तिगत कानूनों के तहत किया जाता है।

1954 के अधिनियम के तहत प्रक्रिया को अधिक सुरक्षात्मक या अवरोधक बनाकर कोई स्पष्ट वाजिब उद्देश्य प्राप्त नहीं किया गया है, जिसके तहत, अन्य व्यक्तिगत कानूनों की तुलना में, बहुत कम संख्या में विवाह तुलना में हो रहे हैं.....।

रिट याचिका को निस्तारित करते हुए कोर्ट ने कहा, "इस प्रकार, यह न्यायालय यह आदेश देता है कि 1954 के अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस देते समय, यह विवाह के लिए पक्षकारों के लिए वैकल्पिक होगा कि वे धारा 6 के तहत नोटिस प्रकाशित करने या न प्रकाशित करने के लिए विवाह अधिकारी से लिखित में अनुरोध करें।

1954 के अधिनियम के तहत निर्धारित आपत्तियों की प्रक्रिया का पालन करें। यदि वे लिखित रूप में नोटिस के प्रकाशन के लिए ऐसा अनुरोध नहीं करते हैं, तो अधिनियम की धारा 5 के तहत नोटिस देते हुए, विवाह अधिकारी इस तरह के किसी नोटिस को प्रकाशित नहीं करेगा या आपत्तियों को स्वीकार नहीं करेगा और विवाह की पूर्णता के साथ आगे बढ़ेगा।

यह विवाह अधिकारी के लिए खुला रहेगा कि वह 1954 के अधिनियम के तहत किसी भी विवाह को स्वीकार करते हुए, पार्टियों की पहचान, उम्र और वैध सहमति को सत्यापित करे या अन्यथा उक्त अधिनियम के तहत शादी करने की उनकी क्षमता का सत्यापन करें। यदि उसे कोई संदेह है, तो उसके लिए यह खुला होगा कि वह मामले के तथ्यों के अनुसार उपयुक्त विवरण / प्रमाण मांगे।"

विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के प्रावधानों के‌ खिलाफ एक रिट याचिका, सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।

केस: सफिया सुल्ताना बनाम - यूपी राज्य [HABEAS CORPUS No. - 16907 of 2020]

कोरम: जस्ट‌िस विवेक चौधरी

प्रति‌निध‌ित्व: आदर्श कुमार मौर्य, अर्चना सिंह

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