मद्रास हाईकोर्ट ने कपल को विशेष विवाह अधिनियम के तहत वर्चुअल विवाह करने की अनुमति देने वाले एकल पीठ के आदेश पर रोक लगाई
मद्रास हाईकोर्ट ने संयुक्त राज्य अमेरिका में रह रहे दूल्हे को भारत में रह रही दुल्हन के साथ वर्चुअल मोड के माध्यम से विवाह करने की अनुमति देने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश पर अस्थायी रूप से रोक लगा दी है। अदालत ने कहा था कि दुल्हन प्रमाणपत्र में अपने और दूल्हे दोनों के लिए हस्ताक्षर कर सकती है क्योंकि उसके पास इस आशय का पावर ऑफ अटॉर्नी है।
जस्टिस डी कृष्णकुमार और जस्टिस विक्टोरिया गौरी की खंडपीठ जस्टिस जीआर स्वामीनाथन के आदेश के खिलाफ सब रजिस्ट्रार मनावलकुरिची द्वारा दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी।
सब रजिस्ट्रार ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने मामले के तथ्यों को ठीक से न समझ कर गलती की है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि भले ही दुल्हन अपनी ओर से और दूल्हे की ओर से उसे दिए गए पावर ऑफ अटॉर्नी के आधार पर घोषणा पत्र में दोनों के हस्ताक्षर कर देती है, फिर भी समारोह/उत्सव फिजिकल तौर पर उपस्थित होकर किया जाना है।
इस प्रकार, वर्चुअल समारोह के लिए अनुमति देने का प्रश्न ही नहीं उठता है।
अपीलकर्ता ने यह भी प्रस्तुत किया कि अदालत ने स्वामी विवेकानंद द्वारा रामायण की कहानी पर चर्चा करते हुए दिए गए एक भाषण का संदर्भ दिया था जहां राम ने एक समारोह करने के लिए सीता की एक स्वर्ण प्रतिमा रखी थी और उनकी फिजिकल उपस्थिति को प्रतिस्थापित किया था। यह प्रस्तुत किया गया कि यह संदर्भ गलत था क्योंकि राम ने विवाह के बाद प्रतिमा को प्रतिस्थापित किया था, जबकि यहां पक्षकार विवाह को ही संपन्न करने की अनुमति मांग रहे हैं।
आगे यह भी प्रस्तुत किया गया कि एकल न्यायाधीश ने 30 दिनों की समाप्ति के बाद कपल के उनके सामने पेश होने पर विवाह को पंजीकृत नहीं करने के लिए रजिस्ट्रार की आलोचना की थी। सब-रजिस्ट्रार के अनुसार, उस समय विवाह संपन्न नहीं हो सका क्योंकि कपल के परिवार से आपत्तियां प्राप्त हुई थी। इस प्रकार प्राधिकरण ने इस मामले में कोई चूक नहीं की थी और इस प्रकार अदालत का अवलोकन गलत था।
अपीलकर्ता ने यह भी कहा कि सिंगापुर कोविड-19 (विवाह करने और उसके पंजीकरण के लिए अस्थायी उपाय) अधिनियम 2020 और पाकिस्तान के हनफी स्कूल ऑफ थॉट का संदर्भ भी गलत था क्योंकि मामले में तथ्य अलग हैं।
केस टाइटल-सब-रजिस्ट्रार बनाम वासमी सुदर्शिनी
केस नंबर-डब्ल्यूए (एमडी) नंबर 168/2022