मद्रास हाईकोर्ट ने फर्जी पत्रकार के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया कहा, आपराधिक पृष्ठभूमि वाले कई लोग पत्रकार होने का दावा करते हैं
मद्रास हाईकोर्ट ने 'फर्जी पत्रकारों 'के मुद्दे पर स्वत संज्ञान नोटिस लिया है और समस्या से निपटने के लिए तमिलनाडु सरकार, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और विभिन्न पत्रकार निकायों से जवाब मांगा है।
जस्टिस एन .किरुबाकरन और जस्टिस पी. वेलमुरुगन की खंडपीठ ने 10 जनवरी को इस मुद्दे पर उस समय संज्ञान लिया, जब पीठ एक एस.सेकरन द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में मूर्ति चोरी के मामले में उचित जांच की मांग की गई थी।
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह एक पाक्षिक पत्रिका चला रहा था जिसका नाम ''मानीदा मनम''था। सरकारी की तरफ से पेश वकील ने आपत्ति की और कहा कि याचिकाकर्ता एक वास्तविक मीडिया व्यक्ति नहीं था और उसकी पत्रिका को कोई नहीं जानता था।
सत्यापित करने के लिए, पीठ ने उसे एक हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें उसे उसका परिचय स्पष्ट करने को कहा गया। इसके बाद याचिकाकर्ता ने छह पहचान पत्र पेश किए, जिनके बारे में बताया गया कि यह सभी पहचान पत्र सूचना और जनसंपर्क विभाग ने जारी किए थे। इनमें एक पुलिस अधिकारी का मूल पहचान पत्र भी शामिल था, जो मूर्ति चोरी मामले की जांच में शामिल था।
इससे न्यायाधीशों के मन में यह संदेह पैदा हुआ कि क्या याचिकाकर्ता एक फर्जी प्रेस व्यक्ति था, जो तीसरे पक्ष के हितों की रक्षा के लिए मामले की जांच को रोकने या विफल करने के लिए मुकदमेबाजी कर रहा था। संयोग से अदालत ने कहा कि वह इस मामले के साथ-साथ नकली पत्रकारों के मुद्दे की भी जांच पड़ताल करेगी।
पीठ ने कहा,
''विभिन्न मीडिया रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि कई लोग खुद को प्रेस संवाददाताओं के रूप में बताते हैं। पीठ ने कहा कि इस तरह वे अपराध कर रहे हैं और व्यवसायी और सरकारी अधिकारियों को ब्लैकमेल कर रहे हैं।''
कोर्ट ने ''डेली थांथी''का रिपोर्टर होने का दावा करने वाले एक व्यक्ति द्वारा स्कूल प्रबंधन से पैसे ऐंठने की घटना का हवाला दिया।
पीठ ने कहा कि-
''यह हिमशैल का केवल एक सिरा है और कई नकली प्रेस के लोग खुद को लोकप्रिय और स्थापित समाचार पत्रों के पत्रकार होने का दावा कर रहे हैं और उन लोकप्रिय समाचार पत्रों /पत्रिकाओं का नाम खराब करते हुए बैठकों /सेमिनारों के आयोजकों से पैसा इकट्ठा कर रहे हैं।
यह भी कहा गया कि वास्तविक प्रेस के पत्रकारों को दरकिनार कर दिया जाता है और इन फर्जी प्रेस पत्रकारों ने सभी प्रेस संघों को अपने कब्जे में ले लिया है और कहा जाता है कि ये संघों पर हावी हैं।
ये कथित रूप से भुगतान पर समाचार रिपोर्ट कर रहे हैं। खुद को प्रेस लोगों के रूप में दावा करने के लिए पत्रिकाओं या समाचार पत्रों के लिए न्यूनतम प्रसार या प्रसारण जैसा एक पैरामीटर होना चाहिए। पहचान पत्र जारी करने से पहले पार्टियों की पहचान का विस्तार से सत्यापन करना चाहिए, क्योंकि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले कई लोग पत्रकार होने का दावा करते हैं और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। ये लोग प्रेस के कार्ड को उसी तरह ढाल के रूप में प्रयोग करते हैं, जैसे कानून की डिग्री खरीदने वाले कई अपराधी इन डिग्री को अपनी आपराधिक गतिविधियों के लिए एक ढाल के रूप में उपयोग करते हैं।
प्रेस के पत्रकारों का दावा करने वाले इन लोगों की गतिविधियों के कारण, प्रेस की छवि को धूमिल हो गई है, इसलिए सिस्टम को साफ करना होगा ताकि वास्तविक पत्रकारों/ प्रेस के लोगों के हितों की रक्षा की जा सके।''
अदालत ने इसलिए सूचना और जनसंपर्क विभाग के सचिव, टीएन सरकार, प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया, मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, द मद्रास रिपोर्टर्स गिल्ड और चेन्नई प्रेस क्लब को भी इस स्वत संज्ञान के मामले में पक्षकार बना लिया है।
पीठ ने निम्नलिखित प्रश्नों के लिए सरकार से जवाब मांगा
1. पिछले 10 वर्षों से तमिलनाडु सरकार के साथ साप्ताहिक और पाक्षिक सहित कितने समाचार पत्र या पत्रिकाएँ पंजीकृत हैं? प्रत्येक श्रेणी का वर्षवार विवरण देना होगा जैसे पत्रिका या समाचार पत्र।
2. कुल कितने व्यक्तियों को सरकार द्वारा प्रेस पहचान पत्र जारी किए गए हैं?
3. क्या ऐसे लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जा रहे हैं जो आपराधिक गतिविधियों में लिप्त होने के लिए पत्रकार होने का दावा कर रहे हैं? यदि ऐसा है, तो उन मामलों में से कितने मुकदमे दायर किए गए हैं और उन मामलों की वर्तमान में क्या स्थिति है या किस चरण पर है?
4. क्या प्रेस के पत्रकारों के रूप में दावा करने वाले लोग ब्लैकमेल करने और कट्टा पंचायत का संचालन कर रहे हैं?
5. क्या किसी दुर्घटना या असामयिक मृत्यु के मामले में प्रेस के लोगों के लाभ के लिए कोई सरकारी योजना है?
6.क्या प्रत्यायन या आधिकारिक मान्यता समिति और मीडिया संगठन के सभी सदस्य उक्त मीडिया संगठनों से और इन संगठनों के प्रसार या दर्शकों की संख्या से जुड़े हैं?
7. प्रत्यायन या आधिकारिक मान्यता समिति के सदस्यों का चयन किस आधार पर किया जाता है?
8. राज्य सरकार प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया जैसी वैधानिक संस्था की स्थापना करने पर विचार क्यों नहीं कर रही है ताकि वह गलत सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई कर सके?
9. तमिलनाडु में पंजीकृत पत्रकार संघों की सूची क्या हैं?
प्रेस निकायों से, न्यायालय ने निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर मांगे
1. भारत के लिए समाचार पत्रों के रजिस्ट्रार और ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के साथ पंजीकृत अखबारों/ पत्रिकाओं के कितने पत्रकार, मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, द मद्रास रिपोर्टर्स गिल्ड और चेन्नई प्रेस क्लब में से प्रत्येक एसोसिएशन के सदस्यों के रूप में नामांकित है?
2. इन संघों के सभी पदाधिकारी कौन हैं, जैसे मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, द मद्रास रिपोर्टर्स गिल्ड और चेन्नई प्रेस क्लब और वे कौन से समाचार पत्र/ पत्रिकाएँ से संबंध रखते हैं?
3. तीनों संघों के सभी सदस्य, मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, द मद्रास रिपोर्टर्स गिल्ड और चेन्नई प्रेस क्लब के सदस्य कौन हैं?
4. तीनों संघों, मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, द मद्रास रिपोर्टर्स गिल्ड और चेन्नई प्रेस क्लब के लिए अंतिम सदस्यता नामांकन कब आयोजित किया गया था?
5. सभी तीन संघों, मद्रास यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट, द मद्रास रिपोर्टर्स गिल्ड और चेन्नई प्रेस क्लब में अंतिम चुनाव कब आयोजित किया गया था?
6. क्या नकली प्रेस वाले और लोग, जो इस व्यवसाय से जुड़े नहीं हैं, संघों में प्रवेश कर रहे हैं और वास्तविक प्रेस के लोगों पर हावी हो रहे हैं और उन फर्जी प्रेस लोगों द्वारा किए गए सभी कार्य क्या हैं?
21 जनवरी 2020 को, पांच कामकाजी पत्रकारों ने एक याचिका दायर कर कहा कि उनको इस मामले में पक्षकार बनाया जाए ताकि वह अदालत की सहायता कर सकें।
पीठ ने इन पत्रकारों - संध्या रविशंकर ('द लेदे 'के संस्थापक-संपादक), जे जयबाथुरी (उप संपादक, सन न्यूज), डी प्रकाश (मुख्य प्रधान संवाददाता, नकेरन), प्रतिभा परमेस्वरन (फीचर संपादक, टाइम्स आॅफ इंडिया) और संजय राव (प्रमुख संवाददाता, साक्षी टीवी) को पक्षकार बनने की अनुमति दे दी।
इस मामले पर अगली सुनवाई 5 फरवरी को होगी।
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