मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ बारहवीं कक्षा की छात्रा के द्वारा दायर POCSO मामला रद्द किया
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने यह देखते हुए कि 17-18 आयु वर्ग का कोई भी व्यक्ति अपनी भलाई के बारे में सचेत निर्णय लेने में सक्षम होता है ,30 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के मामले को रद्द कर दिया। यह मामला पिछले साल 17 साल और 10 महीने की उम्र के बारहवीं कक्षा की छात्रा द्वारा दायर किया गया था।
न्यायाधीश दीपक कुमार अग्रवाल ने कहा,
“अभियोजन पक्ष की कहानी के अनुसार, वह (छात्रा) नाबालिग है। यह न्यायालय उस आयु वर्ग के एक किशोर के शारीरिक और मानसिक विकास को देखते हुए इसे तर्कसंगत मानेगा कि ऐसा व्यक्ति अपनी भलाई के संबंध में सचेत निर्णय लेने में सक्षम है। प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि इसमें कोई आपराधिक मामला शामिल नहीं है।”
पीठ ने विजयलक्ष्मी और अन्य बनाम राज्य प्रतिनिधि पुलिस निरीक्षक, समस्त महिला थाना के मामले पर भरोसा करते हुए अवलोकन किया।
पीठ सीआरपीसी की धारा 482 के तहत पुलिस स्टेशन- पड़ाव, जिला, ग्वालियर में आईपीसी की धारा 376, 506 के साथ-साथ POCSO अधिनियम की धारा 3, 4 के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द करने के लिए दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ता और शिकायतकर्ता के बीच फेसबुक के माध्यम से दोस्ती हुई और उसके बाद उसने उससे फोन पर बात करना शुरू कर दिया। दिसंबर 2020 में याचिकाकर्ता ने पीड़िता को मिलने के लिए बुलाया और उसे एक होटल में ले गया जहां उसने कथित तौर पर यौन उत्पीड़न किया और उस पर शारीरिक संबंध बनाने के लिए दबाव डाला। इसके बाद अभियोजन पक्ष के अनुसार, याचिकाकर्ता ने कई मौकों पर उसकी अश्लील तस्वीरें वायरल करने की धमकी देकर यौन संबंध बनाए और उसे यह विश्वास दिलाकर शादी का झूठा वादा भी किया कि वह अविवाहित है। 2022 में उसने कथित तौर पर उससे कहा कि वह पहले से ही शादीशुदा है और इसलिए उससे शादी नहीं कर सकता।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि एक साल बाद झूठी एफआईआर दर्ज की गई है और यदि कोई संभोग किया गया तो वह सहमति से किया गया। मामले को रद्द करने की याचिका का विरोध करते हुए अभियोजन पक्ष ने तर्क दिया कि मुकदमा रद्द नहीं किया जा सकता क्योंकि शिकायतकर्ता नाबालिग है।
अदालत ने अभियोजन पक्ष के तर्क को खारिज करते हुए कहा, “जैसा भी हो, इस समय, इस न्यायालय की राय है कि ट्रायल कोर्ट के समक्ष मामले की कार्यवाही से विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों में कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा। पक्षों की दलीलों पर उचित विचार करने के बाद याचिकाकर्ता की प्रार्थना स्वीकार की जाती है।''
याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट राजमणि बंसल और राज्य की ओर से प्रमोद पचौरी उपस्थित हुए।
केस टाइटल कैलाश शर्मा बनाम एमपी राज्य एवं अन्य
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