मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य पर बिना वैध स्वीकृति के अभियुक्तों/संदिग्धों के घरों को "ध्वस्त" करने का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका खारिज की
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बुधवार को उस जनहित याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें राज्य में पुलिस द्वारा कथित तौर पर कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों के घरों और अन्य पक्के निर्माणों को ध्वस्त करने पर अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गई थी।
चीफ जस्टिस रवि मलीमथ और जस्टिस पी.के. कौरव ने कहा कि पेशे से वकील याचिकाकर्ता और उक्त कार्यवाही से पीड़ितों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है, इसलिए याचिका खारिज की जाती है। साथ ही कोर्ट ने कहा कि वे लोग न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकते हैं, जो सीधे तौर पर विध्वंस से पीड़ित हैं।
कोर्ट ने कहा,
तर्कों और अभिवचनों पर विचार करने पर हमारा सुविचारित मत है कि इस याचिका को जनहित याचिका के रूप में स्वीकार करना उचित नहीं होगा। भले ही याचिकाकर्ता के मामले को स्वीकार कर लिया जाए कि कुछ व्यक्तियों के कुछ घरों को ध्वस्त कर दिया गया है, आवश्यक रूप से उन व्यक्तियों को कानूनी रूप से अपनी और अपनी संपत्तियों की रक्षा करने का अधिकार है। हम याचिकाकर्ता और पीड़ितों के बीच कोई सीधा संबंध नहीं पाते हैं, इसलिए यह उन व्यक्तियों के लिए है कि वे आवश्यक आदेश के लिए उचित रूप से न्यायालय का रुख करें, जैसा कि वे उचित समझते हैं। हम वर्तमान याचिकाकर्ता की ओर से इस याचिका पर विचार करने का कोई कारण नहीं पाते हैं।
उक्त जनहित याचिका अमिताभ गुप्ता द्वारा दायर की गई थी, जो मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अधिवक्ता हैं। याचिका के अनुसार, वह कानून और व्यवस्था बनाए रखने के नाम पर राज्य द्वारा अपनाए गए 'शैतानी तरीकों' से चिंतित हैं और लोगों के मन में कथित तौर पर कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों के मन में डर पैदा करते हैं।
याचिका में उल्लेख किया गया कि किसी अपराध के आरोपी/संदिग्ध लोगों के घरों और पक्के निर्माण को पुलिस द्वारा बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए ध्वस्त किए जाने की खबरें आना आम बात हो गई है। याचिकाकर्ता ने आगे तर्क दिया कि हमारे संवैधानिक और कानूनी ढांचे के अनुसार, किसी भी कानून के तहत गठित अधिकारी, नागरिक या आपराधिक, कानून की उचित प्रक्रिया का पालन करने के बाद ही दंडित करने की अपनी शक्ति का प्रयोग कर सकते हैं, जिसमें कम से कम सुनवाई का अवसर शामिल होता है।
हालांकि, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि हमारी आपराधिक न्याय प्रणाली में यह पूरी तरह से समझ से बाहर है कि किसी आरोपी के घर/संपत्ति को केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाए, क्योंकि उन्हें एक अपराध के लिए आरोपी/संदिग्ध बनाया गया है।
याचिका में कहा गया कि राज्य द्वारा इस तरह के कृत्यों ने एक आरोपी के परिवार को प्रभावित किया है और किसी भी तरह कानून की उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उन्हें उपरोक्त तरीके से दंडित करने के लिए उत्तरदायी नहीं बनाया जा सकता है। याचिकाकर्ता के अनुसार, ऐसा करने से राज्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन कर रहा है।
याचिका में अदालत से उन मामलों के रिकॉर्ड तलब करने के निर्देश देने की प्रार्थना की गई, जिनमें राज्य ने कानून के अधिकार के बिना अभियुक्तों/संदिग्धों के घरों या अन्य संरचनाओं को ध्वस्त कर दिया है। इसने अदालत से संबंधित अधिकारियों को कानून के खिलाफ जाकर ऐसी कोई कार्रवाई नहीं करने का निर्देश देने की भी मांग की, जैसा कि याचिका में उल्लेख किया गया है।
केस शीर्षक: अमिताभ गुप्ता बनाम मध्य प्रदेश राज्य
उपस्थिति: अमिताभ गुप्ता, व्यक्तिगत रूप से याचिकाकर्ता; ए.ए. बर्नार्ड, ए.डी. राज्य के लिए ए.जी
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