ऋण स्थगन के दौरान ब्याज वसूली से लाभ की बात ख़त्म हो जाती है : आरबीआई के 22 मई के सर्कुलर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
महाराष्ट्र चैंबर्स ऑफ़ हाउसिंग इंडस्ट्री (एमसीएचआई) की ठाणे इकाई ने रिज़र्व बैंक के 22 मई को जारी सर्कुलर को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। इस सर्कुलर में COVID-19 महामारी के कारण ऋण वसूली पर छह माह के लिए रोक के दौरान ऋण की राशि पर ब्याज वसूलने की बात कही गई है।
एमसीएचआई-ठाणे इकाई ठाणे के रीयल इस्टेट डिवेलपर्ज़ का संगठन है और COVID-19 के कारण इस संघ के कारोबार पर भारी असर पड़ा है।
गत सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई के 27 मार्च के सर्कुलर के ख़िलाफ़ दायर याचिका पर नोटिस जारी किया था, जिसमें ऋण स्थगन की अवधि के दौरान ऋण की राशि पर ब्याज वसूलने की बात कही गई है।
27 मार्च को तीन महीने के लिए ऋण स्थगन का प्रस्ताव दिया गया था जिसे 22 मई को 3 महीने के लिए और बढ़ा दिया गया पर इस छह माह की अवधि के दौरान इस राशि पर ब्याज वसूलने की अनुमति आरबीआई ने दी है।
इस संघ ने कहा है कि कई देशों में क़ानून बनाकर ब्याज वसूली को भी स्थगित किया गया है और ऐसी स्थिति में स्थगन की इस अवधि के दौरान ब्याज वसूलने के आरबीआई के आदेश की वजह से रीयल इस्टेट की बहुत सारी कंपनियों को अपना दरवाज़ा बंद करना पड़ जाएगा।
याचिका में कहा गया है कि ऋण स्थगन की अवधि में ब्याज वसूलना पूरी तरह विनाशकारी और गलत है और इसने ऋण स्थगन के लाभ को समाप्त कर दिया है।
संविधान के अनुच्छेद 14, 19(1) (g) और 21 के तहत चुनौती दी गई है।
याचिका में कहा गया है
"यह अधिसूचना कि ऋण स्थगन के दौरान उस अवधि की राशि पर ब्याज भी देय होगा प्राकृतिक न्याय की अवधारणा का उल्लंघन करती है, क्योंकि एक ओर सरकार ने लोगों से काम बंद करने को कहा जबकि दूसरी ओर वह ऋण स्थगन की अवधि के दौरान लोगों से इस राशि पर ब्याज भी देने को कह रही है।"
संघ की पैरवी चिराग़ शाह, उत्सव त्रिवेदी और अभिनव ने किया। इस मामले की अगले सप्ताह सुनवाई होने की संभावना है।
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