राष्ट्रपति की सहमति के बिना उपराज्यपाल द्वारा अधिसूचित भूमि अनुदान नियम 2022 मान्य नहीं: जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में याचिका दायर
जम्मू एंड कश्मीर एंड लद्दाख हाईकोर्ट के समक्ष पिछले साल दिसंबर में यूटी के उपराज्यपाल द्वारा अधिसूचित भूमि अनुदान नियम 2022 को चुनौती देते हुए याचिका दायर की गई। इस याचिका में कहा गया कि राष्ट्रपति की सहमति के बिना अधिसूचित किए गए नियम कानून की दृष्टि से अमान्य हैं।
जस्टिस विनोद चटर्जी कौल की एकल पीठ ने सोमवार को याचिकाकर्ता के खिलाफ "कोई कठोर कार्रवाई नहीं" करने का आदेश दिया, जिसे तत्कालीन भूमि अनुदान अधिनियम 1960 के संदर्भ में राज्य की भूमि पट्टे पर दी गई, जो अब 2022 के नियमों की अधिसूचना के साथ निरस्त हो गई।
याचिकाकर्ता का कहना है कि एलजी के पास राष्ट्रपति के निर्देश और नियंत्रण के अधीन केंद्र शासित प्रदेश के लिए नियम बनाने की शक्तियां हैं।
याचिकाकर्ता ने अनुरोध किया,
"वर्तमान मामले में केंद्र शासित प्रदेश जम्मू एंड कश्मीर राष्ट्रपति शासन के अधीन है और उपराज्यपाल द्वारा भारत के राष्ट्रपति की सहमति के बिना नियम बनाने की शक्ति का प्रयोग किया गया है।"
यह आगे प्रस्तुत किया गया कि नए नियमों के तहत सरकार ने भूमि अनुदान अधिनियम 1960 के तहत पहले से ही निष्पादित सहित सभी प्रकार के पट्टों का निर्धारण किया और ऐसा करते हुए यह अपनी नियम बनाने की शक्ति की अनुमेय परिसीमा से परे चला गया है और वस्तुतः मूल अधिनियम पर प्रतिस्थापित किया गया।
एडवोकेट असीम शॉनी के माध्यम से याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि मूल अधिनियम के तहत 99 वर्षों की अवधि के लिए कुछ सरकारी भूमि उसे पट्टे पर दी गई। हालांकि, आपत्तिजनक अधिसूचना के तहत उनके "जीवित" पट्टे को नए सिरे से निर्धारण के अधीन किया जा रहा है।
यह आगे कहा गया कि याचिकाकर्ता को दिया गया लीज होल्ड अधिकार कानून के प्रावधानों/डीड की शर्तों के साथ-साथ प्रतिवादियों द्वारा किए गए स्पष्ट आश्वासनों के अनुसार विस्तार के लिए लंबित है। साथ ही याचिकाकर्ता ने पहले ही पट्टाधृत भूमि पर भवन निर्माण एवं परियोजना प्रारंभ करने के लिए उपयुक्त प्राधिकारियों से आवश्यक अनुमति और अनुमोदन प्राप्त कर ली है।
याचिकाकर्ता ने 1982 से पट्टे पर ली गई भूमि पर किए गए भारी निवेश की ओर अदालत का ध्यान आकर्षित किया और अदालत को उन नए निवेशों से अवगत कराया, जो वह सभी विभागों से एनओसी प्राप्त करने के मद्देनजर और जम्मू मास्टर प्लान के अनुरूप करने वाले थे। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि इन सबके बावजूद याचिकाकर्ता को उसके संवैधानिक और वैधानिक/ संविदात्मक अधिकारों के उल्लंघन के आसन्न खतरों के तहत नियमों का अत्यंत असंवैधानिक और अवैध टुकड़ा रखा गया।
नियमों को संविधान के अनुच्छेद 14, 19,21, 300ए के तहत निहित संवैधानिक आदेश के विपरीत करार देते हुए याचिकाकर्ता ने प्रस्तुत किया कि जिस तरह की व्यापक शक्तियों को लागू करने वाले नियमों ने कार्यकारी प्राधिकरण को प्रदान किया, उसने मनमानी करने के लिए जगह बनाई, जो न केवल नियमों बल्कि विधायी अधिनियमन को भी रद्द करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा मान्यता प्राप्त मजबूत/एकमात्र आधार है।
याचिकाकर्ता का तर्क है,
"ये अनियंत्रित शक्तियां हैं, बिना किसी मार्गदर्शन के और कार्यकारी निकाय के हाथों में नीतियां तैयार किए बिना व्यापक विवेकाधिकार दे रही हैं, जिसकी अनुमति मूल अधिनियम और भारत के संविधान के तहत नहीं है।"
जस्टिस कौल ने याचिकाकर्ता के वकील को विस्तार से सुनने के बाद गृह सचिव, जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश के एलजी, सरकार के राजस्व विभाग के आयुक्त सचिव, संभागीय आयुक्त, डीसी जम्मू आदि के माध्यम से भारत संघ को नोटिस जारी किया और मामले को 17 अप्रैल, 2023 के लिए फिर से सूचीबद्ध किया।
केस टाइटल: सैयद नियाज अहमद शाह बनाम भारत संघ व अन्य।
याचिकाकर्ता के वकील: असीम साहनी और प्रतिवादी के वकील: मोनिका कोहली सीनियर एएजी।
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