केरल हाईकोर्ट ने एनडीए उम्मीदवारों की चुनाव नामांकन की अस्वीकृति को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज किया
केरल हाईकोर्ट ने सोमवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के तीन उम्मीदवारों द्वारा दायर की गई याचिकाओं को खारिज किया, जिसमें केरल राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों के लिए उनके चुनाव नामांकन की अस्वीकृति को चुनौती दी गई थी।
न्यायमूर्ति एन नागरश की एक एकल पीठ ने भाजपा उम्मीदवारों एन हरिदास और निवेदिदा सुब्रमण्यम और एआईएडीएमके के उम्मीदवार आरएम धनलक्ष्मी द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज किया, जिनका चुनाव नामांकन क्रमशः थलासेरी, गुरवयूर और देवीकुलम निर्वाचन क्षेत्रों से चुनाव लड़ने के लिए उनके द्वारा प्रस्तुत प्रपत्रों में पार्टी के अध्यक्ष के हस्ताक्षर नहीं होने पर खारिज कर दिया गया था।
पीठ ने कहा कि,
"कोर्ट संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों के रिटर्निंग अधिकारी द्वारा अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा नहीं करने पर नामांकन पत्रों को अस्वीकार करने के उनके निर्णय में हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।"
पीठ ने आदेश में कहा कि,
"एक बार चुनाव प्रक्रिया शुरू होने के बाद न्यायालय इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।"
रिटर्निंग ऑफिसर ने हरिदास के मामले में चुनाव नामांकन के अस्वीकृति का कारण बताया कि नामांकन के साथ प्रस्तुत 'फॉर्म ए' में भाजपा के अध्यक्ष / सचिव के हस्ताक्षर नहीं है। गुरुवायूर क्षेत्र के लिए निवेदिता के नामांकन को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि 'फॉर्म बी' में पार्टी अध्यक्ष का हस्ताक्षर नहीं है (फॉर्म 'ए' पार्टी के प्रायोजित उम्मीदवारों के नामों को नामांकित करने के लिए पार्टी द्वारा अधिकृत व्यक्ति के संबंध में रिटर्निंग अधिकारी को राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष या सचिव द्वारा दी गई सूचना है। फॉर्म 'बी' पार्टी के अधिकृत व्यक्ति द्वारा पार्टी द्वारा प्रायोजित उम्मीदवार के बारे में दी गई सूचना है।)
याचिकाकर्ताओं के तर्क
कोर्ट के समक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एस श्रीकुमार और के रामकुमार ने क्रमशः हरिदास और निवेदिदा की ओर से दलीलें दीं कि,
"रिटर्निंग अधिकारी ने तकनीकी दोष के आधार पर नामांकन को अस्वीकार करके अवैध रूप कार्य किया है, जो कि उचित नहीं है। आगे तर्क दिया गया कि रिटर्निंग अधिकारियों ने उम्मीदवारों को दोष को ठीक करने का अवसर दिए बिना नामांकन को अस्वीकार किया गया। आगे कहा कि हस्ताक्षर की अनुपस्थिति घातक नहीं थी।"
इसलिए उम्मीदवारों ने अपने नामांकन को स्वीकार करने के लिए रिटर्निंग अधिकारियों को निर्देश देने की मांग की।
आगे तर्क दिया गया कि रिटर्निंग ऑफिसर के पास इस तरह के दोष को ठीक करने की अनुमति देने के लिए विवेकाधीन शक्तियां हैं। इस संबंध में, उन्होंने तर्क दिया कि पीरवोम और कोंडोट्टी जैसे निर्वाचन क्षेत्रों में रिटर्निंग अधिकारियों ने उम्मीदवारों को समान दोष को ठीक करने का समय दिया गया था।
आगे तर्क में कहा कि न्यायिक हस्तक्षेप के खिलाफ बार तात्कालिक मामलों में लागू नहीं होता है क्योंकि याचिकाकर्तओं द्वारा चुनाव प्रक्रिया को चुनौती नहीं दी जा रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत कोर्ट तभी हस्तक्षेप कर सकता है जब रिटर्निंग अधिकारियों के मनमाने आदेशों के द्वारा याचिकाकर्ताओं के अधिकारों का उल्लंघन किया गया हो।
एओईएडीएमके के उम्मीदवार देविकुलम की ओर से पेश वकील पीबी कृष्णन ने दलील दी कि रिटर्निंग ऑफिसर के पास ऐसे दोषों को ठीक करने की अनुमति देने की शक्तियां हैं। इसी तरह के दोषों को अन्य निर्वाचन क्षेत्रों में ठीक करने की अनुमति दी गई थी। उन्होंने तर्क दिया कि भारतीय संविधन के अनुच्छेद 324 सी के तहत चुनाव आयोग द्वारा रिटर्निंग ऑफिसर को उनके विवेकाधीन शक्तियों के तहत दिए गए मनमाने आदेश को सुधारने का आदेश दिया जा सकता है।
चुनाव आयोग ने याचिका का विरोध किया
हाईकोर्ट ने रविवार को आयोजित एक विशेष बैठक में भारतीय निर्वाचन आयोग से इन याचिकाओं पर अपनी प्रतिक्रिया देने के लिए कहा था।
कोर्ट में भारतीय निर्वाचन आयोग ने बताया कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 329 बी के अनुसार, चुनाव की अधिसूचना के बाद चुनाव मामलों में न्यायिक हस्तक्षेप पर रोक है। नियमों के तहत पार्टी अध्यक्ष का हस्ताक्षर अनिवार्य है और इसकी अनुपस्थिति दोष है। इस तरह के विवादों को केवल चुनाव की परिणति के बाद वैधानिक उपायों के अनुसार हल किया जा सकता है।
चूंकि कोई भी वैकल्पिक उम्मीदवार मैदान में नहीं है, इसलिए उम्मीदवारों के बर्खास्त होने का मतलब है कि 6 अप्रैल को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एनडीए की ओर से इन निर्वाचन क्षेत्रों में कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं होगा।