"जब तक जरूरी न हो तब तक गिरफ्तार न किया जाए", फुल कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ केरल हाईकोर्ट ने दिए जांच के आदेश 

फुल कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने वाले पुलिस अधिकारी के खिलाफ केरल हाईकोर्ट ने दिए जांच के आदेश, कोर्ट ने कहा था जब तक जरूरी न हो तब तक न किया जाए गिरफ्तार

Update: 2020-05-20 09:24 GMT

केरल हाईकोर्ट

केरल हाईकोर्ट की एक सदस्यीय पीठ ने पिछले दिनों ही जिला पुलिस प्रमुख को निर्देश दिया है कि वह उस जांच अधिकारी के आचरण की जांच करें, जिसने यौन शोषण के मामले में एक अभियुक्त को गिरफ्तार किया था। जबकि यह गिरफ्तारी फुल कोर्ट द्वारा दिए गए उस निर्देश का उल्लंघन करते हुए की गई है, जिसमें फुल बेंच ने कहा था कि COVID 19   महामारी के दौरान तब तक किसी को गिरफ्तार न किया जाए, जब तक ऐसा करना अनिवार्य न हो। 

25 मार्च, 2020 को, केरल हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ ने एक आदेश दिया था। इस पीठ में मुख्य न्यायाधीश एस मणिकुमार, न्यायमूर्ति सीके अब्दुल रहीम और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार शामिल थे।

केरल हाईकोर्ट का आदेश, बहुत जरूरी न हो तो लॉक डाउन की अवधि में पुलिस न करे गिरफ्तारी

फुल कोर्ट ने कहा था कि

'' भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का किसी भी कीमत पर एक अभियुक्त को गिरफ्तार करके उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए,सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहां गिरफ्तारी अपरिहार्य या जरूरी है।''

अदालत ने यह भी आदेश दिया था कि जो व्यक्ति ऐसे अपराधों में शामिल हैं जिनमें अधिकतम सजा 7 साल से कम है, उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया जाना चाहिए।

उपरोक्त निर्देश 23 मार्च को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मद्देनजर जारी किए गए थे। ताकि जेलों में Covid 19  संक्रमण न फैले और इस महामारी के समय जेलों में कैदियों की संख्या कम रहे।  

हालांकि वर्तमान मामले में न्यायमूर्ति पीवी कुन्हिकृष्णन की पीठ ने कहा कि इस मामले में आरोपी पर आईपीसी की धारा 354ए के तहत मामला बनाया गया था जो कि जमानतीय है। वही पाॅक्सो एक्ट 2012 की ऐसी धाराओं के तहत मामला बनाया गया है,जिनमें अधिकतम सात साल तक की सजा का प्रावधान है। फिर भी उसे हिरासत में ले लिया गया।

इन परिस्थितियों के मद्देनजर पीठ ने कहा कि-

''इस न्यायालय की पूर्ण पीठ और शीर्ष न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देशों का पूरी तरह से उल्लंघन करते हुए इस मामले के जांच अधिकारी ने याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया था।"

अदालत ने कहा कि आईओ यह बात कहकर अपना बचाव नहीं कर सकता कि उसे फुल बेंच द्वारा दिए गए निर्देशों के बारे में जानकारी ही नहीं थी, क्योंकि कोर्ट के संबंधित अधिकारियों द्वारा इन निर्देशों का व्यापक रूप से प्रचार किया गया था।

मामले के आईओ के खिलाफ जांच का निर्देश देते हुए पीठ ने कहा कि-

" यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि पूर्ण पीठ का निर्णय सभी मीडिया में प्रकाशित हुआ था। ऐसे में जांच अधिकारी यह नहीं कह सकता है कि वह इस न्यायालय की पूर्ण पीठ के निर्णय के बारे में नहीं जानता था।'' 

अदालत ने आदेश दिया है कि-

''ऐसी परिस्थितियों में मेरे अनुसार, इस मामले के जांच अधिकारी के खिलाफ जांच करना आवश्यक है।

मैं गिरफ्तार करने वाले अधिकारी के खिलाफ कोई और टिप्पणी नहीं कर रहा हूं क्योंकि जमानत अर्जी पर सुनवाई के समय जांच अधिकारी का पक्ष नहीं सुना गया है। लेकिन एक वरिष्ठ अधिकारी को इस मामले में जांच करनी चाहिए और इस न्यायालय के समक्ष जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए। अन्यथा, इस न्यायालय की पूर्ण पीठ के निर्णय का कोई सम्मान नहीं होगा। "

अदालत ने इस मामले में पलक्कड़ के जिला पुलिस प्रमुख को निर्देश दिया है कि वह उस पुलिस अधिकारी के आचरण के बारे में जांच करे, जिसने इस मामले में याचिकाकर्ता को गिरफ्तार किया था। जबकि किसी नागरिक की गिरफ्तारी के संबंध में पूर्ण पीठ द्वारा जारी एक सामान्य निर्देश लागू था।

इतना ही नहीं इस मामले में गिरफ्तारी उस समय की गई थी जब सीआरपीसी की धारा 438 के तहत एक अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट के समक्ष लंबित थी। 

अदालत ने डीपीसी को 30 दिनों के भीतर या तो खुद या एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के माध्यम से जांच पूरी करने और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के समक्ष कार्रवाई रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

इसके अलावा अदालत ने याचिकाकर्ता-अभियुक्त की जमानत याचिका को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि आईपीसी की धारा 354ए के तहत यह मामला जमानतीय है। वहीं आरोपी पर पाॅक्सो एक्ट की धारा 7,8,9 व 10 के तहत लगाए गए शेष अपराधों की प्रासंगिकता अभी आगे की जांच का विषय है। 

इस प्रकार अदालत ने यह निर्देश दिया था कि याचिकाकर्ता-अभियुक्त को जमानत पर रिहा कर दिया जाए। न्यायालय ने कहा था कि इसके लिए उसे एक व्यक्तिगत बांड देना होगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जब भी आवश्यक हो वह संबंधित न्यायालय के समक्ष उपस्थित होगा। इसके अलावा, वह क्षेत्राधिकार पुलिस स्टेशन के स्टेशन हाउस ऑफिसर के सामने पेश होगा और अपना फोन नंबर और उस स्थान का पता उनको बताएगा,जहां पर वह जमानत मिलने के बाद रहने वाला है। 

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि यदि वर्तमान में अदालत काम नहीं कर रही हैं तो याचिकाकर्ता को न्यायिक अदालत के कामकाज के शुरू होने के एक सप्ताह के भीतर 50 हजार रुपये की राशि का बांड व दो जमानती कोर्ट की संतुष्टि के लिए प्रस्तुत करने होंगे। 

मामले का विवरण-

केस का शीर्षक- प्रसाद बनाम केरल राज्य व अन्य।

केस नंबर-बीए नंबर 2827/2020

कोरम- जस्टिस पीवी कुन्हिकृष्णन

 प्रतिनिधित्व-एडवोकेट जैकब सेबेस्टियन, केवी विंस्टन और अनु जैकब (याचिकाकर्ता के लिए), सरकारी वकील अजिथ मुरली और संतोष पीटर (सीनियर) (प्रतिवादी के लिए)

आदेश की प्रति डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें




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