कर्नाटक हाईकोर्ट ने 'पाकिस्तान जिंदाबाद' मैसेज के साथ फेसबुक पोस्ट करने वाले व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की
कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने 'पाकिस्तान जिंदाबाद' मैसेज के साथ फेसबुक पोस्ट करने वाले आरोपी व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही रद्द की।
पुलिस ने आपराधिक कार्यवाही शरू करते हुए कहा था कि पोस्ट सैनिकों का अपमान करने और समाज की शांति को भंग करने के समान है।
जस्टिस वी श्रीशानंद ने केएम बाशा द्वारा दायर याचिका को स्वीकार कर लिया और आईपीसी की धारा 505 के तहत उनके खिलाफ दायर चार्जशीट पर संज्ञान लेते हुए आदेश को रद्द कर दिया।
अदालत ने कहा कि आईपीसी की धारा 505 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने से पहले, सीआरपीसी की धारा 196 (1) (ए) के तहत पूर्व मंजूरी आवश्यक है।
कोर्ट ने कहा,
"प्रावधानों से यह भी स्पष्ट है कि इस तरह की मंजूरी दिए जाने से पहले, आईपीसी की धारा 505 के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में सक्षम प्राधिकारी द्वारा एक व्यक्ति द्वारा प्रारंभिक जांच की जानी चाहिए, जैसा कि सीआरपीसी की धारा 196 (3) के तहत विचार किया गया है।"
अक्टूबर 2020 में, याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर ये पोस्ट किया था जिसमें कथित तौर पर पाकिस्तान का एक सैनिक "हर दिल की आवाज़ पाकिस्तान ज़िंदाबाद" शब्दों के साथ एक महिला से बात कर रहा था। उसने फेसबुक पर अपने दोस्तों के साथ मैसेज शेयर किया।
सूचना मिलने पर पुलिस उपनिरीक्षक तहसीलदार कार्यालय पहुंचे और वहां खड़े व्यक्ति से पूछताछ की। उसने अपना नाम के.एम.बाशा बताया और पूछताछ में उसने स्वीकार किया कि उसने मैसेज शेयर किया था। आगे उसने अपने मोबाइल में मैसेज दिखाया और बाद में उसे डिलीट कर दिया।
पुलिस सब इंस्पेक्टर द्वारा एक शिकायत दर्ज की गई थी जिसमें दावा किया गया था कि इस तरह के मैसेज को शेयर करना देश के सैनिकों का अपमान करना है, जिसके परिणामस्वरूप उनका मनोबल गिरेगा और समाज की शांति भंग होगी।
इसके बाद पुलिस ने मामले की जांच की और चार्जशीट दाखिल की।
मजिस्ट्रेट ने मामले का संज्ञान लिया। जिसके बाद, याचिकाकर्ता ने कार्यवाही को रद्द करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने तर्क दिया कि उसके खिलाफ मामला दर्ज करना कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग है। अदालत को यह भी बताया गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार से कोई मंजूरी नहीं ली गई थी और इसलिए मजिस्ट्रेट मामले का संज्ञान नहीं ले सकते थे।
अभियोजन पक्ष की ओर से याचिका का यह कहते हुए विरोध किया गया कि मजिस्ट्रेट द्वारा संज्ञान लेने का आदेश न्यायोचित और उचित है।
पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 505 के तहत दंडनीय अपराधों के लिए पूर्व मंजूरी जरूरी है।
आगे जांच के दौरान पुलिस सब-इंस्पेक्टर की रिपोर्ट ठीक से दर्ज नहीं की गई है। सीआरपीसी की धारा 196 (1) के प्रावधानों के अनुसार आवश्यक अनुपालन का पालन नहीं किया गया है।
कार्यवाही को रद्द करते हुए, अदालत ने स्पष्ट किया कि वह जांच एजेंसी को सीआरपीसी की धारा 196 के प्रावधानों का पालन करने से नहीं रोकेगी, और कानून के अनुसार नए सिरे से मामले की जांच करेगी।
कोर्ट ने कहा,
"अगर इस तरह की जांच में पर्याप्त सामग्री पाई जाती है, तो जांच एजेंसी आवश्यक चार्जशीट दायर करने और कानून के अनुसार मामले में आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र है।"
केस टाइटल: के एम बाशा और कर्नाटक राज्य
केस नंबर : क्रिमिनल पेटिशन नंबर 201668/2022
साइटेशन: 2023 लाइव लॉ (कर्नाटक) 28
प्रतिनिधित्व: याचिकाकर्ता की ओर से एडवोकेट अरुणकुमार अमरगुंडप्पा।
प्रतिवादी के लिए एचसीजीपी माया टीआर।
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