पत्रकारों को कोरोना से संक्रमण का ख़तरा : कर्नाटक हाईकोर्ट ने वित्तीय मदद देने की यचिका पर सरकार को निर्देश जारी किए
कर्नाटक हाईकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार से कहा है कि वह दो महीने के भीतर इस याचिका पर निर्णय लें कि अगर COVID 19 के कारण मीडियाकर्मी और अख़बार डिलीवर करने वाले लोगों की मौत होती है तो उनके निकट संबंधियों को ₹50 लाख का मुआवज़ा दिया जाए।
जेकब जॉर्ज ने यह याचिका दायर की है और इसकी सुनवाई न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सूरज गोविन्दराज ने की।
अदालत ने कहा कि अपने कर्तव्यों को पूरा करने के लिए पत्रकार COVID 19 से संक्रमण का ख़तरा भी मोल ले रहे हैं।
"मीडिया एक ऐसा माध्यम है जो सरकार की नीतियों को जनता तक पहुंचाता है ताकि सरकार की इन नीतियों की विवेचना हो सके, इसलिए मीडिया से ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग की उम्मीद की जाती है और इसलिए वर्तमान में महामारी के समय में स्वास्थ्य संकट की सही तस्वीर दिखाई जाए यह उम्मीद उनसे की जाती है। इसके लिए मीडियाकर्मियों को अपने स्वास्थ्य को महामारी से ख़तरे की अनदेखीकर सूचना एकत्र करनी होगी और फिर उसे लोगों तक प्रिंट या इलेक्ट्रोनिक मीडिया के माध्यम से पहुंचाना होगा…।"
"…हम इसे उचित समझते हैं कि हम प्रथम और दूसरे प्रतिवादी को यह निर्देश दें कि वे इस प्रस्ताव पर इस आदेश की प्रति प्राप्त होने के दो महीने के भीतर ग़ौर करें।"
केंद्र सरकार की पैरवी करते हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि ऐसा करना पूरी तरह नीतिगत मामला है और संविधान का अनुच्छेद 14 के प्रावधान के तहत यह नहीं आता। मीडियाकर्मियों की तुलना पुलिस या स्वास्थ्यकर्मियों से नहीं की जा सकती।
इस याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार किया जाए कि नहीं, इस बात पर यह दलील दी गई कि पत्रकार कोई सार्वजनिक या सरकारी ज़िम्मेदारी नहीं निभाते। वे निजी मीडिया हाउज़ेज़ के निर्देशों का पालन करते हैं। अगर किसी पत्रकार को संक्रमण के कारण कोई क्षति पहुंचती है तो वह या उसका परिवार उसके नियोक्ता से मुआवज़े की मांग कर सकता है न कि राज्य या केंद्र सरकार से।
इसके अलावा उन्होंने 5 मार्च 2019 को जारी दिशानिर्देश का भी हवाला दिया जो केंद्र सरकार ने पत्रकारों के लिए जारी किया। यह सभी पत्रकारों पर लागू होता है और वे इसके तहत राहत की माँग कर सकते हैं।
इसके जवाब में पीठ ने कहा कि मीडिया भी सरकार के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि एक स्वतंत्र और संतुलित मीडिया न केवल लोकतंत्र की पहचान है बल्कि एक सरकार के लिए ज़रूरी भी ताकि वह लोगों को सरकार की नीतियो और योजनाओं के बारे में बता सके और इस बारे में बहस हो सके और सरकार आम लोगों की बहुमूल्य राय जान सके, उसमें तदनुसार बदलाव ला सके ताकि वे ज़्यादा प्रभावी बन सकें और जिससे अंततः आम लोगों और देश को ही फ़ायदा होगा।