जेएनयूएसयू हाईकोर्ट में : हॉस्टल मैन्यूअल में परिवर्तन को ग़ैर क़ानूनी और मनमाना कहा

Update: 2020-01-22 12:36 GMT

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संगठन (जेएनयूएसयू) ने विश्वविद्यालय प्रशासन के हॉस्टल मैन्यूअल में बदलाव के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है।

जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष, उपाध्यक्ष साकेत मून, महासचिव सतीश चंद्र यादव और संयुक्त सचिव मोहम्मद दानिश ने हाईकोर्ट में अपील दाख़िल की है, जिसमें इंटर हॉस्टल एडमिनिस्ट्रेशन के निर्णयों को चुनौती दी है और इसे मनमाना और छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाला बताया है।

हॉस्टल मैन्यूअल में तब्दीली कर हॉस्टल फ़ीस में बढ़ोतरी की गई है, जिससे आरक्षित श्रेणी के छात्रों के अधिकारों पर इसका असर पड़ा है और उनको हॉस्टल में कमरा देने पर इसके प्रभाव के अलावा आईएचए में जेएनयूएसयू का प्रतिनिधित्व भी कम हो जाएगा।

याचिका में आईएचए की बैठक की बातों को चुनौती दी गई है, जिसमें कहा गया है कि मेस, सफ़ाई, कमरे एवं अन्य श्रेणी के चार्जेज़ में 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी हर अकादमिक वर्ष में की जाएगी।

याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि आईएचए ने छात्रों के प्रतिनिधियों को इस बैठक के बारे में बैठक से मात्र 30 मिनट पहले नोटिस भेजा। छात्र संघ ने दलील दी है कि आईएचए अध्यक्ष ने ऐसा इसलिए किया ताकि इस बैठक में छात्रों का कोई प्रतिनिधि शामिल नहीं हो सके जो कि हॉस्टल मैन्यूअल को बदलने को लेकर इससे संबंधित सभी पक्षों से मशविरे के प्रावधान का उल्लंघन है।

इसके बाद छात्र संगठन ने कई बार विश्वविद्यालय प्रशासन से प्रक्रिया के उल्लंघन की शिकायत की। हालांकि, ऐसा आरोप है कि विश्वविद्यालय ने कोई कार्रवाई करने से मना कर दिया और बैठक को सही बताया। याचिका में कहा गया है कि बाद में जो उच्चस्तरीय कमिटी गठित की गई उसकी रिपोर्ट में भी मैन्यूअल में परिवर्तन को सही ठहराया गया और यह भी ग़ैरक़ानूनी है।

याचिकाकर्ताओं ने मेरिट-कम-मींस छात्रवृत्ति कार्यक्रम का उल्लेख किया है जिसके तहत ऐसे छात्रों को छात्रवृत्ति दी जाती है जिनकी आय ₹ 2, 50,000 से ज़्यादा नहीं है। छात्रों ने कहा है कि इस छात्रवृत्ति से उन छात्रों को हॉस्टल में कमरे का किराया कम देना पड़ता था। अब आईएचए, ईसी और एचएलसी के ग़ैरक़ानूनी निरनयों की वजह से उनसे उनके ये अधिकार छीन लिए गए हैं।

छात्र संगठन ने विश्वविद्यालय में ग़रीबी रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी को लागू करने के निर्णय पर भी सवाल उठाया है। उसने कहा है कि बैठक यह बताने में विफल रहा कि बीपीएल विश्वविद्यालय के छात्रों पर कैसे लागू किया गया। न तो संशोधित आईएचए में और न ही ईसी में यह स्पष्ट किया गया है कि यह श्रेणी कैसे काम करेगा।

इसलिए, याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि हॉस्टल मैन्यूअल में संशोधन ग़ैरक़ानूनी है और यह जेएनयू अधिनियम, 1966 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है। इसे ग़ैरक़ानूनी बताते हुए आईएचए की बैठक की मिनट को ख़ारिज करने और दुबारा बैठक बुलाए जाने का निर्देश दिए जाने की माँग की है। 

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