डिटेंशन को चुनौती देने वाली हैबियस कार्पस याचिका में अंतरिम जमानत केवल असाधारण परिस्थितियों में दी जा सकती है : मद्रास हाईकोर्ट

Update: 2020-10-05 12:11 GMT

Madras High Court

मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि प्रिवेंटिव डिटेंशन को चुनौती देने वाली बंदी प्रत्यक्षीकरण (हैबियस कार्पस) याचिकाओं में अंतरिम जमानत केवल उन असाधारण परिस्थितियों में दी जा सकती है, जब यह सुनिश्चित किया जाता है कि न्यायालय का हस्तक्षेप अपरिहार्य है।

यह मानते हुए जस्टिस टीएस सिवागणनाम और जस्टिस पुष्पा सत्यनारायण की खंडपीठ ने 15 जून को दिए गए उस आदेश को वापिस ले लिया है,जिसके तहत एक डिटेन्यू को अंतरिम जमानत दी गई थी। खंडपीठ ने इस मामले में तमिलनाडु सरकार की तरफ से डिटेन्यू की रिहाई पर की गई आपत्तियों पर विचार करने के बाद यह निर्णय लिया है (तमिलनाडु सरकार व अन्य बनाम एस इंदिरा मूर्थि)।

यह स्वीकार करते हुए कि न्यायालय के पास डिटेंशन को चुनौती देने वाली हेबीअस काॅर्पस के मामलों में अंतरिम जमानत देने की शक्ति है, न्यायालय ने कहा कि ऐसी शक्ति में आंतरिक या अंतर्भूत प्रतिबंध हैं।

कोर्ट ने कहा कि,''

... हमारा विचार है कि हालांकि इस न्यायालय को योग्य मामलों में अंतरिम जमानत देने के लिए अधिकार क्षेत्र मिला हुआ है, लेकिन इस तरह के अधिकार क्षेत्र और शक्ति के उपयोग पर आंतरिक प्रतिबंध हैं, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के तहत माना गया है।''

न्यायमूर्ति पुष्पा सत्यनारायण द्वारा लिखित निर्णय में यह भी कहा गया है कि-

''... हमें यह मानने में कोई हिचक नहीं है कि आमतौर पर यह कोर्ट हेबीअस कॉर्पस याचिका के मामले में अंतरिम जमानत की मांग पर विचार नहीं करती है,बशर्ते जब तक यह सुनिश्चित नहीं किया जाता है कि मामले के उस स्तर पर कोर्ट का हस्तक्षेप अपरिहार्य है।''

कोर्ट ने यह भी कहा कि-

''... यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि जब यह न्यायालय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हेबीअस काॅर्पस याचिकाओं (जिनमें डिटेंशन की वैधता के आदेशों पर सवाल उठाए गए हो)पर विचार करता है तो उसके पास अंतरिम जमानत देने का अधिकार क्षेत्र होता है, परंतु उक्त क्षेत्राधिकार की कवायद अनिवार्य रूप से उन विचारों से परिचालित है जो इस तरह की कार्यवाही के लिए विशेष होते हैं।''

न्यायालय उस व्यक्ति के डिटेंशन के मामले में विचार कर रही थी,जिसे Tamil Nadu Prevention of Dangerous Activities of Bootleggers, Cyber Law Offenders, Drug-Offenders, Forest-Offenders, Goondas, Immoral Traffic Offenders, Sand-Offenders, Sexual Offenders, Slum-Grabbers and Video Pirates Act, 1982 के तहत ''सैंड-ऑफंडर'' घोषित कर दिया गया था।

15 जून को डिटेन्यू को अंतरिम जमानत दिए जाने के बाद, सरकार ने इस आदेश को वापस लेने के लिए एक अर्जी दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि डिटेन्यू को इस आधार पर अंतरिम जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता है कि उसे सलाहकार बोर्ड के सामने पेश नहीं किया गया था। सरकार की तरफ से कहा गया था एक्ट 14 आॅफ 1982 के तहत कोई ऐसा प्रावधान नहीं है,जिसके तहत डिटेन्यू को सलाहकार बोर्ड के समक्ष पेश करना अनिवार्य हो।

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