झूठा केस दायर करने के कारण पति या उसके परिवार का जेल जाना क्रूरता के समान : कलकत्ता हाईकोर्ट
कलकत्ता हाईकोर्ट की दो सदस्यीय खंडपीठ ने एक फैसला सुनाते हुए माना है कि यदि किसी पति/उसके परिवार को आपराधिक मामले में झूठा फंसाया जाता है, जिससे उनकी गिरफ्तारी होती है और उनको जेल में रहना पड़ता है तो यह क्रूरता के समान है।
एक पीड़ित पति की तरफ से दायर तलाक की अपील की अनुमति देते हुए जस्टिस समापती चटर्जी और जस्टिस मनोजीत मंडल की पीठ ने कहा कि-
''हमारी राय में प्रतिवादी/पत्नी का अपने पति के साथ रहने का कोई इरादा नहीं था, क्योंकि मामले के तथ्यों और परिस्थितियों से यह साफ हो रहा है और प्रतिवादी/पत्नी ने जानबूझकर पति और उसके रिश्तेदारों के खिलाफ बेबुनियाद आरोप लगाए।
यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि पत्नी का पति के साथ रहने का कोई इरादा नहीं था और उसका इरादा वैवाहिक संबंध को समाप्त करना था, इसलिए प्रतिवादी/पत्नी के ऐसे कार्य, विशेष रूप से एक आपराधिक मामला दर्ज करवाना और जिसके लिए उसके पति और ससुर को हिरासत में रखा गया, एक क्रूरता है,जिसने जीवन के बारे में डर पैदा कर दिया और इस प्रकार, यह तलाक का आधार हो सकता है।''
अपीलार्थी/पति ने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश के एक आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया था, जिसने अपीलार्थी की तलाक की याचिका खारिज कर दी थी।
अपील में दलील दी गई कि उसकी पत्नी ने क्रूरता और सहमति के बिना उसका गर्भपात कराने का आरोप लगाते हुए आईपीसी की धारा 498 ए, 406 और 313 के तहत उसके और उसके परिवार के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज की थी।
यह भी बताया गया कि झूठी शिकायत दर्ज करने पर, उसे और उसके पिता को गिरफ्तार कर लिया गया और नौ दिनों तक पुलिस हिरासत में रखा गया। हालांकि बाद में, ट्रायल कोर्ट ने पाया कि प्रतिवादी/पत्नी के आरोप मेडिकल साक्ष्य या रिकॉर्ड पर रखी गई अन्य सामग्री से साबित नहीं हो पाए थे इसलिए उन सभी को बरी कर दिया गया।
फिर भी, समाज में उनकी छवि, प्रतिष्ठा और स्टे्टस खराब होने के अलावा उनको जबरदस्त शारीरिक जोखिम और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ा।
इन परिस्थितियों में हाईकोर्ट ने 'राज तलरेजा बनाम कविता तलरेजा, 2017 एससीसी 194', मामले सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों को दोहराया। जो इस प्रकार थीं-
''शिकायत दर्ज करना क्रूरता नहीं है, अगर शिकायत दर्ज करने के औचित्यपूर्ण कारण हैं। केवल इसलिए कि शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है या ट्रायल के बाद आरोपी को बरी कर दिया जाता है, यह सभी हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अर्थ के तहत पत्नी के ऐसे आरोपों को क्रूरता मानने का आधार नहीं हो सकते।
हालांकि, अगर यह पाया जाता है कि आरोप स्पष्ट तरीके से झूठे हैं। तो इसमें कोई संदेह नहीं हो सकता है कि एक पति या पत्नी द्वारा दूसरे पति या पत्नी के खिलाफ झूठे आरोप लगाने का आचरण क्रूरता का कार्य होगा।''
इस मामले को पैराग्राफ के दूसरे भाग में की गई टिप्पणियों में पूरी तरह फिट पाते हुए , बेंच ने अपील को स्वीकार कर लिया और तलाक की डिक्री के द्वारा उनकी शादी को भंग कर दिया।
मामले का विवरण-
केस का शीर्षक- श्री सुचित्रा कुमार सिंघा रॉय बनाम श्रीमती अर्पिता सिंघा रॉय
केस नंबर-एफए 135/2014
कोरम- न्यायमूर्ति समापती चटर्जी और न्यायमूर्ति मनोजित मंडल
प्रतिनिधित्व-वकील आशीष बागची, इंद्राणी चटर्जी और कुशाल चटर्जी (अपीलकर्ता के लिए) और वकील श्रीजीब चक्रवर्ती, देवव्रत रॉय और एस. दास (प्रतिवादी के लिए)