पति ने भरण पोषण के भुगतान से बचने के लिए फर्ज़ी दस्तावेज़ किए पेश, अदालत ने अंतरिम भरण पोषण की राशि दो गुना करने के आदेश दिए
निचली अदालत में लंबित घरेलू हिंसा के मामले में पति की झूठी गवाही और किराए का फर्जी करारनामा पेश करने पर कड़ा रुख अख्तियार करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने पत्नी को दी जानेवाली अंतरिम मुआवजे की राशि को बढ़ा दिया, जिसका भुगतान पति को करना है। अदालत ने यह निर्देश भी दिया कि इस मामले की सुनवाई सीआरपीसी की धारा 340 के तहत होनी चाहिए।
पति की दलील
याचिकाकर्ता पति अभिषेक दुबे ने निचली अदालत और अपीली अदालत के आदेश में संशोधन के लिए हाइकोर्ट में अपील की थी। इन अदालतों ने अभिषेक को निर्देश दिया था कि वह अपनी पत्नी और प्रतिवादी अर्चना तिवारी को हर महीने 10 हजार रुपये की राशि गुजारा भत्ता के रूप में चुकाए।
अभिषेक ने दलील दी कि उसकी आय मात्र 10 हजार रुपये प्रति माह ही है और उससे यह उम्मीद कैसे की जा सकती है कि वह अपनी पूरी सैलरी अपनी पत्नी को 'विलासितापूर्ण और पश्चिमी ठाठ'की जिंदगी जीने के लिए दे देगा। इस बारे में मनीष जैन बनाम आकांक्षा जैन (2017) 15 SCC 801, मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था,
"अदालत को पक्षों की हैसियत को अवश्य ही ध्यान में रखना चाहिए कि वह अपनी पत्नी को गुजारे की राशि देने की क्षमता रखता है या नहीं।"
पति ने आगे कहा कि प्रतिवादी का इस तरह का कदम उठाने से उसके मां-बाप ने उससे रिश्ता तोड़ लिया है और वह एक किराए के मकान में पिछले तीन सालों से रह रहा है। उसने बताया कि वह लखनऊ में अपने वकील के घर की दूसरी मंजिल पर किराएदार के रूप में रह रहा है।
प्रतिवादी के वकील ने इस दलील का प्रतिवाद किया और कहा कि याचिकाकर्ता लखनऊ का एक प्रसिद्ध व्यापारी है और उसकी आय 2 लाख रुपये है। उसने अदालत में उसकी आय के बहुत सारे स्रोतों के बारे में दस्तावेज पेश किये। प्रतिवादी ने आगे कहा कि अपीलकर्ता ने किराए का जो करारनामा पेश किया है वह फर्जी है और जिस मकान में उसने रहने का दावा किया है उसमें दूसरा माला है ही नहीं।
दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने निचली अदालत में यह कहा है कि वह अपने वकील के घर के दूसरे माले पर किराए पर रहता है।
अदालत का फैसला
अदालत ने याचिकाकर्ता के खिलाफ शपथ-भंग का मामला ठहराते हुए कहा,
"याचिकाकर्ता ने शपथ-भंग की है...वह किराए के जिस मकान में रहने की बात कही है वो वहां नहीं रह रहा है और यह पता फर्जी है। इस वजह से मैं निचली अदालत को निर्देश देता हूं कि इसके खिलाफ सीआरपीसी की धारा 340 के तहत मुकदमा चलाया जाए।"
भरण पोषण की राशि बढ़ाई
यह जानने के बाद कि याचिकाकर्ता एक व्यवसायी है और नकद का कारोबार करनेवाले किसी व्यक्ति की वास्तविक आय का आकलन मुश्किल है, अदालत ने उसके रहन-सहन की शैली के आधार पत्नी से अलग होने के समय उसकी आय का आकलन किया। इसके अनुरूप, अदालत ने कहा कि उसकी आय 50 हजार से एक लाख रुपये के बीच की है और वह बहुत आसानी से अपनी पत्नी का भरण-पोषण कर सकता है।
अंततः अदालत ने अपीलकर्ता को निर्देश दिया क वह अपनी पत्नी को हर महीने 20 हजार रुपये गुजारे की राशि के रूप में दे।
अदालत ने कहा,
"प्रतिवादी याचिकाकर्ता की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी है और उसका भरण-पोषण करना उसका कर्तव्य है. निचली अदालत ने गुजारे की राशि के रूप में जो 10 हजार रुपये देने को कहा है। वह गुजारे के लिए आज की तिथि में पर्याप्त नहीं है, इसलिए मैं इस राशि को बढाकर 20 हजार रुपये प्रतिमाह कर रहा हूं और यह राशि उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत मामला दायर होने के दिन से चुकानी होगी।
याचिकाकर्ता की पैरवी वकील मनोज कुमार द्विवेदी और पीयूष द्विवेदी ने किया जबकि प्रतिवादी की पैरवी वकील नमित सक्सेना ने की।