"वह एक पुलिस अधिकारी है, अपने अधिकार के बारे में अच्छे से जानता है": स्पेशल एनआईए कोर्ट ने सचिन वाजे की गिरफ्तारी के मामले में गाइडलाइन्स का पालन नहीं करने के आरोप पर कहा
बॉम्बे हाईकोर्ट में असिस्टेंट पुलिस इंस्पेक्टर सचिन वाजे ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी द्वारा की गई उनकी गिरफ्तारी को "गैरकानूनी' करार देने के लिए गुहार लगाई है, लेकिन स्पेशल एनआईए कोर्ट ने गिरफ्तारी में अनियमितता के आधार उसके आवेदन को खारिज कर दिया।
स्पेशल एनआईए के जस्टिस प्रशांत सितरे ने कहा कि,
"अभियुक्त एक पुलिस अधिकारी है और इसलिए वह अपने अधिकार के बारे में अच्छे से जानता है।"
अम्बानी हाउस विस्फोटक मामले में मुख्य संदिग्ध होने के कारण सचिन वाजे को 13 मार्च को गिरफ्तार किया गया था और अगले दिन 25 मार्च तक के लिए राष्ट्रीय जांच एजेंसी की हिरासत में भेज दिया गया था।
स्पेशल एनआईए कोर्ट के समक्ष वाजे ने अपने आवेदन में गिरफ्तारी को लेकर दो चीजों का जिक्र करते हुए एजेंसी पर आरोप लगाया। पहला कि उसे 24 घंटे के भीतर अदालत में पेश नहीं किया गया और न ही उसे वकील से मिलने की अनुमति दी गई। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके परिवार को उनकी गिरफ्तारी के आधार के बारे में सूचित नहीं किया गया था। दूसरी बात, उन्हें गिरफ़्तार करने की मंजूरी राज्य सरकार की 1997 की अधिसूचना के सीआरपीसी की धारा 45 (1) के तहत नहीं मिली थी।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की ओर से पेश विशेष अभियोजक सुनील गोंसाल्वेस ने कहा कि वाजे एक पुलिस अधिकारी है, जो अपने अधिकारों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं। आगे कहा कि वाजे ने कांउसलर एक्सेस के लिए नहीं कहा था। गोंसाल्वेस ने प्रस्तुत किया कि सचिन वाजे जानबूझकर अपने मोबाइल हैंडसेट के बिना पूछताछ के लिए आए थे, इसलिए वे अपने परिवार के सदस्यों को उनकी गिरफ्तारी के बारे में सूचित करने में असमर्थ थे, लेकिन संबंधित पुलिस स्टेशन को सूचित किया गया था।
आगे तर्क दिया कि वाजे को दोपहर के 11.50 बजे गिरफ्तार किया गया था और अगले दिन दोपहर 2.45 बजे उसे कोर्ट के समक्ष पेश किया गया था, इससे साफ पता चलता है कि वाजे 24 घंटों के भीतर ही कोर्ट के समक्ष पेश किया गया था। न्यायाधीश ने अभियोजक की बात पर सहमति जताई।
स्पेशल जज सिट्रे ने कहा कि,
"यह एक स्वीकार किया गया तथ्य है कि अभियुक्त एक पुलिस अधिकारी था और इसलिए उसे अपने अधिकार के बारे में अच्छे से जानकारी है। स्टेशन डायरी की एंट्री के मुताबिक अभियुक्त और संबंधित पुलिस स्टेशन को सूचना प्रदान की गई थी इसलिए यह माना जाता है कि उसकी गिरफ्तारी के बारे में भी जानकारी दी गई थी। इसका मतलब है कि आरोपी को गिरफ्तारी का आधार प्रदान बताया गया था।"
कोर्ट ने राज किशोर राय बनाम कमलेश्वर पांडे और अन्य एआईआर 2002 (एससी) 2861 के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भरोसा जताया। इसमें अदालत ने अवलोकन किया था कि क्या प्रतिवादी नंबर 1 ने अपने कर्तव्यों का निर्वहन किया था और क्या बचाव का प्रदर्शन किया था या क्या काल्पनिकता की जांच ट्रायल के दौरान की जा सकती है।
कोर्ट ने वाजे के वकील सजल यादव की अनुमचि आवेदन स्वीकार किया, जिसमें वकील को वाजे से पूछताछ के दौरान दूर से देखने की अनुमति मिली, लेकिन नजदीक नहीं जा सकते हैं।
जज ने कहा कि सीआरपीसी के धारा 41-D आंशिक रूप से एक आरोपी को वकील तक पहुंचने की अनुमति देता है। हालांकि विशेष न्यायाधीश ने सीनियर इंटलिजेंट अधिकारी बनाम जुगल किशोर शर्मा 2011 (2) AIR 223-8 SCC के मामले पर भरोसा जताते हुए कहा कि जब आरोपी से पूछताछ चल रही हो, तब आरोपी अपने वकील से सलाह नहीं ले सकता है।
पृष्ठभूमि
25 फरवरी को दक्षिण मुंबई के अल्तामोंट रोड पर बिजनेसमैन मुकेश अंबानी के घर एंटीलिया के पास एक विस्फोटक से भरी स्कॉर्पियो कार मिली थी। कार में 20 जिलेटिन की छड़ें (विस्फोटक) और अंदर एक धमकी भरा लेटर था। मुंबई के क्राइम ब्रांच अधिकारी सचिन वाजे और उनकी टीम द्वारा इस मामले की जांच की जा रही थी। हालांकि वाजे के खिलाफ आरोप लगने के बाद मामला एनआईए को स्थानांतरित कर दिया गया।
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 286 (विस्फोटक पदार्थों से संबंधित लापरवाही आचरण), धारा 465 (जालसाजी के लिए सजा), धारा 473 (नकली मुहर बनाने या रखने), धारा 506 II (आपराधिक धमकी के लिए सजा) और विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के 4 (ए) (बी) (आई) (विस्फोट करने की कोशिश या जीवन को खतरे में डालने या संपत्ति को नष्ष करने के इरादे से विस्फोटक रखने के लिए सजा) के तहत सचिन वाजे के खिलाफ एफआईआर दर्ज किया।