"विश्वास करना मुश्किल है कि एक महिला किसी अंजान व्यक्ति को अपने बेटे का पिता कहेगी": हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गुरुवार को फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा है, जिसमें याचिकाकर्ता को अपने कथित बेटे को भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था। बच्चे की मां ने यह भी कहा था कि बच्चे का जन्म याचिकाकर्ता के साथ शारीरिक संबंध बनाने से हुआ था, जिसने उसे अपनी 'उपपत्नी(mistress)' के रूप में रखा था।
रिवीजन याचिका को खारिज करते हुए, जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने कहा,
''प्रतिवादी के पितृत्व के बारे में प्रतिवादी की मां के बयान को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता है। यह विश्वास करना कठिन है कि एक महिला किसी अंजान व्यक्ति को अपने बेटे का पिता कहेगी। याचिकाकर्ता द्वारा डीएनए टेस्ट के लिए की गई प्रार्थना का विरोध करना प्रतिवादी के दावे को मजबूत करता है।''
पृष्ठभूमि
प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता का बेटा होने का दावा करते हुए उससे भरण-पोषण की मांग की थी। उसने आरोप लगाया कि वह उस रिश्ते से पैदा हुआ है जो कभी याचिकाकर्ता और उसकी मां के बीच मौजूद था। प्रतिवादी की मां ने भी यह कहा कि उसे याचिकाकर्ता से प्यार हो गया था, जिसने उसे अपनी उपपत्नी के रूप में रखा था। उसने आगे शपथ पर कहा कि याचिकाकर्ता ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे, जिसके परिणामस्वरूप उसने गर्भ धारण किया और अंततः एक बच्चे यानी प्रतिवाद को जन्म दिया।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता ने ऐसे सभी आरोपों से इनकार किया। उसने खुद का बयान दर्ज करवाने के अलावा अपनी पत्नी का भी बयान दर्ज करवाया ताकि उसकी दलील का समर्थन किया जा सके।
प्रधान न्यायाधीश,फैमिली कोर्ट, चंबा के समक्ष कार्यवाही के दौरान पितृत्व स्थापित करने के लिए डीएनए टेस्ट कराने की मांग करते हुए प्रतिवादी की ओर से एक आवेदन दायर किया गया था। हालांकि, याचिकाकर्ता ने ऐसी प्रार्थना का विरोध किया।
फैमिली कोर्ट, चंबा के प्रधान न्यायाधीश ने सबूतों का विश्लेषण करने के बाद कहा कि चूंकि रिकॉर्ड में प्रतिवादी के पितृत्व के संबंध में पर्याप्त सबूत हैं, इसलिए प्रतिवादी का डीएनए टेस्ट कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। फैमिली कोर्ट इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि प्रतिवादी अपना मामला स्थापित करने में सक्षम रहा है। प्रतिवादी की मां द्वारा दिए गए बयान पर न्यायालय ने विश्वास किया और निर्देश दिया कि प्रतिवादी को प्रतिमाह 2500 रुपये भरण-पोषण के तौर पर दिए जाएं।
याचिकाकर्ता ने इस आदेश से व्यथित होकर इसे हाईकोर्ट के समक्ष चुनौती दी और दलील दी कि उसे प्रतिवादी को भरण-पोषण का भुगतान करने के दायित्व से बांध दिया गया,जबकि इस तरह के अधिकार को साबित करने के लिए रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है।
याचिकाकर्ता के वकील श्री विनोद चौहान ने तर्क दिया कि वह (याचिकाकर्ता) प्रतिवादी के पिता साबित नहीं हुए थे और इसलिए, उपरोक्त आदेश अरक्षणीय था। उन्होंने कहा कि प्रतिवादी न तो उनका वैध और न ही अवैध पुत्र है।
न्यायालय की टिप्पणियां
दोनों पक्षों को सुनने और रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद, अदालत ने कहा कि पितृत्व के संबंध में प्रतिवादी की मां के बयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता क्योंकि यह ''विश्वास करना कठिन'' है कि एक महिला किसी अंजान व्यक्ति को अपने बेटे का पिता कहेगी। आगे यह माना गया कि याचिकाकर्ता द्वारा डीएनए टेस्ट कराने के लिए दिखाई गई अनिच्छा उसके खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त है।
तदनुसार, कोर्ट ने कहा,
''याचिकाकर्ता के लिए डीएनए टेस्ट के लिए सहमत होना अधिक उचित होता, क्योंकि उसकी पत्नी के प्रति निष्ठा और अपने बच्चों के प्रति ईमानदारी दांव पर थी। डीएनए टेस्ट की विश्वसनीयता को ध्यान में रखते हुए, याचिकाकर्ता को उस पर लगाए गए आरोपों को गलत साबित करने के अवसर का लाभ उठाना चाहिए था। दूसरी ओर, प्रतिवादी और उसकी मां ने डीएनए टेस्ट कराने के लिए प्रार्थना की थी। ऊपर देखी गई परिस्थिति, याचिकाकर्ता के खिलाफ प्रतिकूल निष्कर्ष निकालने के लिए पर्याप्त हैं।''
तदनुसार, निचली अदालत द्वारा दिए गए आदेश की पुष्टि करते हुए क्रिमिनल रिवीजन याचिका को खारिज कर दिया गया।
केस टाइटल- कुलदीप बनाम कार्तिक
केस नंबर-क्रिमिनल रिवीजन नंबर 256/ 2022
आदेश की दिनांक- 8 दिसंबर 2022
कोरमः जस्टिस सत्येन वैद्य
याचिकाकर्ता के वकील- श्री विनोद चौहान,एडवोकेट
प्रतिवादी के वकील- श्री सुरेंद्र शर्मा,एडवोकेट
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