गुजरात हाईकोर्ट ने तीन मासूम बच्चों की कस्टडी न्यूज़ीलैंड में रहने वाली मां को सौंपने के आदेश दिए
गुजरात हाईकोर्ट ने न्यूज़ीलैंड में स्थाई रूप से रहने वाले अप्रवासी भारतीय दम्पति के तीन नाबालिग मासूम बच्चों की कस्टडी को लेकर गत पांच वर्षों से न्यूज़ीलैंड और भारतीय अदालतों में चल रहे कानूनी विवाद का पटाक्षेप कर दिया।
गुजरात हाईकोर्ट की खंंडपीठ ने जोधपुर की रहने वाली मां की ओर से दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका स्वीकार करते हुए तीनों बच्चों को आठ सप्ताह में भारत से न्यूज़ीलैंड पहुंचाने और वहां पर बैरिस्टर ऊषा पटेल के सामने मां को सुपुर्द करने के आदेश दिए हैं।
यह प्रकरण वर्चुअल सुनवाई के माध्यम से भौगोलिक दूरियों को पाटने और ऑनलाइन सुनवाई की पद्धति के महत्व को प्रदर्शित करने का भी अनूठा उदाहरण है, जहां पर जोधपुर के अधिवक्ता ने न्यूज़ीलैंड में रह रही मां की ओर से गुजरात में रह रहे बच्चों की कस्टडी के लिए गुजरात हाईकोर्ट में पैरवी की।
मामले के तथ्य
मामले के तथ्यों के अनुसार भारतीय मूल के रहने वाले माता-पिता न्यूज़ीलैंड में बस गए थे, जहां पर उनके तीन बच्चों को जन्म हुआ। बाद में वह भारत लौटे। जहां पर पिता ने मां और बच्चों को भारत में ही छोड़ दिया और यहां पर गुजरात में पत्नी के खिलाफ तलाक और बच्चों को बोर्डिंग स्कूल में भर्ती करवाकर उनकी कस्टडी के लिए सक्षम अदालत में कानूनी कार्रवाई अमल में लाई गई।
बच्चों की मां ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 97 के तहत मेहसाना (गुजरात) में पिता और पिता की मां और बहन के साथ सम्बन्धित स्कूल के खिलाफ कानूनी कार्यवाही की तो यह तथ्य सामने आया कि बच्चों के पिता ने कस्टडी अपनी मां को स्थानांतरित कर दी, जिस पर न्यायालय ने कार्यवाही समाप्त कर दी। कोर्ट ने माना कि यह अवैध बंदी का नहीं कस्टडी का मसला है।
मां ने अपने खिलाफ विचाराधीन तलाक और कस्टडी के मामलों को खारिज करने का यह कहते हुए आग्रह किया कि इन दोनों प्रकरणों में भारतीय न्यायालयों का क्षेत्राधिकार नहीं बनता, क्योंकि पति-पत्नी दोनों वर्तमान में न्यूज़ीलैंड में निवासरत हैं। महज कुछ समय के लिए बच्चों को भारत लाने पर उनकी कस्टडी का क्षेत्राधिकार यहां के न्यायालय में नहीं है, जिस पर कोर्ट ने दोनों प्रकरण समाप्त कर दिए।
वकील ने कहा, भारतीय अदालतें विदेशी अदालतों के आदेशों का सम्मान करती आई है
इस बीच न्यूज़ीलैंड की नागरिकता ले चुकी मां ने न्यूज़ीलैंड हाईकोर्ट में बच्चों की कस्टडी के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू की। जहां पर पिता की अधिवक्ता मिस हैन्सन ने आपत्ति जताई कि भारत में निवासरत बच्चों की कस्टडी के लिए न्यूज़ीलैंड हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेश का कोई औचित्य नहीं रहेगा, क्योंकि उक्त आदेश का प्रभाव अलग संप्रभू देश होने के कारण भारत में नहीं होगा।
याचिकाकर्ता की ओर से गुजरात हाईकोर्ट में पैरवी कर रहे उनके अधिवक्ता कर्मेन्द्र सिंह सिसोदिया ने न्यूज़ीलैंड हाईकोर्ट में शपथ-पत्र पेश कर इस मसले से सम्बन्धित भारतीय कानूनों को लेकर स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया कि भारतीय अदालतें विदेशी अदालतों द्वारा पारित आदेशों का सम्मान करती आई है। जिस पर न्यूज़ीलैंड हाईकोर्ट ने क्षेत्राधिकार के विवाद को समाप्त कर मामले की सुनवाई करने का निर्णय देते हुए अपने आदेशों में बार-बार भारतीय अदालतों से बच्चों को न्यूज़ीलैंड भेजने का अनुरोध किया।
हाईकोर्ट ने बच्चों के कल्याण को सर्वोपरि माना
इसके बाद मां की ओर से गुजरात हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की गई। जिसकी सुनवाई के दौरान भारत में निवासरत बच्चों को न्यूज़ीलैंड में रहने वाली मां से वर्चुअल मिलवाया गया।
गुजरात हाईकोर्ट की जस्टिस सोनिया गोकानी और जस्टिस निरजर एस. देसाई की खंंडपीठ ने सभी पक्षों की सुनवाई के बाद बच्चों के कल्याण को सर्वोपरि मानते हुए बच्चों को न्यूज़ीलैंड भेजकर मां को सुपुर्द करने के आदेश दिए। कोर्ट ने बच्चों को न्यूजीलैण्ड भेजने की पूरी प्रक्रिया निर्धारित करते हुए निर्देश भी जारी किए हैं।
कोर्ट ने न्यूज़ीलैंड हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार और वहां पर बच्चों की पैरवी के लिए नियुक्त बैरिस्टर ऊषा पटेल को भी आदेश की प्रति भिजवाने को कहा है। न्यूज़ीलैंड हाईकोर्ट में माता-पिता के विवाद के बीच स्वतंत्र रूप से बच्चों का पक्ष रखने के लिए बैरिस्टर ऊषा पटेल को नियुक्त किया गया है।
एडवोकेट रजाक के. हैदर (लाइव लॉ नेटवर्क)
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