गुजरात हाईकोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर गुजराती के उपयोग को प्राथमिकता देने के लिए सरकार के सर्कुलर को लागू करने के मांग वाली जनहित याचिका का निपटारा किया
गुजरात हाईकोर्ट ने गुरुवार को सभी सरकारी कार्यालयों, परिसरों, सार्वजनिक स्थानों और निजी स्वामित्व वाले कार्यालयों और भवनों में संचार के माध्यम के रूप में गुजराती भाषा का उपयोग करने के गुजरात सरकार के सर्कुलर के सख्त अमल के लिए एक जनहित याचिका (पीआईएल) का निपटारा किया।
जब जनहित याचिका याचिकाकर्ता/संगठन गुजराती विचार मंच के वकील ने प्रस्तुत किया कि अधिकांश स्थानों पर भाषा का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन निजी व्यक्ति निजी-सार्वजनिक परिसरों (सिनेमा हॉल, रेस्तरां इत्यादि) के लिए सर्कुलर का पालन नहीं कर रहे हैं। मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और जस्टिस अनिरुद्ध पी. माई की खंडपीठ ने कहा इस प्रकार टिप्पणी की,
" निजी लोगों को संवेदनशील बनाना होगा, उन्हें अदालत के आदेश से मजबूर नहीं किया जा सकता। आप इसे सार्वजनिक बैठकों और सार्वजनिक नारों से शुरू करें, लोगों को संवेदनशील बनाने के कई तरीके हैं। आप उन्हें मातृभाषा के उपयोग के लाभों के बारे में जागरूक कर सकते हैं। हम उन्हें कोई परमादेश जारी नहीं कर सकते।"
न्यायालय ने राज्य के वकील से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि सरकार का सर्कुलर सही अर्थ और भावना के साथ हो और इसके साथ ही जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।
चीफ जस्टिस ने सुनवाई के दौरान कहा कि वह देख रही हैं कि ज्यादातर जगहों पर गुजराती भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि वह गुजराती पढ़ने और समझने की कोशिश कर रही हैं।
गुजरात हाईकोर्ट ने उस जनहित याचिका को 'गलतफहमी' मानकर खारिज कर दिया था, जिसमें राज्य सरकार को (तत्कालीन) राज्यपाल के 2012 के फैसले को लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई। उक्त फैसले में हाईकोर्ट के समक्ष अदालती कार्यवाही में अंग्रेजी के अलावा गुजराती भाषा के उपयोग को अधिकृत किया गया।
इस जनहित याचिका में गुजराती भाषा के उपयोग की अनुमति देने के प्रस्ताव को खारिज करने वाले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के अक्टूबर 2012 के फैसले (प्रशासनिक पक्ष पर लिया गया) को भी चुनौती दी गई। उक्त याचिका पिछले साल सोशल एक्टिविस्ट रोहित द्वारा दायर की गई थी। वहीं वर्तमान याचिका सीनियर एडवोकेट असीम पंड्या के माध्यम से जयंतीलाल पटेल दायर की गई।
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल ने टिप्पणी की थी,
"यहां तक कि प्रशासनिक पक्ष पर लिया गया सीजेआई का निर्णय भी हाईकोर्ट के लिए बाध्यकारी है, इसलिए यदि आपके पास सीजेआई के प्रशासनिक निर्णय के संबंध में किसी भी प्रकार का विवाद है तो आपको सुप्रीम कोर्ट जाना होगा। हम मदद नहीं कर पाएंगे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले पर विचार करने और सीजेआई द्वारा इस पर सहमति देने से इनकार करने के बाद हम कोई निर्देश जारी नहीं कर सकते।''
इसके जवाब में सीनियर एडवोकेट असीम पंड्या ने प्रस्तुत किया कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है। जनहित याचिका इस मामले में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की भूमिका पेश करने वाली 1965 की कैबिनेट समिति के प्रस्ताव (एचसी में क्षेत्रीय भाषा का) को भी चुनौती दे रही है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि हाईकोर्ट सीजेआई के फैसले को दी गई चुनौती को देखने और उस पर फैसला देने के लिए सक्षम है। हालांकि, हाईकोर्ट ने इस मामले में मांगी गई प्रार्थनाओं को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।