अपराध की गंभीरता ज़मानत न देने का निर्णायक आधार नहीं, कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2019-11-18 08:30 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के मामले के (जिसने बाद में आत्महत्या कर ली थी) आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि ''ज़मानत देने से इनकार करने के लिए अपराध की गंभीरता अकेले एक निर्णायक आधार नहीं हो सकती, बल्कि अदालत द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते समय प्रतिस्पर्धी कारकों या तथ्यों को संतुलित किया जाना चाहिए।''

न्यायमूर्ति अशोक.जी निजगनवर ने संतोष दानकांकेरी को जमानत देते हुए कहा ,

''जमानत का उद्देश्य मुकदमे में अभियुक्त की उपस्थिति को सुनिश्चित करना है और इस प्रश्न के समाधान के लिए उचित परीक्षण लागू किया जाना चाहिए कि क्या जमानत दी जानी चाहिए या इनकार कर दिया जाए? क्या यह संभावना है कि पक्षकार इस मुकदमे का सामना करने के लिए उपस्थित होगा। अन्यथा जमानत पर सजा के रूप में रोक नहीं लगाई जाएगी।''

यह था मामला

अभियोजन के अनुसार, आरोपी ने शादी करने के बहाने पीड़िता का अपहरण कर लिया था, जो घटना के समय 17 साल की थी। फिर उसका यौन उत्पीड़न किया। पुलिस ने मई 2019 में आरोपी को अपहरण और बलात्कार के आरोप में और यौन अपराधों से बच्चों की रोकथाम अधिनियम यानि POCSO की धाराओं के तहत गिरफ्तार किया था।

बचाव पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता आनंद कोल्ली ने तर्क दिया कि शिकायत की तारीख के दिन पीड़ित लड़की की उम्र 17 साल से अधिक थी और उसमें परिणाम समझने की मानसिक क्षमता थी। यहां तक कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत दर्ज बयान में उसने अपहरण या यौन उत्पीड़न या आरोपी द्वारा किए गए बलात्कार के बारे में खुलासा नहीं किया था। चार्जशीट पहले से ही दायर हो चुकी है और चूंकि आरोपी से कुछ भी बरामद करने की आवश्यकता नहीं है, इसलिए उसे जेल में नहीं रखा जा सकता।

अभियोजन पक्ष ने ज़मानत याचिका का विरोध किया और कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा कथित रूप से किए गए अपराधों की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए उसे जमानत नहीं दी जानी चाहिए। याचिकाकर्ता ने घटना के समय कथित तौर पर नाबालिग पीड़ित लड़की की मासूमियत का अनुचित लाभ उठाया और उसका यौन उत्पीड़न किया था। यह अभियुक्त की मिलीभगत और संलिप्तता को साबित करने के लिए प्रथम दृष्टया सबूत है।

कोर्ट ने कहा ,

''अभियोजन पक्ष की मुख्य आपत्ति यह है कि अभियुक्त याचिकाकर्ता को जमानत देने की स्थिति में यह संभावना है कि वह अभियोजन पक्ष के गवाहों से छेड़छाड़ कर सकता है। कड़ी शर्तों को लागू करने से उक्त आपत्ति को खत्म किया जा सकता है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करने के बाद इस अदालत का मानना है कि नियम और शर्तों के अधीन ज़मानत पर विचार करने का वैध आधार है।'' 

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