पुडुचेरी में 'रेनकनट्स' के वंशजों पर विवाह और तलाक के मामले में फ्रेंच सिविल कोड लागू होता है: कर्नाटक हाईकोर्ट

Update: 2021-02-14 05:13 GMT

कर्नाटक हाईकोर्ट ने हाल ही में फ्रांसीसी नागरिक संहिता (French Civil Code) के तहत एक जोड़े को तलाक की मंजूरी दी, क्योंकि वे पॉन्डिचेरी (जिसे अब पुडुचेरी कहा जाता है) के निवासियों के वंशज हैं, जो फ्रांसीसी नागरिक संहिता द्वारा शासित थे।

न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्न और न्यायमूर्ति एम. जी. उमा की खंडपीठ ने कहा कि,

"रेनबसेन्ट्स के लिए विशेष विवाह अधिनियम, 1954 और भारतीय क्रिश्चियन मैरिज एक्ट, 1872 दोनों लागू नहीं होगा।"

आगे कहा गया है कि,

"फ्रांसीसी नागरिक संहिता उन व्यक्तियों पर लागू होती रहेगी, जिन्हें रेनबसेन्ट्स (Renouncants) के रूप में जाना जाता है, जिसमें रेनबसेन्ट्स के वंशज शामिल हैं, भले ही वे वर्तमान में निवास करते हों। इसके साथ ही उन पर अन्य पर्सनल लॉ उन पर लागू नहीं होता है।"

'रेनबसेन्ट्स 'ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने फ्रांसीसी संहिता द्वारा शासित होने का विकल्प चुना, जब पुडुचेरी फ्रांसीसी कब्जे में था।

पुडुचेरी के रहने वाले दंपति ने 19-10-2009 को रजिस्ट्रार ऑफ मैरिजेस, पुदुचेरी (पुडुचेरी से पहले ईसाई संस्कारों और रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह) में विवाह का पंजीकरण कराया था।

हालांकि, साल 2011 में उन दोनों के बीच मतभेदों के कारण पत्नी ने बेंगलुरु में फैमिली कोर्ट के समक्ष एक याचिका दायर की जिसमें विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 37 के साथ धारा 27 (1) (ई) और (डी) के तहत तलाक की मांग की गई थी।

पति ने भी अधिनियम की धारा 35 के तहत याचिका दायर की। फैमिली कोर्ट ने 5 जुलाई, 2018 के अपने फैसले में दोनों पक्षों की याचिकाओं को खारिज करते हुए कहा कि उन पर स्पेशल मैरिज एक्ट लागू नहीं होता है। जिसके बाद, पत्नी ने हाईकोर्ट में दायर अपील में एक अर्जी दाखिल कर याचिका दायर करने, अन्य बातों के साथ फ्रेंच सिविल कोड के अनुच्छेद 242 के प्रावधानों में संशोधन करने की मांग की। 7.02.2020 के आदेश से उक्त आवेदन की अनुमति दी गई थी।

उच्च न्यायालय ने अपील की आंशिक रूप से अनुमति देते हुए एम. कादिरवेलु और अन्य बनाम जी. संथानलक्ष्मी और अन्य (A.S. No. 40 of 2001), और 2001 के C.M.P.No. 4748, 4 Mad.LJ 562 मामले के 15.04.2016 के निर्णय, मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले पर निर्भरता दिखाई। अदालत ने इस मामले में पक्षकारों पर लागू कानूनों के इतिहास और इस सवाल का पता लगाया है कि क्या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956, उन पक्षों पर लागू होता था जिन पर विचार किया गया था।

यह औपनिवेशिक शासन से भारत के पांडिचेरी में आजादी के बाद से लागू कानूनों और विनियमों पर भी विचार करता है। इसके साथ ही यह ध्यान रखना जरूरी है कि भारत और फ्रांस के बीच पुडुचेरी सहित फ्रांसीसी क्षेत्रों के वास्तविक हस्तांतरण के लिए भारत और फ्रांस के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए हैं।

कोर्ट ने कहा कि,

"उपरोक्त चर्चा के मद्देनजर, यह कहा माना जाता है कि इस मामले में भारतीय ईसाई विवाह अधिनियम, 1872 और विशेष विवाह अधिनियम, 1954 दोनों पक्षकारों पर लागू नहीं होगा, क्योंकि वे फ्रांसीसी नागरिक संहिता के तहत विवाहित थे। इसलिए , तलाक के संबंध में भी यही बात लागू होगी।"

फ्रांसीसी नागरिक संहिता के प्रावधानों के माध्यम से शादी और तलाक के संबंध में कोर्ट ने कहा कि,

"इसलिए, फ्रांसीसी नागरिक संहिता के अनुच्छेद 245-1 के प्रावधानों को लागू करते हुए, हम मानते हैं कि पुडुचेरी के जवाहर नगर के मेरी डी आउलग्रेट(Mairie d'Oulgaret) विवाह के रजिस्ट्रार के समक्ष 19.10.2009 को पक्षकारों के बीच विवाह हुआ था। इसलिए, वे ही विवाह को खत्म यानी तलाक को मंजूरी दे सकते हैं।"

जैसा कि पत्नी द्वारा स्थायी गुजारा भत्ता या भरण-पोषण के लिए दावा किया गया था। अदालत ने इस मामले को फैमिली कोर्ट में वापस भेज दिया कि स्थायी गुजारा भत्ता की राशि तत्काल मामले में पत्नी को दी जाए।

पत्नी द्वारा किए जाने वाले किसी भी अन्य दावे का विरोध करने के अपने अधिकार के बिना किसी पूर्वाग्रह के पति, पत्नी को 25 लाख रुपये का भुगतान करने के लिए सहमत हो गया था। अदालत ने उसे (पति) को एक महीने के भीतर पत्नी के बैंक खाते में पैसों का भुगतान करने का निर्देश दिया। अदालत ने आगे निर्देश दिया कि "क्षतिपूर्ति लाभ के रूप में स्थायी गुजारा भत्ता और रखरखाव के अनुदान के मामले में फ्रांसीसी नागरिक संहिता के किसी अन्य अनुच्छेद पर भरोसा करने के लिए पक्षकार स्वतंत्र हैं।

कोर्ट ने आगे कहा कि,

"चूंकि मामला वर्ष 2011 का है, फैमिली कोर्ट ने मामले का निपटारा यथासंभव तेजी से किया है। पक्षकार ने भी मामले के शीघ्र निपटारे के लिए सहयोग किया।"

मामले का विवरण

केस नंबर: MISCELLANEOUS FIRST APPEAL No.6563 of 2018

आदेश की तिथि: 20 जनवरी 2021

कोरम: न्यायमूर्ति बी. वी. नागराथना और न्यायमूर्ति एम. जी. उमा

Appearance:

अपीलार्थी के लिए अधिवक्ता नंदिश पाटिल

प्रतिवादी के लिए एडवोकेट ए. राम मोहन

जजमेंट की कॉपी यहां पढ़ें:



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