फ़र्ज़ी लकी ड्रॉ ऑफ़र : वक़ील को रेनॉ इंडिया से मिला दो लाख रुपए का मुआवज़ा

Update: 2020-01-06 04:45 GMT

कोल्लम के उपभोक्ता विवाद निवारण मंच के अध्यक्ष ईएम मुहम्मद इब्राहिम और सदस्य एस संध्या रानी ने कहा कि कंपनियों को लकी ड्रॉ का आयोजन पारदर्शी तरीक़े से करना चाहिए और इसके विजेता का नाम लकी ड्रॉ के कूपन में दिए गए शर्तों के अनुरूप जारी करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी द्वारा सेवा में कमी और अनुचित व्यापार व्यवहार की स्थिति में उपभोक्ता (शिकायतकर्ता) को मुआवज़ा पाने का अधिकार है।

शिकायतकर्ता ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 12 के तहत शिकायत दर्ज करवाई थी। 2014 के ओणम त्योहार के दौरान रेनॉ इंडिया के मैनेजर ने अख़बारों और टीवी चैनलों में विज्ञापन दिया था कि अगस्त महीने में जो ग्राहक रेनॉ वाहन की बुकिंग कराएगा उसे बम्पर पुरस्कार के रूप में पाँच डस्टर वाहन जीतने का मौक़ा और इसके अलावा अन्य सुनिश्चित उपहार मिलेगा।

इससे प्रभावित होकर शिकायतकर्ता ने 16 अगस्त 2014 को टीवीएस & संस लिमिटेड, तिरुवनंतपुरम के प्रबंधक के माध्यम से एक डस्टर कार की बुकिंग कराई और 10 हज़ार रुपए जमा अग्रिम राशि के रूप में जमा कराई। इसके बाद उसे एक लकी ड्रॉ का कूपन दिया गया और इसका एक हिस्सा लकी ड्रॉ के लिए रख लिया गया। इस बीच, रेनॉ इंडिया, कोचिन के मैनेजर ने शेष राशि प्राप्त करने के बाद शिकायतकर्ता को गाड़ी की डिलीवरी दे दी।

शिकायतकर्ता हर दिन ड्रॉ के परिणाम की प्रतीक्षा करता रहा। कोच्कि का मैनेजर उसके प्रश्नों का जवाब नहीं देता था। उसे बताया गया कि उसको ड्रॉ के परिणाम के बारे में एसएमएस के द्वारा बताया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं किया गया।

शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया कि यद्यपि वक़ील के द्वारा दोनों ही मैनेजरों को नोटिस भेजा गया सिर्फ़ कोच्चि के मैनेजर ने इसका जवाब भेजा। पर उसका जवाब संतोषप्रद नहीं था और यह पता नहीं चल रहा था कि उन्होंने कोई ड्रॉ निकाला है और इसका परिणाम प्रकाशित किया है और इसलिए यह अनुचित व्यापार व्यवहार है और उपभोक्ताओं के साथ विज्ञापनों के माध्यम से धोखा हुआ है।

मंच ने कहा है लकी ड्रॉ पारदर्शी तरीक़े से नहीं हुआ और विजेता का नाम अख़बार में नहीं प्रकाशित किया गया। मंच ने कहा कि इसलिए, शिकायतकर्ता को दो लाख रुपए का मुआवज़ा दिया जाए। इसके अलावा इस मामले की लागत के रूप में उसे 10 हज़ार रुपए की राशि भी दिए जाने का आदेश दिया क्योंकि उसे इस दौरान मानसिक संताप से गुज़रना पड़ा।

मंच ने कहा कि अगर शिकायतकर्ता को आदेश मिलने के 30 दिनों के अंदर मुआवज़े का भुगतान नहीं किया गया तो शिकायतकर्ता को संयुक्त रूप से लागत के साथ 2 लाख का मुआवज़ा 9 प्रतिशत ब्याज की दर से भुगतान करना होगा। 




Tags:    

Similar News