लॉकडाउन के दौरान ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को काम करने की अनुमति देना एक नीतिगत निर्णय, हस्तक्षेप नहीं कर सकते: मद्रास हाईकोर्ट
मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार (17 मई) को लॉकडाउन के दौरान ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री को काम करने की अनुमति देने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि,
"यह एक नीतिगत निर्णय है और जब तक यह नहीं दिखाया जाता है कि इस तरह का निर्णय बेतुका है तब तक कोर्ट से संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अधिकार का प्रयोग करते हुए ऐसे मामलों में हस्तक्षेप करने की मांग नहीं कर सकते हैं।"
मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की खंडपीठ ने कहा कि अगर राज्य को लगता है कि छूट प्राप्त विनिर्माण इकाइयों में COVID-19 प्रोटोकॉल का पालन नहीं किया जा रहा है तो राज्य को तत्काल उचित कदम उठाना चाहिए।
कोर्ट के समक्ष मामला
याचिकाकर्ताओं ने प्रस्तुत किया कि महामारी के दूसरी लहर के मद्देनजर पूरे राज्य में लगाए गए सख्त लॉकडाउन की शर्तों से ऑटोमोबाइल उद्योग को छूट देने का कोई उचित आधार नहीं है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी प्रस्तुत किया कि कॉन्ट्रैक्ट लेबर और ट्रेनी हैं जिनका शोषण किया जा रहा है और कॉन्ट्रैक्ट लेबर और ट्रेनी को परिवहन सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं जबकि काम पर जाने के लिए दैनिक आधार पर अनिवार्य रूप से इन सुविधाओं की जरूरत होती है।
याचिकाकर्ताओं ने यह भी सुझाव दिया कि राज्य को रेनॉल्ट और विप्रो को लॉकडाउन की शर्तों से छूट देने के अपने फैसले के पीछे का कारण बताना चाहिए।
कोर्ट की टिप्पणियां
कोर्ट ने प्रथम दृष्टया कहा कि पिछले सप्ताह से सख्त लॉकडाउन के बावजूद कुछ उद्योगों को कार्य करने की अनुमति देने के लिए राज्य द्वारा एक नीतिगत निर्णय लिया गया था।
कोर्ट ने कहा कि,
"इसमें कोई संदेह नहीं है कि किन उद्योगों को लॉकडाउन से छूट देने के लिए उचित विचार किया गया होगा। एक अनुमान यह भी है कि निर्णय पर पहुंचने के लिए संबंधित इकाइयों में काम करने वालों की सुरक्षा को ध्यान में रखा गया होगा।"
कोर्ट ने इसके अलावा कहा कि यह मालिक और कर्मचारियों के बीच का मामला है कि सभी कर्मचारियों की सुरक्षा और भलाई सुनिश्चित करने के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए।
न्यायालय ने यह भी आशा व्यक्त की कि जिन उद्योगों को लॉकडाउन की शर्तों से छूट दी गई है, वे कार्यालय या विनिर्माण इकाइयों में काम करने वाले कर्मचारियों की भलाई और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र उपाय करें।
कोर्ट ने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि COVID-19 प्रोटोकॉल का हर समय पालन करना होगा।
कोर्ट ने आगे कहा कि,
"परिवहन की व्यवस्था न केवल प्रत्यक्ष कर्मचारियों के लिए बल्कि कॉन्ट्रैक्ट लेबर और ट्रेनी और ऐसे अन्य लोगों के लिए भी की जानी चाहिए, जिनसे कार्यालय या विनिर्माण के लिए काम पर आने की उम्मीद की जाती है। विनिर्माण कार्यों के दौरान भी सोशल डिस्टेंसिंग को हमेशा बनाए रखा जाना चाहिए। "
कोर्ट ने अंत में इस बात पर जोर दिया कि राज्य को व्यापक जनहित में और सार्वजनिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए तत्काल उचित कदम उठाने चाहिए।
कोर्ट ने आगे कहा कि,
"राज्य को विभिन्न स्थानों पर कामकाज की निगरानी करनी चाहिए और कामकाज को एक सीमा तक करने की अनुमति या प्रतिबंधित करना चाहिए जो आवश्यक हो ताकि सार्वजनिक स्वास्थ्य से समझौता न हो।"